वर्जिन पुसी फिंगर स्टोरी में एक लड़की मेरी बस में जाती थी. मैं उसे चोदना कहता था. वह भी मुझमें रूचि ले रही थी. मैंने उससे कैसे बात की और कैसे एक दिन भीड़ भरी बस में उसकी चूत में उंगली की!
दोस्तो, मैं अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूं 2013 से!
मैंने यह अन्तर्वासना साईट की मजेदार कहानियाँ मेरी बारहवीं कक्षा में पढ़ने शुरू की थी और आज भी पढ़ रहा हूं।
तो दोस्तो, मेरे दिल में बहुत इच्छा हो रही थी कि मैं भी अपनी सच्ची कहानी यहां पर प्रकाशित होने के लिए भेजूं।
वैसे तो मेरे जीवन में बहुत बार ऐसे मौके आए जो आपको लन्ड हिलाने पर मजबूर कर देंगे.
मगर अभी मैं मेरी और मेरी गर्लफ्रेंड की कहानी आपको बताने जा रहा हूं जो बिल्कुल सच है।
पहले मैं अपने बारे में बता देता हूं.
मेरा नाम वैभव है, एकदम हैंडसम और शरीर से तो वैसे ही मैं कबड्डी का और कुश्ती का प्लेयर रहा हूँ.
बाकी आप समझ सकते हैं।
मैं हरियाणा से गुरुग्राम से संबंध रखता हूं।
तो चलिए, मैं अपनी वर्जिन पुसी फिंगर स्टोरी पर आता हूं।
यह बात ये बात उस समय की है जब मैं बारहवीं कक्षा में पढ़ रहा था।
उस समय ना ही इतने ज्यादा फ़ोन, फेसबुक, व्हाट्सप्प और इंटरनेट की सुविधा थी।
मैं शुरू से ही थोड़ा शर्मीले स्वभाव का रहा हूं।
मैंने बारहवीं में साइंस साइड ले रखी थी और वो ग्यारहवीं में आर्ट साइड को छात्रा थी।
सॉरी .. मैं पारुल (बदला हुआ नाम) के बारे में तो बताना भूल ही गया।
एकदम कड़क माल … अगर कोई एक बार देख ले तो बिना मुठ मारे ना रह पाए.
छातियां भरी हुई, गांड उभरी हुई और त्वचा रुई रुई मतलब एकदम गोरी चिकनी।
पारुल का साइज 32-28-32 का था उस समय!
वो दूसरे गांव की थी और मैं दूसरे गांव का!
जब मैंने पहली बार देखा तो देखता ही रह गया था।
मैंने, मेरे दोस्त (जैसे हर किसी लाइफ में होता है एक घनिष्ठ मित्र) को बोला- यार, इसका कुछ कर ना … इसकी योनि मैं भेदना चाहता हूं।
हम दोनों अलग गांव से आते थे तो वह एक स्टैंड पहले चढ़ जाती थी बस में और मैं बाद में!
आप लोगों को तो पता ही है हरियाणा रोडवेज का सफ़र।
बस में बहुत भीड़ रहती थी.
मैं अपनी तरफ से उसके नजदीक जाने की कोशिश करने लगा.
वह बस में जहां भी रहती, मैं उसके पास जाकर खड़ा हो जाता, क्लास ब्रेक में पानी की टंकी के पास खड़ा हो जाता था।
एक दो बार उसने मुझे स्माइल पास की,.
मैंने भी जान लिया कि शायद इसके दिल में भी मेरे लिए ख्याल उमड़ रहे हैं।
फिर तो मैं बस में जानबूझकर बिल्कुल उसके नजदीक जाने लग गया.
कभी कभी मैं उसके साथ चिपक कर खड़ा हो जाता तो बीच बीच में लन्ड को सेट करना पड़ता क्योंकि मेरा महाराज बहुत जल्दी उफान मारने लग जाता था।
अब तो मैं जब भी उसके पास जाता, वह अपनी गांड मेरी तरफ करके खड़ी हो जाती.
