पति के बेस्ट फ्रेंड ने मौके का फायदा उठा के चोदा

सेक्स प्ले विद ब्यूटीफुल भाभी का मजा मेरे पति के ख़ास दोस्त ने मेरे साथ किया. एक रात मुझे उनके घर में रुकना था पर सोने की जगह की तंगी के कारण मैं अपने पति के दोस्त के साथ सो गयी.

यह कहानी सुनें.

दोस्तो, मेरा नाम सुशीला है. मेरी उम्र 28 साल है।
मेरी शादी मेरे घर वालों ने 20 की उम्र में ही करा दी थी।
मेरे पति का नाम रवि है.

रवि एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करते हैं और महीनों महीनों के लिए घर से बाहर रहते हैं।

आज मैं आपके समक्ष एक ऐसी कहानी लाई हूँ जिसे पढ़कर आप लोग अपने हाथों को अपने कंट्रोल में नहीं रख पाएंगे।

यह कहानी मेरे और मेरे पति के बचपन के दोस्त के साथ हुई घटना पर आधारित है।

मैं आपको अपने बारे में बता दूँ कि मेरा रंग एकदम गोरा है और मेरा 36-32-40 का फिगर बहुत ही कातिलाना है.
ऐसा मेरा नहीं मेरे चाहने वालों का कहना है.

रूप रंग की बात खत्म करके सीधे सेक्स प्ले विद ब्यूटीफुल भाभी कहानी पर आती हूँ.

उस दिन मैं अपनी साड़ी लपेट चुकी थी और बालों को आखिरी स्वरूप दे रही थी कि तभी सासु माँ की आवाज़ आयी- तैयार हुई या नहीं? सब लोग आ चुके होंगे. ज्यादा देर नहीं करते अब!

मैं तुरंत कंघा नीचे रखते हुए बोली- हो गया बस!
और कमरे से बाहर निकल गयी।

सासु जी तैयार थी पड़ोसी के यहाँ एक रात्रि जागरण में जाने के लिए।
मैंने तुरंत कमरे को ताला लगाया और सासुजी के साथ पैदल घर से निकल पड़ी।

सासु जी कुछ बोलती हुई चल रही थी पर मैं किन्ही और ख्यालों में थी.
पति को दूसरे शहर गए 4 महीने हो चुके थे और मुझे उनकी बहुत याद आ रही थी, विरह के कुछ महीने काट रही थी।

दस मिनट के बाद ही हम पड़ोस के मकान के सामने खड़े थे.
अंदर काफी चहल पहल थी, रात्रि जागरण का माहौल बन चुका था।

एक बड़े हाल में सारे पुरुष लोगों के लिए व्यवस्था थी।

वहाँ की मेरी भाभी, सहेलियां दूसरे थोड़े छोटे कमरे में थी अपने पीहर और घनिष्ट सहेलियों के साथ!
इसलिए थोड़े अभिवादन के बाद मैंने उनको डिस्टर्ब करना ठीक नहीं समझा।

अंदर एक बड़े कमरे में सारी औरतें बैठी बातों में मशगूल थी.
हमारे आते ही उन्होंने स्वागत किया और हम लोग बैठ गए।

कुछ औरतें बातों में मग्न थी, कुछ ने सोने की तैयारी कर ली थी।
पता चला कि पूजा आरती का कार्यक्रम सुबह 5 बजे होने वाला है।

मैं अपने पुराने दिनों और विचारों में खो गयी और अब मध्य रात्रि होने वाली थी.

अब तक सारी औरतें और पुरुष सो चुके थे।
शायद सुबह 5 बजे उठने की तैयारी में!

मगर मेरी आँखों में नींद नहीं थी, भीड़ भरा माहौल देख कर मेरी नींद वैसे भी जा चुकी थी।

मैं कमरे से बाहर लघु शंका के बहाने किसी तरह औरतों के पाँव बचाते हुए बाहर निकली।

तभी सामने मोहित दिखाई दिया, जिसका यह घर था।
एक हंसमुख और मुखर स्वभाव का युवक मेरे पति का हम उम्र!
जब भी किसी फंक्शन में जाता … अपनी बातों से वह समां बाँध लेता।
मुझे ऐसे व्यक्तित्व हमेशा आकर्षित करते हैं।

