दोस्ती से आगे मर्द मर्द का रिश्ता- 1

दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता है, जो इंसान खुद चुनता है. बाकी रिश्ते तो हमें ईश्वर बना कर देता है.

यहां तक कि शादी के रिश्ते के लिए भी यही कहा जाता है कि जोड़ियां तो ऊपर से बनकर आती हैं.
फिर चाहे अरेंज मैरिज हो या लव मैरिज हो.

बस ‘दोस्त’ और ‘दोस्ती’ को इस दुनिया में अनुपम माना गया है.
कहते हैं न कि दोस्त आपकी सबसे बेशकीमती जायदाद है.

ऐसे ही दो जिगरी दोस्त हैं, अवि और रूप.
दरअसल उनके नाम अविनाश और रूपेश थे.

दोनों बचपन के दोस्त, साथ स्कूल गए, साथ कॉलेज गए, साथ में हैदराबाद जाकर नौकरी की.
उधर साथ में रहना खाना होता था.

फिर पता नहीं कब यह दोस्ती का रिश्ता एक जिस्म दो जान होकर, दोस्ती की सीमाओं से आगे निकल गया.

वैसे भी फर्क तो सोच में है, वरना दोस्ती भी मोहब्बत से कम नहीं होती.

आज दोनों एक दूसरे के साथ, एक दूसरे लिए और एक दूसरे के लिए ही जीते हैं.
दोनों ने अपने को एक जैसा बना लिया.

एक जैसी हेयर स्टाइल, एक जैसी बॉडी, एक जैसी बॉडी लैंग्वेज, एक जैसे कपड़े मतलब सच में दो जिस्म एक जान.

फिर 28 साल के दोनों मर्द निहायत ही आकर्षक.
वे दोनों जिम से कसी हुई कड़क बॉडी के मालिक थे.

बस अवि थोड़ा गेहुंआ था और रूप एकदम गोरा. पर दोनों बेहद आकर्षक लगते थे.
जो भी देखता, देखता रह जाता.

दोनों इतने खूबसूरत और मनमोहक थे कि लड़कियां तो क्या लड़के भी उनसे छेड़खानी करते थे और लड़के-लड़कियां उनके सिर्फ एक इशारे के इंतज़ार में रहते कि एक इशारा मिले और इन दोनों के साथ रात बिताने को मिल जाए.

दोनों का कभी मूड होता तो एक या दो लड़कियों को बुलाकर अपना स्वाद बदल लेते थे.

कभी-कभी कोई मन पसंद लड़का भी मिलता, तो उसके साथ थ्री-सम करते. पर जिसके साथ भी करते, उसे फ्लैट पर नहीं बुलाते, अलग होटल बुक करते, रात भर रंगरेलियां मनाते.

उनका फ्लैट तो समझो वासना का महल था.
फ्लैट के कोने-कोने में, कामदेव ने वासना के काम-बाण चला रखे थे. फ्लैट में कपड़े प्रतिबंधित थे.
वे दोनों पूरी तरह से नंगे रहते.

फिर जब दो जवान सुंदर मर्द एक दूसरे को नंगा देखते तो उनकी कामाग्नि दहक उठती और एक दूसरे की नग्न देह का मिलन करके दोनों अपनी वासना को शांत करते थे.

कभी भी, कहीं भी कामदेव काम-बाण चला कर नंगे जिस्म में वासना का प्रवाह कर, दोनों के लंड खड़े कर देते, दोनों वहीं शुरू हो जाते.

चाहे किचन हो या लिविंग रूम हो. या फिर बाल्कनी हो या वाशरूम हो.
बेडरूम तो कामवासना की राजधानी थी.

वे दोनों प्रार्थना करते थे कि उनका जीवन इसी तरह चलता रहे.

पर हम जैसा सोचते हैं, वैसा होता तो नहीं है. जो ऊपरवाला चाहता है, वही होता है.
ऊपर वाले के इशारे पर ही तो मैं इनके ‘वासना महल’ में आ रहा था.

मैं सुहास कुमार, उस समय 35 साल का था. मैं गोरा हूँ औऱ दिखने में भी ठीक-ठाक हूँ, औसत बॉडी है.
कुल मिलाकर 35 साल के लोग जैसे दिखते हैं, उनसे काफी ठीक दिखता था.