शायद उसको भी मेरा लन्ड अपनी गांड पर रगड़वाने में मजा आने लगा था।
मगर अभी तक हम दोनों की बात नहीं हुई थी।
एक दिन बस में ज्यादा ही भीड़ थी और मैं उसके बिल्कुल चिपक के खड़ा था.
तभी कंडक्टर टिकट लिए आया और टिकट लेने के लिए बोलने लगा.
वह अपने बैग से रुपए निकाल पा रही थी तो मैंने अपनी पॉकेट से रुपए निकालने के लिए जैसे ही हाथ नीचे किया तो उसकी गांड से टच करते हुए हाथ पॉकेट में डाला.
तभी उसने मेरी तरफ ऐसे देखा ना … मेरी तो फट के हाथ में आ गयी थी कि कहीं ये हल्ला ना कर दे बस में … और मुझे लेने के देने पड़ जाएँ।
मगर मैंने फिर उसकी भी टिकट के पैसे दे दिए।
पारुल- थैंक यू! बस से नीचे उतरने के बाद आप पैसे ले लीजिएगा मेरे से!
मैंने भी ओके बोल दिया।
अब तो ये सिलसिला मानो शुरु हो गया था।
वह मुझे देख कर यूँ ही मुस्कुरा दिया करती थी और मैं उसे देख कर!
अब धीरे धीरे हम ऐसे ही बस में ही एक दूसरे के नज़दीक आने लगे।
और एक साल ना जाने कैसे निकल गया.
इसेक साल में मैंने उसके बारे में सोच सोच के ना जाने कितनी बार मुठ मार दी थी।
पारुल के मन में न जाने क्या चल रहा था … कभी पूछने का मौका हे नहीं मिल पाया।
फिर मैंने बारहवीं पास कर ली और शहर के एक कॉलेज में दाखिला ले लिया।
और पारुल ने भी ग्यारहवीं पास करके बारहवीं में दाखिला ले लिया था जो कि मेरे को बाद में पता चला।
अब पारुल से मिलने के लिए दिल तड़फने लगा था और उसके बारे में सोच सोच कर मैं ना जाने कितनी बार लण्ड हिलाने लगा था।
एक दिन अचानक मैं कॉलेज से वापिस आ रहा था तो मुझे बस में पारुल के दर्शन हो गए.
फिर से क्या लग रही थी वो!
मैं बस में बिल्कुल उसके नजदीक जाकर खड़ा हो गया.
उसने सफ़ेद रंग के सूट और सलवार पहने हुए थे जोकि स्कूल ड्रेस थी, और उसके अंदर से गुलाबी रंग की ब्रा थी जो मुझे उसके बिल्कुल नजदीक जाने के बाद पता चली।
उसके जिस्म से हलकी हलकी खुशबू मेरे नथुनों में आ रही थी जोकि मेरे को मदहोश कर रही थी।
मेरा जिस्म पारुल के साथ बिल्कुल चिपक गया था भीड़ की वजह से और ऊपर से उसके पसीने की भीनी भीनी महक जो मेरे लण्ड को खुला आमंत्रण दे रही थी।
बस फिर क्या था … नीचे महाराज जी खड़े होने लगे और पारुल की चूत पर टक्कर मारने लगे.
जिससे पारुल मेरी तरफ गुस्से में देखने लगी।
और फिर भगवान् ने भी साथ दिया कि ड्राइवर ने तुरंत ब्रेक लगा दिए और पारुल का चेहरा मेरे कंधे के साथ और उसके उभरे हुए स्तन, मेरे सीने में आ धँसे।
जो कसर बाकी थी वो नीचे से पूरी हो गयी.
मेरे 7 इंच के महाराज़ ने पारुल के यौवन पर दस्तक दे दी।
बिल्कुल बेखबर पारुल अचानक हुए इस वाकिये से सकपका गयी और मारे शर्म के पारुल का चेहरा बिल्कुल लाल पड़ गया।
और फिर मेरे सामने उसकी नज़र उठाने की हिमायत नहीं हुयी शायद!