पिछली बार जब कुछ महीने अपने पति से दूर थी तब जब भी वह मिलता, मेरी कुशलक्षेम जरुर पूछता और मदद के लिए पूछता।
मगर कभी उसे मदद का मौका नहीं दिया।

मुझे देखते ही उसने हँसते हुए सवाल दाग दिया कि मेरे पति कब आने वाले हैं।
मुझे भी पक्का पता नहीं था पर बोल दिया- कुछ और महीने लगेंगे।

फिर उसने पूछा कि मैं अब तक सोई क्यों नहीं जबकि सारे लोग सो चुके थे।
उसने मुझे सुबह 5 बजे के प्रोग्राम के बारे में बताया।

मैंने उसे समझाया- इस भीड़ में मैं नहीं सो सकती।
उसको मुझ पर दया आयी और कुछ सोचने लगा।

उसकी इस उधेड़बुन को देखते हुए मैंने एक सवाल दाग दिया- आप अब तक क्यों नहीं सोये?

उसके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान तैर गयी और हाथ में पकड़ी कम्बल को थोड़ा उठाते हुए बोला कि उसने अपने सोने का एक विशेष प्रबंध किया है … घर की छत पर!
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ और पूछा- छत पर तो बहुत मच्छर होंगे. और सुबह होने तक ठण्ड भी बढ़ जाएगी।

वह मेरे सवालों के जवाब के साथ तुरंत तैयार था।
उसने बताया कि उसने एक मच्छरदानी का इंतज़ाम पहले से कर लिया है और ठण्ड के लिए कम्बल लेने ही आया था।
यह कम्बल भी उसने किसी और सोते हुए व्यक्ति के सिरहाने से निकाल कर लिया है।

मैं उसकी इस शरारत पर खिलखिला पड़ी।
मेरे चेहरे पर हंसी देख कर उसको अच्छा लगा और मुझे मदद के रास्ते सोचने लगा।

मैंने मजाक करते हुए कहा- आपके लिए अच्छा है कि विशेष इंतज़ाम है, पर हमारा क्या?
यह बात उसकी दिल को लगी।

उसने मुझे सुझाव दिया कि मैं छत पर मच्छरदानी में सो जाऊं।

मुझे लगा कि वह मजाक कर रहा है.
पर वह इस बात पर गंभीर था।

उसने अब और ज्यादा आग्रह किया तो मैंने उसको टालने के लिए बोल दिया- फिर आप कहाँ सोएंगे?
उसने बोला कि वह नीचे ही सो जायेगा पुरुषों के कमरे में!

मैंने उसका प्रस्ताव यह कहते हुए ठुकरा दिया- यह नहीं हो सकता, सारी महिलाये यहाँ हैं, मैं वहां अकेली जाऊंगी. और किसी को पता लगा तो अच्छा नहीं होगा।

उसने बताया कि छत पर कोई नहीं हैं और मैं छत पर लगे दरवाज़े को अंदर से बंद करके सो सकती हूँ. किसी को पता नहीं चलेगा और सुबह सबके जागने तक वापिस नीचे आ सकती हूँ।

मुझे कुछ और नहीं सूझा तो बहाना मार दिया- मैं वहाँ अकेले नहीं सो सकती, डर लगता है।

कुछ सोचने के बाद वह बोला कि वह मेरे साथ सो जायेगा।
उसके यह कहते ही एक चुप्पी सी छा गयी।
उसे अहसास हुआ कि उसने क्या बोल दिया.
और तुरंत अपनी बात सुधारते हुए बोला कि वह पास में ही दूसरा बिस्तर लगा कर सो जाएगा।

मैंने तुरंत मना कर दिया कि मेरी वजह से मैं उसको मच्छरों का भोजन नहीं बना सकती।
वह अपने आप को लाचार महसूस करने लगा।

हमेशा मदद के लिए ऑफर करने वाला आज मदद मांगने पर नहीं कर पा रहा था।

उसने अपना आखिरी प्रस्ताव रखा- मच्छरदानी पलंग के साइज की हैं जिसमें दो लोग आसानी से सो सकते हैं. और अगर मुझे आपत्ति ना हो तो हम दोनों वहां सो सकते हैं।

