मेरा जिस्म मांगे मोर- 2

जवान लड़का सेक्स कहानी में पढ़ें कि शादी के 10-15 साल बाद लड़की को स्वाद बदलने के लिए नए लंड की तलाश थी. उसके पड़ोस में रह रहे एक लड़के पर उसकी नजर पड़ी.

कहानी के पहले भाग
खूबसूरत लड़की की सुहागरात
में आपने पढ़ा कि मेरी शादी के बाद मेरी पहली रात थी, सुहागरात!
मेरे पति ने मुझे नंगी कर लिया था और वे भी नंगे हो गए थे, उनका लंड देख मैं डर गयी थी.
उन्होंने मेरी चूत चूस चाट कर मुझे झड़वा दिया था.

अब आगे जवान लड़का सेक्स कहानी:

सुधीर- मेरी सोनिया डार्लिंग, तैयार हो जाओ, औजार तैयार है तुम्हारे अंदर जाने को!
मैं- सुधीर आराम से करना, बहुत ज्यादा दर्द तो नहीं होगा ना?
सुधीर- नहीं मेरी जान, तुम तो मेरी प्यारी जान हो, कोशिश करूंगा कि बिल्कुल भी दर्द ना हो. पर थोड़ा दर्द होगा तभी आनन्द आयेगा, मेरी सोनिया डार्लिंग!

मैं- सच्ची, तो जो तुम्हें करना है करो, आज से मैं तुम्हारी अमानत हूँ जो करना है करो, मेरे मालिक, मेरे पतिदेव, मैं कुछ नहीं कहूँगी. आज मुझे एक लड़की से औरत बना दो, फहरा दो अपना झंडा मेरी इस जवानी पर!
सुधीर- लव यू जान, लव यू मेरी डार्लिंग!

वैसे तो सुधीर ने चूस चूस कर मेरी चूत को लण्ड लेने लायक बना दिया था.
फिर भी सुधीर ने अपने लण्ड पर थोड़ा से तेल लगा लिया जिससे जब पहली बार लण्ड चूत में जाये तो ज्यादा दर्द ना हो.

सुधीर ने अब अपने लण्ड को मेरी चूत के मुख पर लगाया और धीरे-धीरे से धक्के मारने लगा.
मेरी चूत में थोड़ा लण्ड घुसा तो ऐसा लगा जैसे कोई मेरी चूत की संकरी गली में घुस रहा हो.
थोड़ा सा दर्द हो रहा था.

मैंने सुधीर से कहा- सुधीर, थोड़ा सा तेल मेरी चूत पर भी लगा दो!
तो सुधीर ने अपना लण्ड बाहर निकाला और थोड़ा सा तेल मेरी चूत पर लगाकर दुबारा से अपने लण्ड को मेरी चूत के मुहाने सैट किया और एक जोरदार झटका मारकर अपने लण्ड को मेरी चूत में अन्दर तक घुसा दिया.

सुधीर का लण्ड मेरी चूत की संकरी दीवारों को छीलता हुआ मेरी बच्चेदानी से जा टकराया.
मेरी जोरदार चीख निकल गई- आह … उई … मर गई … सुधीर … उई मा … मार डाला!

एकदम से मेरी आंखें भीग गई.
ऐसा लगा किसी ने गर्म लोहे का सरिया मेरी चूत में डाल दिया हो और मेरी चूत फाड़ दी हो.

मैं एकदम से बदहवास सी हो गयी.
उन्हें भी ऐसा अंदाजा नहीं था कि मेरा रियेक्शन ऐसा होगा.

सुधीर ने अपना एक हाथ मेरे मुंह पर रख दिया और धीरे-धीरे से अपना लण्ड अंदर बाहर करने लगे.

अंदर बाहर करने से मुझे अब कुछ रिलैक्स महसूस होने लगा था.

पहली बार जब चूत के अंदर लण्ड जाता है तो ऐसा ही होता है … ऐसा लगता है मानो जान ही निकल गई हो!
पर फिर थोड़ी देर बाद जन्नत का वो मजा आता है जो शायद ही किसी ओर चीज से आ सकता हो.

सुधीर अब धीरे-धीरे से अपने लण्ड को अंदर बाहर कर रहे थे.
मुझे भी अब मजा आने लगा था … एक अजीब सा नशा चढ़ रहा था … एक अनजाना सा प्यारा सा एहसास महसूस हो रहा था.

मैंने अपने दोनों हाथों से सुधीर की कमर को कस के पकड़ लिया.
सुधीर अब जोर-जोर से अपने लण्ड को मेरी चूत में अंदर बाहर कर रहे थे.

हम दोनों ही पसीने से तर बतर हो गये थे.