इस दौरान मेरा लंड बार बार पारुल की चूत पर टक्कर मार रहा था।
और हम कुछ और सोच पाते … तब तक मेरा बस स्टैंड आ गया और न चाहते हुए भी मेरे को उतरना पड़ा.
जल्दी से घर पहुँचते ही मैंने उस दिन 2 बार मुट्ठ मारकर मेरे लंड को शांत किया और पारुल की चूत चोदने के सपने देखने लगा।
न जाने कितनी बार ऐसा हुआ.
मगर मेरी पारुल से बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी और ना ही पारुल कोई पहल करना चाह रही थी।
इस उहापोह में मेरे मन में एक डर भी था कि कहीं मेरे प्यार को पारुल ने ठुकरा दिया तो खड़े लंड पे धोखा (KLPD) हो जाएगा।
और इसी प्रकार एक साल और निकल गया.
न मैंने बात आगे बढ़ाई और ना ही पारुल ने!
फिर पारुल ने भी उसी शहर के एक कॉलेज में दाख़िला ले लिया.
और जिस बस में वह जाती थी, उसी बस में मैं जाने लगा।
अब तो हर रोज़ पारुल से मिलना होने लगा और परन्तु मैं दुविधा में फंसा हुआ था कि बात कैसे आगे बढ़ाई जाए।
फिर अचानक से मेरा शहर से 10 दिन बाहर जाने का प्रोग्राम बना.
तो मैंने सोचा कि ये दस दिन कैसे निकलेंगे.
इसी बीच मैंने एक फ़ोन और सिम खरीद लिया घर वालों से बोलकर!
2 दिन बाद घर से निकलना था, मेरे साथ मेरा दोस्त भी जा रहा था।
दूसरे दिन मैं इसी फ़िराक था कि कैसे पारुल के पास फ़ोन नंबर पहुंचाए जाए ताकि बात कुछ आगे बढ़ सके और लंड के लिए चूत का इंतज़ाम हो सके।
फिर कॉलेज से वापिस आते वक्त जैसे तैसे करके मैंने पारुल के हाथ में नम्बर थमा दिया.
और एक गहरी सांस ली.
उसने भी धीरे से नीचे हाथ करके नंबर की पर्ची थाम ली।
अब तो मैं बस पारुल के फ़ोन का इंतज़ार करने लगा।
उस दिन उसका फ़ोन नहीं आया और दूसरे दिन फिर मैं और मेरा दोस्त दूसरे शहर के लिए निकल गए।
इसी तरह 3 दिन निकल गए और चौथे दिन रात को 9 बजे मेरे फ़ोन पर वो घंटी बजी जिसका मुझे न जाने कब से इंतज़ार था।
मैंने फ़ोन उठाया- हैलो!
पारुल- हैलो!
मैं- कौन?
पारुल- नहीं पहचाना क्या?
मैं- अरे नहीं … आपकी आवाज नहीं पहचान पायेंगे तो किसको पहचानेंगे।
पारुल- आप ठीक तो हैं ना?
मैं- हाँ क्यों क्या हुआ?
और इधर पारुल की आवाज सुन सुनकर मेरा लंड खड़ा होता जा रहा था।
पारुल- नहीं … वो आप दिखाई नहीं दिए दो दिन से बस में!
मैं भी पारुल को थोड़ा उकसाना चाहता था ताकि वह भी अपने दिल की बात को बाहर लेकर आये और खुद से इजहार करे।
मैं- अरे नहीं, उस बस से अपना कोई जाता नहीं … तो दो दिन से बस मैंने भी अपने आने जाने की टाइमिंग बदल दी।
पारुल- ये किसने कहा कि उस बस में आपका कोई नहीं?