मेरे हां कहने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता था.
पर अब उसने एक ब्रह्मास्त्र छोड़ा कि अगर मैं उस पर थोड़ा सा भी भरोसा करती हूँ तो हां कर दूँ।

अब मैं बुरी तरह फंस चुकी थी।
न हां कह सकती और न ही ना कह सकती।
एक तरफ कुआं दूसरी तरफ खाई।

ऐसा नहीं था कि मैं उस पर भरोसा नहीं करती।
परन्तु यह समाज … अगर किसी को पता चल गया तो कुछ ना होते हुए भी मुझे बहुत कुछ होने वाला था।
अपने पति को मैं क्या जवाब दूंगी।

मैं हां या ना कुछ कह पाती … उसके पहले ही उसने मुझे निर्देश दिया कि मैं अपनी सासुजी को बोल दूँ कि मैं दूसरे कमरे में भाभी (उसकी पत्नी) के साथ सो रही हूँ. और फिर मैं छत पर आ जाऊं … वह मेरा इंतज़ार करेगा।
यह कहते हुए वह सीढ़ियाँ चढ़ते हुए चला गया।

मेरे पाँव अब जम गए.
फिर मैं औरतों वाले कमरे की तरफ गयी.
सासुजी दूसरे कोने में सो रही थी और उन तक पहुंचने के लिए काफी लोगों को लांघ कर जाना था.
मैंने सासुजी की नींद ख़राब करना ठीक नहीं समझा।

मैं मुड़ कर सीढ़ियों की तरफ भारी कदमों से बढ़ने लगी।

किसी तरह बेमन से मैं छत पर पहुंची.
वहाँ वो मेरा इंतज़ार कर रहा था।

उसने छत के दरवाज़े पर कुण्डी लगाते हुए मुझे आश्वासन दिया- चिंता ना करो, किसी को पता नहीं चलेगा।

उसने अच्छे से गद्दा लगा रखा था और मच्छरदानी के अंदर दो तकिये लगे हुए थे।

कहीं से उसने मेरे लिए दूसरे तकिये का इंतज़ाम कर लिया था … शायद फिर किसी के सिर के नीचे से खींच कर!

अब हम दोनों एक ही बिस्तर पर आस पास लेटे आसमान को निहार रहे थे।
चांदनी रात थी, आसमान साफ़ था तारों से भरा हुआ!

बहुत खुशनुमा रात का मौसम था।
हल्की सी हवा चल रही थी पर ठण्ड शुरू नहीं हुई थी इसलिए कम्बल एक कोने में पड़ा था।

थोड़ी देर हम ऐसे ही बातें करते रहे.
फिर थोड़ी ख़ामोशी … और पता ही नहीं चला कब मेरी आँख लग गयी।

अचानक मैंने अपने सीने पर कुछ हलचल महसूस की और मेरी नींद टूट गयी.
पर आँखें अभी भी बंद ही थी।

मैंने महसूस किया कि कुछ उंगलियां मेरे ब्लाउज के हुक को खोल रही थी।
मैं डर से काँप उठी … क्या यह उसी की हरकत है?

अब मैं क्या कर सकती थी … अगर चिल्लाई तो लोग पूछेंगे कि मैं यहाँ अकेले क्यों आयी और मुझ पर ही शक करेंगे।
मैंने आँखें बंद किये हुए ही कुछ इंतज़ार करना ठीक समझा।

तब तक सारे हुक खुल चुके थे और मेरे खुले ब्लाउज के अंदर कुछ हवा प्रवेश कर गयी।
मैं फिर से कांप उठी और एक अनिष्ट की आशंका से गिर गयी।

अब मैं इंतज़ार करने लगी कि आगे क्या गलत होने वाला है।

अब उसका हाथ मेरे पेट पर था.
पूरे 4 महीने बाद किसी पुरुष ने मुझे छुआ था, पूरे शरीर में एक तरंग सी दौड़ गयी।
कुछ मजा भी आ रहा था पर डर ज्यादा था।

उसने अब मेरे पेटीकोट से साड़ी की पटली निकालने की कोशिश की जिसमें वह कामयाब नहीं हुआ.
शायद मेरे जाग जाने के डर से उसने ज्यादा ताकत नहीं लगाई।

मैंने चैन की सांस ली।

अब उसने मेरा ब्लाउज सामने से और खुला कर दिया.
शायद वह मेरे स्तन देखना चाहता था.
पर कसी हुई ब्रा की वजह से कुछ हो नहीं पाया।

ब्रा का हुक पीठ पर था और मैं पीठ के बल ही सोई थी.
इस बात की मुझे ख़ुशी थी।
वह चाहते हुए भी ब्रा नहीं खोल सकता था।

कुछ मिनट ऐसे ही निकल गए और वह मेरी कमर और ऊपरी सीने पर ऐसे ही हाथ मलता रहा.