अचानक से एक गर्म गर्म धार मुझे मेरी चूत में महसूस हुई और सुधीर मेरे ऊपर ही गिर गये.
शायद उनका वीर्य मेरी चूत में भर गया था.

थोड़ी देर तक हम दोनों ऐसे ही पड़े रहे … और न जाने इसी हालत में कब हमारी आंख लग गयी पता ही नहीं चला.

सुबह जब दरवाजे पर दस्तक हुई तब हमारी आंख खुली.

दोस्तो, उस पहली रात का मजा जिन्दगी का सबसे प्यारा और जिन्दगी भर ना भूलने वाला अहसास होता है.

मेरी और सुधीर की इंगेजमेंट लगभग 2 महीने रूकी थी, उन दिनों आज की तरह मोबाईल वगैराह तो थे नहीं, बस हाँ लैण्ड लाईन फोन पर हम दोनों की थोड़ी बहुत ही बात हुआ करती थी.
इसलिए आप समझ सकते हैं कि हम दोनों में कितना एक्साईटमैंट होगा.

शादी से पहले सहेलियों से ही सुना था थोड़ा बहुत सैक्स के बारे में … शादी के दिन मैं बहुत नर्वस थी कि सैक्स में क्या होगा.
मेरी मौसी की लड़की शोभा, जिसकी 6 महीने पहले ही शादी हुई थी, ने मुझसे कहा- डर मत कुछ नहीं होगा … पगली मजा आयेगा … मुझे अब अपने पुराने दिन याद आने लगे थे.

इन पोर्न कहानियों का मुझ पर ऐसा असर हो रहा था कि मुझे अब नये नये तरीके से सैक्स करने के विचार आने लगे थे.

सुधीर अब सैक्स में पहले जैसी रूचि नहीं दिखाते थे.
एक तो ऑफिस से थक कर आते थे और खाना खाकर सो जाते थे … मेरी तरफ अब वे कम ध्यान देते थे.

ऐसा ही होता है दोस्तो … जब शादी को 10-15 साल हो जाते हैं तो एक नीरसता जीवन में भर जाती है … आदमी तो अपना समय कहीं ना कहीं काट ही लेता है पर औरत बेचारी क्या करे!
अर्न्तवासना पर कहानी पढ़-पढ़ कर मेरे दिल और दिमाग में सैक्स हावी होने लगा था.

कभी अपनी अंगुली से, कभी बैंगन और कभी खीरे से अपनी चूत को शान्त करने लगी थी मैं!
एक दिन मैं शाम के समय अकेली ही छत पर घूम रही थी हमारे घर से बस थोड़ी दूर ही दूसरी छत पर मुझे एक हैंडसम सा लड़का दिखाई दिया.

मैं उसे देखते ही उस पर मोहित हो गयी.
एकदम से लम्बी कद काठी का गोरा चिट्ठा हैंडसम नौजवान!
देखते ही मेरी जवानी भी उफान मारने लगी.

पता नहीं क्या था उसके उस फिगर में, दिल उसे देखते ही पागल सा हो गया.
मुझे लग रहा था ये सब पोर्न कहानियाँ पढ़ने का ही असर है।

मैं बहुत देर तक उसे ऐसे ही निहारती रही.
कुछ देर बाद उसकी नजर मुझसे मिली … तो वह भी मुझे देखता रह गया.

मैंने उसे हेलो बोला और उसकी ओर हाथ हिलाया.
उसने भी हाथ हिलाकर अभिवादन किया और मुझसे पूछा- आप यहाँ शायद नये आये हो?
मैंने हाँ कहा, उससे बोली- बस अभी 3-4 दिन ही हुए हैं.

थोड़ी देर तक हम दोनों एक दूसरे को इसी प्रकार से निहारते रहे.
कुछ देर बाद वह वहां से चला गया.

पर मुझे पता नहीं क्या हुआ था … मेरा दिल ओर दिमाग बस उसके चेहरे में ही खोया हुआ था.
मेरी चूत जोर-जोर से चिल्ला रही थी कि उसे इस नये लण्ड की जरूरत है … मेरी चूत पागल हो रही थी कि किसी भी प्रकार से उसको वो लण्ड चाहिए।

मैं छत से नीचे आई और रसोई में जाकर एक लम्बा बैगन लिया और सोफे पर बैठकर अपनी चूत में बैगन देकर उसके लण्ड को महसूस करके जोर-जोर से अपनी चूत को चोदने लगी.

उस दिन तो ऐसा लगा जैसे सच में ही वह मुझे चोद रहा हो.
उसको महसूस करके इतने दिन बाद मेरी चूत ने बहुत सारा रस छोड़ा.
इतने दिनों बाद मेरे शरीर को, मन को असीम आनन्द मिला था.

उस दिन के बाद से मेरी नजरें रोज ही उसका पीछा करने लगी थी.