फिर भी यदि उन दोनों से तुलना करूं तो वे दोनों दिखने में सोना थे और मैं पीतल.

मैं अवि को पिछले चार साल से जानता हूँ और अवि और रूप के रिश्ते के बारे में भी.

अवि जब भी मिलता था तो वह मुझे सब बताता था.
उन दोनों ने किस लड़की को बुलाकर क्या किया?
लड़के के साथ क्या किया?

अवि जब भी पुणे आता तो हमारी डेट प्लान करता.
उसकी फैमिली काफी बड़ी और रईस थी इसलिए हम दोनों उसके घर पर तो नहीं मिल सकते थे.

वह होटल बुक करता और मैं ऑफिस से जल्दी निकल कर उससे मिलने पहुंच जाता.

करीब 3-4 घण्टे हम दोनों होटल के रूम में बंद रहते.
फिर मैं अपने घर चला जाता और वह उसके घर.

अब मैं उसके शहर जा रहा था.

ऑफिस के काम से मुझे हैदराबाद जाना था तो मैंने अवि को मैसेज किया कि मैं 3 दिन बाद हैदराबाद आ रहा हूँ.

अवि बहुत खुश हुआ.
उसने मुझे कॉल किया- मैं आपको लेने एयरपोर्ट आऊंगा और आप हमारे साथ रहोगे, हमारे फ्लैट में!

‘अरे ऑफिस की तरफ से होटल में बुकिंग हो गई है.’
‘मुझे कुछ नहीं पता, आप हमारे साथ रहोगे.’

‘अरे पर सुनो, वहां रूप भी है. रूप किसी तीसरे को तुम्हारे फ्लैट में स्वीकार करेगा? तुम रूप से बात कर लो, फिर सोचते हैं.’
‘मुझे किसी से बात नहीं करनी. मैं आपको लेने आऊंगा और आप हमारे साथ रहोगे. बाकी सब मैं देख लूंगा.’

हम दोनों ने बिना सोचे समझे वादा कर दिया था और उसके बाद दुविधा में पड़ गए.

अवि को लगा कि रूप और वह दो जिस्म और एक जान हैं. वह आसानी से मान जाएगा, पर ऐसा नहीं था.
अवि को रूप से बहुत मिन्नतें करनी पड़ीं.

आखिर रूप ने अनमने मन से मानते हुए कहा कि अपनी दोस्ती का तो बस इतना उसूल है कि जब तू कुबूल है, तो तेरा सब कुछ कुबूल है.
रूप ने बहुत गहरी बात कही थी, पर रूप मान गया.

इस खुशी में अवि ने कुछ ध्यान ही नहीं दिया.

मैं अपना लगेज लेकर एयरपोर्ट लॉबी से बाहर आया तो अवि सामने ही खड़ा था.
अवि ने मुझे रिसीव करने के लिए आज ऑफिस से छुट्टी ले ली थी.

वह उतना ही सेक्सी और हैंडसम लग रहा था.
उसे देख कर मेरा लंड तुरंत खड़ा हो गया और मेरे ट्राउज़र में लौड़े वाली जगह पर तुरंत पहाड़ जैसा उभार आ गया.

यह पहाड़ बन जाना उस वक्त मेरे लिए बहुत ही शर्मनाक था क्योंकि लॉबी में बहुत से लोग थे और लंड का पहाड़ अजीब लग रहा था.

हम दोनों तेजी से एक दूसरे के पास आए.
पर वहां बहुत से लोग थे तो हम दोनों ने खुद पर कंट्रोल किया और फ्रेंड्स की तरह गले मिले.

गले मिलते समय अवि ने मेरे कान में कहा- कंट्रोल कीजिए, आपका सामान बाहर आने को मचल रहा है.
उसकी इस बात पर हम दोनों मुस्कुरा दिए और पार्किंग की तरफ गए.

अवि ने गाड़ी जहां खड़ी की थी, वह थोड़ी अलग जगह थी और उधर ज्यादा लोग भी नहीं थे.

उसने लगेज डिक्की में रखा और मेरे पास आकर मुझे कस कर अपनी आगोश में ले लिया, मेरे होंठों पर जोर से स्मूच किया और मेरे लिए आगे का दरवाजा खोल दिया.