मैं- तभी तो आज 3 दिन हो गए मगर किसी ने कॉल नहीं किया।
पारुल- अरे विभु, आप तो हमारी मज़बूरी भी नहीं समझ पाए, हमारे पास फ़ोन नहीं है और अभी भी हमने भाभी वाले फ़ोन से फ़ोन किया है. भाभी कभी भी बर्तन साफ़ करके आती होंगी।
मैं- अच्छा मैं कैसे मान जाऊं किआपकी कोई मज़बूरी है? आपने तो आज तक बस में भी बात नहीं की।
पारुल- अच्छा जी … और जैसे आप तो हर रोज़ आकर हमसे बात करते हैं। और फिर बस में गाँव के लोग भी तो होते हैं।
तभी मैं समझ गया कि आग दोनों तरफ लगी है।
मैं- तब तो आपसे अकेले में मिलना पड़ेगा फिर बात करने के लिए!
पारुल- जी हाँ, वैसे भी हमें आपसे बहुत से बातें करनी हैं।
तभी पीछे से किसी की आवाज आयी और फ़ोन कट हो गया।
अब मुझे पक्का विश्वास हो गया था कि अब मेरे लंड की मंजिल दूर नहीं है।
और फिर उस रात पारुल के बारे में सोच सोच कर बाथरूम में जाकर 2 बार लंड का पानी निकालना पड़ा।
तब जाकर लंड महाराज शांत हुए।
फिर 7 दिन तक कोई बात नहीं हुयी और मैं जिस दिन शहर में वापिस आया, उसी दिन वह मुझे बस में मिल गयी और फिर मैं उसके नजदीक जाकर खड़ा हो गया बिल्कुल चिपक कर!
मगर वह ना जाने क्यों गुमसुम सी लग रही थी।
मगर जैसे ही मैंने नीचे हाथ ले जाकर उसकी मस्त गांड को टच किया तो उसके चेहरे पर हलकी मुस्कान के भाव नजर आये.
और मैंने भीड़ का फायदा उठाते हुए पारुल की गांड को हल्के से दबा दिया.
जिससे वह चिहुंक पड़ी।
फिर मैंने धीरे से दूसरे हाथ को उसकी कमर पर रख दिया।
भीड़ में एक तरफ मेरा दोस्त था और दूसरी तरफ मुँह करके खड़ी पारुल थी जिससे लोगों को पता नहीं चल पाता कि मेरा हाथ कहाँ है।
मैं धीरे धीरे कमर को सहलाने लगा और उसके साथ साथ पारुल का चेहरे का रंग लाल होता चला गया।
जैसे जैसे मैं हाथ को पारुल के सीने की तरफ बढ़ाने लगा, वैसे वैसे पारुल मेरे और नजदीक आती जा रही थी और उसके चेहरे का रंग आता जा रहा था, चेहरा सफ़ेद से बिल्कुल लाल हो गया था।
तभी मेरे दिमाग में एक खुराफाती ख्याल ने जन्म लिया और मैं धीरे खिसक के पारुल के बिल्कुल पीछे पहुँच गया.
अब बस की भीड़ का मैं पूरा फायदा उठाना चाह रहा था।
मैं जैसे ही पारुल के पीछे गया, मैंने दोस्त को इशारे में पारुल के बिल्कुल आगे खड़े होने के लिए कहा, वो भी पारुल की तरफ पीठ करके!
पारुल कुछ समझ पाती … तब तक मैंने अपनी जगह बिल्कुल सेट कर दी थी.