एक बात और दोस्तो, अगर किसी को बड़ी शिद्दत से चाहो तो भगवान भी ऐसा कोई चमत्कार दिखा ही देता है कि वह खुद ब खुद तुम्हारे पास चला आता है।

ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ था.
हमारे कोटेज के सामने ही एक पार्क था जिसमे सुबह-सुबह सुधीर टहलने के लिए चले जाते थे.
वहां वह भी आया करता था.
उन दोनों की दोस्ती हो गयी.

रविवार का दिन था, सुबह सुधीर रोज की तरह ही घूमने के लिए पार्क चले गये.

थोड़ी देर बाद ही दरवाजे पर किसी ने आवाज लगाई.
मैंने जैसे ही दरवाजे को खोला, वो अजनबी मेरे सामने खड़ा था और वह सुधीर को पकड़े हुए था.

सुधीर को इस तरह पकड़े देख मैं एकदम अवाक रह गई और बोली- सुधीर … सुधीर क्या हुआ?
सुधीर- सोनिया, कुछ नहीं, तुम परेशान मत हो … बस कुछ नहीं, एक पत्थर से ठोकर लग गई और मैं गिर गया। कुछ नहीं हुआ बस हल्का सा पैर में दर्द है। इनका नाम अनुभव है ये हमारे घर के पास ही रहते हैं!
यह कहकर सुधीर ने अनुभव से मेरा परिचय कराया.

पर मैंने मन ही मन सोचा हमारा परिचय तो हो चुका है.

मैं तो बस अनुभव का ही निहार रही थी.
उसकी बॉडी किसी पहलवान की भांति कसरती थी … उसका चेहरा दमक रहा था.

सुधीर- सोनिया, अरे बाहर ही खड़ा रखोगी या अन्दर भी बुलाआगी?
मैं- ओह हाँ हाँ क्यों नहीं, अनुभव जी आइये आप!

सुधीर अनुभव का सहारा लेकर अंदर आये और सोफे पर बैठ गये.

वहीं पास में ही दूसरे सोफे पर अनुभव भी बैठ गया.
पर मैंने नोट किया कि कहीं ना कहीं अनुभव की निगाहें भी मुझे ही निहार रही थी.

सुधीर- सोनिया, मेरे और सुधीर के लिए चाय बनाओ और एक कटोरी में थोड़ा सा सरसों को तेल और गर्म कर दो, मैं अपने पैर की मालिश कर लेता हूँ, मालिश करके ठीक हो जायेगा।
मैं- सुधीर, बस अभी लाई!

मैंने दोनों के लिए चाय बनाई और फिर हम तीनों ही वहां बैठकर बातें करने लगे.
मैं उसकी निगाहों को ही देख रही थी, वह भी मुझ पर लाईन मार रहा था … उसकी आंखें मेरी चूचियों को एकटक निहार रही थी.

अनुभव- भाभी जी, आपसे मिलकर अच्छा लगा. और आपकी चाय पीकर तो मजा आ गया … अब तो रोज आपकी चाय पीने आना पड़ेगा.
मेरी ओर देखकर वह हंसने लगा.

सुधीर- हाँ अनुभव भाई, जरूर … यह आपका ही घर है यार!

अब अनुभव और सुधीर दोनों ही काफी घुलमिल गये थे, लगभग रोज ही अनुभव का हमारे घर आना जाना हो गया था।

अनुभव आदत का अच्छा था, शर्मीला भी था … ये तो मुझे पता लग ही गया था कि अनुभव भी मेरे पीछे लगा है.

अब अनुभव और मेरी काफी बातें भी होने लगी थी.
अनुभव अभी शादीशुदा नहीं था पर हमसे अनुभव और उनकी फैमिली काफी घुलमिल गये थे.

अनुभव के घर में माँ-पापा और उसकी एक बहन थी … वह भी कहीं बाहर पढ़ रही थी.
और उसके पापा भी कहीं बाहर ही जॉब कर रहे थे इसलिए उनके घर पर भी बस अनुभव और उसकी माताजी ही थी.

अनुभव की माताजी सुशीला जी बहुत ही धार्मिक और घरेलू महिला थी.

एक बार हम दोनों अनुभव के घर उनकी माताजी से मिलने गये थे, उन्होने हमारा बड़ा ही आदर सत्कार किया।
मुझे बहुत ही अच्छा लगा, जैसे किसी अजनबी शहर में कोई अपना सा मिल गया हो.
इसलिए हमारी और अनुभव की फैमिली की अच्छी दोस्ती हो गयी थी।

अब तो कभी-कभी सुधीर और अनुभव शाम को बैठकर ड्रिंक भी कर लिया करते थे.

पिछले 1-2 दिन से मैंने नोटिस किया कि अनुभव की निगाहें दूर तक मेरा पीछा करने लगी थी.
मैंने कई बार नोटिस किया कि वह मुझे रिझाने की कोशिश करता है.