मैं अन्दर बैठा.
अवि ड्राइविंग सीट की तरफ जाकर बैठा और गाड़ी निकाली.

शाम के सवा पाँच बज रहे थे.

रास्ते में अवि ने ज्यादा बातें नहीं की.
वह बीच-बीच में मेरी तरफ देखता और जब मैं उसकी तरफ देखता तो सामने देखने लग जाता.

आखिर जन्नत का मुकाम आ ही गया.
उस बिल्डिंग के 12 वें माले पर उन दोनों दोस्तों का वासना-महल था.

हम दोनों लिफ्ट से ऊपर गए.

मैंने महसूस किया कि अवि कुछ अजीब ही तरीके से बर्ताव कर रहा था, उसमें कुछ बेचैनी सी थी.

जब दो शरीर, चाहे मर्द-औरत हों या दो मर्द … एक-दूसरे के सामने नंगे हो चुके हों और दोनों में शारीरिक संबंध हो चुके हों, तो वे बहुत क्लोज हो जाते हैं. बहुत अनौपचारिक और खुला व्यवहार करते हैं, पर अवि तो बहुत ज्यादा संजीदा सा हो रहा था.
उसको देख कर लग ही नहीं रहा था कि ये मेरे साथ सेक्स कर चुका है.

खैर … हम दोनों ऊपर गए और अवि ने फ्लैट का लॉक खोला.

जैसे ही अवि ने फ्लैट का दरवाजा खोला, सामने की बाल्कनी का दरवाजा खुला होने के कारण हवा का झोंका परदों को उड़ाता हुआ अन्दर आया.
मैं सीधे बाल्कनी के दरवाजे के पास जाकर खड़ा हो गया.
इतनी ऊंचाई से हैदराबाद बहुत सुंदर दिख रहा था.

अवि मेरा सामान अन्दर कमरे में रख कर आया और मेरे पीछे खड़े हो गया.
मेरा ध्यान अभी भी बाहर ही था.

अवि ने उसका हाथ मेरे कंधे पर रखा.
मैं पीछे पलटा तो अवि ने झट से मुझे अपनी बांहों में भर लिया और मेरे होंठों से उसके होंठ मिला दिए.

मेरे जिस्म से खेलते हुए वह मेरे होंठों का रसपान कर रहा था.
अवि की बेचैनी और उसका असामान्य व्यवहार अब समझ में आया.

दरअसल उससे कंट्रोल नहीं हो रहा था और मुश्किल से खुद को कंट्रोल कर रहा था.
इसीलिए फ्लैट में आते ही मुझ पर टूट पड़ा.

पर जिस तरह से वह मेरे जिस्म को बांहों में जकड़ रहा था और बेताबी से होंठ चूस रहा था तो ऐसा लगा जैसे महीनों से भरा बैठा था.

अवि बहुत बेताब था क्योंकि उसने एकदम से मेरी शर्ट और ट्राउज़र को निकाल दिया था.

मैं सिर्फ अपनी चड्डी में रह गया था और उसने अपनी जींस और चड्डी भी निकाल दी थी.
वह पूरा नंगा हो गया.

आआआह … दो मर्दों के नंगे जिस्म, एक दूसरे के नंगे गर्म जिस्म से क्या चिपके, उस वासना-महल में हवस का तूफान आ गया.
दोनों एक दूसरे के नंगे जिस्मों को अपनी बांहों में जकड़ कर एक दूसरे के जिस्म में समा लेना चाहते थे.

मेरा लंड मेरी चड्डी में कसमसा रहा था, तो चड्डी को निकाल कर लंड को आज़ाद कर दिया.
अब दोनों मर्द पूरे नंगे थे.

हम लोग इतनी बेताबी से एक दूसरे के नंगे जिस्म से खेल रहे थे कि एक जगह खड़े ही नहीं हो पा रहे थे.
कभी इधर, कभी उधर हो रहे थे और उसी बेताबी में, मैं सोफे से टकरा कर सोफे पर गिर पड़ा.

मैं सोफे पर लेट गया था.
मैंने अपने एक पैर को घुटने से मोड़कर नीचे लटका दिया और दूसरे पैर को सोफे की बैक के ऊपर रख दिया.