अब पारुल मेरे आगे थी मेरा 7 इंच लंड मैंने धीरे से पारुल के दो पहाड़ों के बीच में लगा दिया था और दायें हाथ से पारुल की कमर और बूब्स के बीच में पकड़ बना ली थी, जबकि बायां हाथ मैंने धीरे से पारुल की बाईं जाँघ पर रख दिया था।
ये सब इतना जल्दी हुआ कि पारुल को भनक तक न लग सकी कि अगले पल उसके साथ क्या होने वाला है।
मगर उसके तन में भी आग सुलग चुकी थी जिस कारण वह मेरे शरीर से दूर नहीं होना चाह रही थी।
फिर मैंने वो किया जो पारुल ने सोचा भी नहीं था।
मैंने बाएं हाथ को पारुल के कमीज साइड वाले कट के अंदर से ले जाकर उसकी चूत पर रख दिया जिससे उसकी आँखें खुली की खुली रह गयी.
मगर वह हिल भी नहीं पा रही थी क्योंकि सामने मेरा दोस्त पीठ किये हुआ खड़ा था और पीछे से मैं खड़ा था.
और मेरा दायां हाथ उसकी कमर और बूब्स के पास था।
एक बार तो उसने मुझे गुस्से में देखा जिससे मेरी भी फट गयी थी कि कहीं ये गुस्सा होकर बस में कुछ में बवाल णा कर दे!
मगर फिर 30 सेकेण्ड तक ऐसे ही रहने के बाद मैंने अपने हाथों का खेल शुरू किया।
दायें हाथ को पहले पारुल की दायीं चूची के नीचे लगाया और उसके बूब्स के साथ खेलने लगा।
2 मिनट ऐसे करने के बाद मैंने जैसे ही बायें हाथ की उंगलियों को पारुल की चूत पे घुमाना शुरू किया तो पारुल ने अपनी पीठ मेरे सीने पर लगा ली और अपना पूरा वजन मेरे ऊपर डाल दिया.
और अब उसकी आँखें धीरे धीरे बन्द होने लगी।
अब उसके कान मेरे होंठों के बिल्कुल पास में थे।
मैंने अपने बायें हाथ की गति को थोड़ा तेज़ किया तो पारुल का शरीर भी उसका साथ छोड़ने लगा.
अब मैं उसके बालों की वो सौंधी खुशबू सूंघ पा रहा था जिससे मेरे लंड ने काम पीछे से जारी रखा और मेरे हाथ के साथ साथ अब पारुल की गांड भी धीरे धीरे हिलने लगी।
हम दोनों बस को भूल चुके थे और अपनी कामवासना की आग में उतर चुके थे जिसमें अब न जाने शर्म के साथ साथ ना जाने क्या क्या जलना बाकी था।
मैंने फ़ोन वाली बात को उसके कान में दोहराया- बताओ इस बस में मेरा कोई अपना है?
मगर वह कुछ ना बोल पायी, बस हाँ में गर्दन हिला दी।
मैंने भी देर ना करते हुए सीधे उसकी चूचियों को रगड़ना शुरू कर दिया और चूत को मुट्ठी में पकड़ पकड़ कर रगड़ने लगा.
और पीछे से मेरा लंड पारुल की गांड में कपड़े फाड़ कर घुसने को तैयार था।
फिर मैंने देर ना करते हुए अपने बाएं हाथ को पारुल की सलवार के अंदर घुसा दिया जो उसकी पेंटी को हटाता हुआ सीधा उसकी चूत पर जा लगा।
ऐसा अहसास मैंने मेरी जिंदगी में उस दिन से पहले कभी नहीं किया था.
और पारुल अपनी किये न जाने कौन सी दुनिया में पहुंची थी।
उसने अपना चेहरा घुमा कर मेरे सीने में गड़ा दिया और ज़ोर ज़ोर से साँसें लेने लगी।
जैसे ही मैंने अपना हाथ पारुल की चूत पर घुमाया तो मुझे पारुल की चूत पर हलके हल्के रोयेंदार बाल महसूस हुए.
अब तो पारुल के साथ साथ मेरी भी सांसें उखड़ती जा रही थी।
मैंने धीरे से पारुल से पूछा- कुछ महसूस हो रहा है?
तो उसने बिना कुछ बोले अपने हाथ को मेरे चूत वाले हाथ के ऊपर रख दिया और दबाने लगी.