न जाने क्यूँ … मेरा मन भी उसकी निगाहों से निगाहें मिलाने के लिए करने लगा था.
मेरे दिल में एक अजीब सी कशमकश होने लगी थी.
अब तो मुझे भी ऐसा लगने लगा था कि अगर अनुभव को न देख लूं तो चैन ही नहीं आता था … उसे देखे बिना दिल को तसल्ली ही नहीं मिलती थी.

सुधीर मेरा बहुत ख्याल रखते थे पर फिर भी न जाने क्यूं दिल अब अनुभव के लिए बेकरार रहने लगा था.

ऐसा ही होता है … अजनबी शहर में जब कोई बड़ी शिद्दत से तुम्हें रिझाने की हर कोशिश करने लगता है तो दिल भी उसी में समा जाने के लिए तैयार हो जाता है.

मैं नोटिस कर रही थी कि अनुभव की नजरें मेरे जिस्म को छू रही थी.

मैं समझ रही थी पर उसे तड़पा रही थी.
मेरे दिल में भी अनुभव के लिए न जाने कैसा तूफान से मचा हुआ था.

पर मौसम भी अजीब दास्तान लिख देता है।
1-2 दिन से मौसम बहुत ही रोमांटिक हो रहा था … हल्की हल्की बूंदें मौसम को और अधिक सुहाना बना देती है और फिर दिल भटकने लगता है.
कुछ पास में है फिर भी ये दिल मांगे मोर … मोर … मोर!

आखिर मैं अब अपने दिल को अनुभव के हाथों हार बैठी थी.

आज जब अनुभव शाम को जब हमारे घर आया तो उसकी निगाहें मुझे ही टटोल रही थी.

मैंने भी आज मुस्कुरा कर होंठों को चुम्मे के रूप में बना कर उसकी ओर देखा.

मुझे ऐसा करती देख अनुभव की तो बांछें ही खिल गई.
हंसी तो फंसी के आधार पर अब हमारी गाड़ी आगे बढ़ चली थी.

अब जब भी शाम को वो घर आता तो मैं दरवाजे पर ही उसका इंतजार करने लगी थी.
पर वह जवान लड़का सेक्स के मेरे इशारे समझ कर भी हिम्मत नहीं कर पा रहा था.

मैं उसका इंतजार कर रही थी पर वह आगे नहीं बढ़ पा रहा था.

आखिरकार मैंने ही एक दिन उसे अपना बनाने का निर्णय लिया और एक कागज पर ‘मुझे अपना बना लो’ का स्लोगन लिखकर उसके हाथ में थमा दिया.
पहले तो वह एकदम से घबरा गया … फिर उसने मुझे देखा.
मेरी आंखों में उसे बस वासना के डोरे दिखाई दिये … और वो मेरी ओर देखता रह गया.

मैंने कहा- अनुभव कहाँ खो गए?
वह बोला- भाई साहब कहाँ हैं?
मैंने कहा- वे अभी कहीं गये हैं, तुम बैठो!
मैंने झट से उसका एक हाथ पकड़ लिया.

मेरे एकदम से हाथ पकड़ने पर वह एकदम से घबरा गया.
मैंने अनुभव से कहा- यार अनुभव, क्या हुआ, तुम तो घबरा रहे हो, ऐसे कांप रहे हो जैसे किसी ने पहली बार तुमको ऐसे पकड़ा हो!
और मैंने अचानक से उसके होंठों पर अपने जलते हुए होंठों को लगा दिया.

यह सब कुछ इतना जल्दी में हुआ कि अनुभव एकदम से मुझसे छूटकर दूर हो गया.

मैंने कहा- अनुभव क्या हुआ … मैं इतने दिनों से देख रही हूं कि मुझे किस तरह से तुम देख रहे हो. और आज जब मैं तुम्हारे पास हूँ तुम घबरा रहे हो?
अनुभव- नहीं भाभी जी … ऐसा कुछ नहीं है … मैं … मैं … मैं!
मैं- अब मैं पर ही अटक गये … अच्छा यह बताओ कल सुबह इनके ऑफिस जाने के बाद घर आओगे ना?

उसने कुछ भी नहीं कहा, बस हां में अपना सिर हिला दिया।

उसकी वो रात बैचेनी में गुजरी … मेरी भी कुछ ऐसी ही हालत उत्तेजना के मारे ही थी।

अगले दिन सुधीर के ऑफिस जाने के थोड़ी देर बाद ही अनुभव ने दरवाजे पर कालबेल बजाई.

प्रिय पाठको, मुझे बताते रहियेगा कि आपको मेरी जवान लड़का सेक्स कहानी कैसी लग रही है?
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