फिर जब उसे अहसास हुआ कि कुछ होने वाला नहीं तो उसने मेरे ब्लाउज के हुक वापिस लगा दिए।
मैंने चैन की लम्बी सांस ली और थोड़ी देर बाद कब फिर आँख लग गयी पता ही नहीं चला।

मेरी नींद में दूसरी बार व्यवधान आया.
इस बार मैं करवट लेकर उसकी और पीठ करके सोई हुई थी इसलिए आँखें खोली.

अभी भी गहरी चांदनी रात थी और नींद खुलने का कारण वही था।

पर थोड़ी देर हो चुकी थी, ब्लाउज के सारे हुक खुल चुके थे।
फिर से मेरे अंदर डर की लहर कौंध गयी कि इस बार कैसे बचूंगी क्योंकि मैं करवट लेकर सोई थी और ब्रा का हुक उसकी तरफ था।

कुछ सोच पाती, उसके पहले ही खट की आवाज़ से ब्रा का हुक खुल चुका था और अचानक सीने पर कस के बाँधा हुआ प्रोटेक्शन ढीला हो चुका था।

मैंने एक साये को अपने चेहरे की तरफ आते महसूस किया और तुरंत अपनी आँखें बंद कर ली।

उसके हाथों ने अब मेरी ब्रा, मेरे शरीर के एक महत्पूर्ण अंग से उठा दिया और हवा की लहरें अब मेरे स्तनों को छू रही थी।

उस साये में मैंने महसूस किया कि अब वह मेरे शरीर के उस भाग को घूर रहा हैं जिसे देखने की असफल कोशिश उसने कुछ देर पहले ही की थी.
पर अब वो कामयाब हो चुका था।

मैं अपने आप को कोसने लगी कि क्यों मैंने करवट ली।
और उससे भी पहले क्यों मैं उसको ना नहीं बोल पाई छत पर आने के लिए।

पर अब क्या हो सकता था … या अब भी बहुत कुछ रोका जा सकता था।

अगले कुछ क्षणों के बाद उसने एक हाथ से मेरे स्तन को दबोच लिया था.
मैं अंदर से पूरी तरह सिहर गयी थी।

पर मैं कुछ बोलने या करने की हिम्मत नहीं जुटा पायी और यह प्रार्थना करने लगी कि इससे बुरा कुछ न हो.
या शायद अंदर ही अंदर कहीं से यह चाहती थी कि 4 महीने के एकांतवास को टूटने दिया जाये।
शायद मैं कुछ निर्णय नहीं ले पा रही थी और खुद को भाग्य के हाथों छोड़ दिया था।

कुछ देर ऐसे खेलने के बाद उसके हाथ फिर मेरी साड़ी की पटली की तरफ बढ़े और कुछ सेकंड की जद्दोजहद के बाद पटली पेटीकोट के बाहर थी और अगले कुछ मिनटों में मेरी पूरी साड़ी पेटीकोट से अलग हो चुकी थी।

अब मैं एक अबला की नारी तरह पड़ी थी जिसके शरीर पर सिर्फ पेटीकोट था, ऊपर के वस्त्र सामने से खुले थे।
फिर से एक खट की आवाज़ हुई और मेरे पेटीकोट का नाड़ा खुल चूका था और उसने मेरा पेटीकोट कमर से नीचे खिसकाना शुरू कर दिया।

मैंने आंखें खोली तो पेटीकोट पूरा निकल कर मेरी आँखों के सामने पड़ा चिढ़ा रहा था।
और कुछ सोचने के पहले ही मेरे नीचे के अंगवस्त्र भी निकल कर पेटीकोट का साथ पड़े थे।