वह अपने दोनों पैरों को थोड़ा खोलने की कोशिश करने लगी।
फिर जैसे ही पारुल की मख़मली चूत का थोड़ा सा मुँह खुला, मैंने अपनी उँगलियों से उसके दाने को रगड़ दिया जिससे उसके ऊपर वासना छा गयी या शायद यह कहूँ कि वह भी मेरी तरह कई जन्मों से भूखी थी।
दाने को रगड़ते ही उसने अपने हाथ की पकड़ मेरे हाथ पर और मजबूत बना ली और बुरी तरह से रगड़ने के लिए मुझे उकसाने लगी.
वह अपनी गांड को मेरे लंड पर और ज़ोर ज़ोर से रगड़ने लगी जिससे पारुल और मेरा शरीर हिलने लगा।
मैंने धीरे से पारुल के कान में कहा- हम तुम्हारे बैडरूम में नहीं, बस में हैं।
तब वह अपनी वासना से थोड़ी बाहर आयी और अपने दाएं हाथ से कपड़े ठीक करने लगी.
मगर बायां हाथ अभी भी मेरे हाथ के ऊपर पकड़ बनाये हुए था।
फिर मैंने अपनी उंगली का आगे हिस्सा पारुल की चूत में घुसाना चाहा तो पारुल ने गुस्से में मेरी तरफ देखा और आँखों ही आँखों में मना किया।
मैं भी समझ गया और दोबारा से पारुल के चूत के दाने को अब उंगली और अँगूठे से रगड़ने लगा जिससे पारुल की चूत से मुझे मेरे हाथ पर गर्म गर्म निकलता हुआ महसूस हुआ और पारुल अब आँखें किये अपने होंठों को अपने दांतों तले दबा दबा कर काटे जा रही थी।
लगभग 5 मिनट बाद पारुल ने अपने हाथ का दबाव और बढ़ा दिया और मेरे हाथ को अपने पैरों के बीच दबाने लगी।
मैं भी समझ गया था कि पारुल अब अपनी चूत की आग को लावा में तब्दील करने वाली है जो मेरे हाथ से होता हुआ जाएगा।
और तभी वर्जिन पुसी फिंगर करने से पारुल का पूरा शरीर अकड़ गया और पारुल पसीने मे बुरी तरह से भीग गयी.
उसने अंतिम बार मेरे लंड को अपनी गांड से दबाया और मेरे हाथ को अपनी चूत पर ऐसे दबाया जैसे अभी मेरा पूरा हाथ अपनी चूत में डाल लेगी।
तभी उसकी अकड़न के साथ उसकी चूत का अमृत मेरे हाथ से बहता हुआ पारुल की पेंटी में भर गया.
और पारुल ऐसे ही 2 मिनट तक मुझसे चिपकी रही … फिर सीधे खड़े होकर उसने अपनी सलवार ठीक की.
तब तक मैं पारुल की चूत के ऊपर से अपना हाथ हटा चुका था.
मगर मेरा लंड अभी तक वैसे का वैसे था।
तब पारुल ने मेरी आँखों में देखा और संतुष्टि भरी मुस्कान के साथ अपने होंठ दबा दिए जैसे मुझे किस करने का आमंत्रण दे रही हो।
मगर तब तक मेरा बस स्टैंड आ चुका था और मैं जैसे तैसे अपने खड़े लंड को भीड़ भरी बस से लकर उतरा और जल्दी से घर का रास्ता नापने लगा.
फिर घर जाते ही सीधा बाथरूम में जाकर लंड को हिलाकर शांत किया।
दोस्तो, वो बस का वाकया आज भी मेरी आँखों के सामने ऐसे की ऐसे घूमता है।
तो कैसे लगी मेरी अभी तक की वर्जिन पुसी फिंगर स्टोरी?
मुझे मेल करके जरूर बतायें ताकि जल्द ही मैं आप सब लोगों के लिए आगे की कहानी लिख सकूँ।
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