मेरे दोनों पैर खुले हुए थे और मेरा फड़फड़ाता लंड अवि को चीख-चीख कर बुला रहा था कि आओ और मुझे मुँह में ले लो.
पर अवि तो मेरे नंगे जिस्म के ऊपर लेट गया.
उसका नंगा बदन मेरे नंगे बदन पर था.

वह मेरे मुँह में उसकी जीभ डालकर मेरे होंठों को, मुँह को और जीभ को चूस रहा था और अपने 7 इंच के लंड से मेरे 6 इंच के लंड को रगड़ रहा था.

थोड़ी देर बाद अवि ने मेरे होंठों को चूसना बंद किया और बेताबी से मेरे नंगे जिस्म से खेलते हुए और मेरे नंगे बदन को चाटते हुए नीचे सरक गया.
वह मेरे पैरों के बीच बैठकर मेरे लंड को हाथ में पकड़ मेरे लंड को चूसने लगा.

ओह गॉड … यही तो मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है.
आह … लंड चुसवाने से बड़ा सुख कुछ और हो ही नहीं सकता.

अवि जैसे-जैसे मेरे लंड को चूसता जाता, मैं एक नई दुनिया में खोता जाता.

करीब 20 मिनट तक अवि ने मेरे डार्क ब्राउन चॉकलेटी लंड को चूस-चूस कर लाल कर दिया.

मैंने अवि को मेरे ऊपर से हटाया और सोफे से उठकर उसे बाथरूम में ले गया और शॉवर के ठंडे पानी के नीचे दोनों के गर्म जिस्मों को एक किया.

शॉवर के नीचे भी अवि ने मेरे फड़फड़ाते लंड को चूसकर बावला कर दिया.
अब न तो मुझमें धीरज था और न ही अवि में.

शॉवर को बंद करके एक दूसरे के नंगे बदन के एक-एक अंग को पौंछने के बाद एक दूसरे के नंगे जिस्म को बांहों में भरते हुए और एक-दूसरे को चूमते हुए बेडरूम में आ गए.

यह बेडरूम ही हमारी कामवासना को अंतिम बिन्दु पर पहुँचाने की स्थली था.

बेडरूम की बाल्कनी से एक अजीब सी मंत्र मुग्ध और मदहोश कर देने वाली महक आ रही थी.

बाल्कनी से आती ठंडी हवा के झोंके और 9×6 के बड़े से बेड पर बिछी सुर्ख लाल कलर की मलमली चादर … हमारे नंगे तन बदन में खून के प्रवाह को बड़ा कर उत्तेजित कर रही थी.

अवि को मैंने बेड पर उल्टा लेटने को कहा और वह लेट गया.
मैं उसके ऊपर मेरे नंगे बदन को उसके नंगे बदन से चिपका कर उल्टा लेट गया.

पोजीशन बनते ही मैंने अपने 6 इंच के तनतनाये हुए लंड को अवि की गांड में घुसेड़ दिया.
‘आआहहह …’

गुदामैथुन के बाद हम दोनों थक कर सो गए थे.

मैं उस बड़े से बेड पर नंगा सोया हुआ था.

टाइम देखा, तो रात के 9 बज रहे थे.
बाहर से दो लोगों के बात करने की आवाज आ रही थी.
मेरा लंड अभी भी खड़ा ही था.

मुझे आलस जैसा अनुभव हो रहा था पर अब सो भी नहीं सकता था.
मैं उठा और ऐसे ही खड़े लंड के साथ लिविंगरूम में चला गया.

उधर देखा अवि-रूप दोनों धीरे-धीरे कुछ बहस कर रहे थे.
रूप कुछ नाराज़ दिख रहा था और अवि उसे समझाने की कोशिश कर रहा था.

दोस्तो, अपनी इस गे सेक्स कहानी के अगले भाग में मैं आपको आगे सुनाऊंगा कि क्या हुआ.
आप मुझे अपने कमेंट्स से बताएं कि आपको मेरी ये सेक्स कहानी कैसी लग रही है.
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कहानी का अगला भाग: दोस्ती से आगे मर्द मर्द का रिश्ता- 2