अब मुझे अहसास हो चुका था कि बचने का कोई रास्ता नहीं हैं और आत्मसमर्पण कर देना चाहिए या तुरंत उठ कर फटकार लगा देनी चाहिये कि उसकी यह हिम्मत कैसे हुई।

फिर किसी डर की आशंका से या काफी समय से शरीर की जरूरत पूरी नहीं होने की वजह से मैं चुपचाप लेटी रही।

मेरे नग्न शरीर को देख कर अब शायद उसका अपने आप पर नियंत्रण नहीं रहा था और पीछे से उसका शरीर मुझसे चिपका हुआ था और रह रह कर ऊपर नीचे रगड़ रहा था।
उसका एक हाथ मेरे कमर, कूल्हों और स्तनों पर फिर रहा था।

फिर उसने अपना शरीर मुझसे अलग कर लिया.
मुझे लगा कि उसका इरादा बदल गया लगता है और मैं सुरक्षित हूं.

पर मैं गलत थी।
फिर कुछ कपडे निकलने की आवाज़ आयी।

अब मैंने अपने पीछे के निचले हिस्से में एक गर्म बदन का स्पर्श महसूस किया.
मुझे समझते देर नहीं लगी कि उसने क्या किया है।
अब वह पूरा नग्न मुझसे पीछे से फिर चिपक गया।

इस बार शायद कुछ ज्यादा ही जोर से, शायद नग्नावस्था में उसकी इन्द्रियां और सक्रिय हो गयी थी।

उसका लचीला अंग मेरे पुट्ठों को छू गया।
अब शायद कहीं न कहीं मैं अपने आप को तैयार कर चुकी थी एक अनपेक्षित मिलन के लिए।

उसका शरीर बराबर मुझे पीछे से रगड़ रहा था।
मैं महसूस कर पा रही थी कि उसका लचीला अंग धीरे धीरे कठोर होता जा रहा था।

अब वह जोर जोर से मेरे स्तनों को दबाते हुए कुचलने लगा.
पर अब मुझे बुरा नहीं लग रहा था।

कुछ देर बार उसने हाथ स्तनों से हटा लिया।

उसका कठोर अंग अब मेरे दोनों टांगों के बीच खोजी कुत्ते तरह कुछ ढूंढ रहा था।
शायद अंदर प्रवेश का मार्ग … पर मिल नहीं रहा था।

एक दो बार वह मेरे योनि द्वार के आस पास भी पंहुचा था।

थोड़े प्रयासों के बाद ही उसे मेरे शरीर पर गीली जमीन मिल गयी और वह रुक गया।
उसका लिंग अब मेरे योनि द्वार पर था।

मेरी साँसें जैसे रुक गयी।

एक भटकते हुए प्यासे राहगीर के होठों पर जैसे किसी ने पानी का गिलास रख दिया था।

उसके लिंग ने थोड़ी ऊपर नीचे हरकत की और थोड़ा सा योनि में अंदर गड़ गया।

मैंने आँखें जोर से बंद कर ली … अगले क्षणों में जो होने वाला था, उसकी तैयारी में!

पति के अलावा पहली बार कोई पुरुष मेरी योनि में प्रवेश करने वाला था।

इतनी देर की रगड़ से मेरे अंदर पहले ही थोड़ा गीला हो चुका था।

मक्खन की तरह धीरे धीरे उसका लिंग फिसलते हुए अंदर आता गया और उसके मुँह से सिसकी निकलती गयी।
मेरा हाथ चेहरे के पास ही था, मैंने अपने होठों पर हाथ रख कर अपना मुँह बंद कर दिया।

उसने अपने हाथ से एक बार फिर मेरा स्तन दबोच लिया।

मैं अपने काफी अंदर तक उसके कठोर लिंग को महसूस कर पा रही थी।
जितनी धीमी गति से वो अंदर गया, उसी धीमी गति से उसने फिर उसको आधे से भी ज्यादा बाहर निकाला।

अंदर और बाहर निकलते समय उसका लिंग मेरी योनि की दीवारों को रगड़ते हुए जा रहा था और मेरा पूरा शरीर अंदर ही अंदर कम्पन कर रहा था।

दो सेकंड के विराम के बाद एक बार फिर उसी धीमी गति से वो दीवार रगड़ता हुआ अंदर गया।
जितना अंदर वो गया, उससे मुझे अहसास हो गया उसकी लम्बाई कितनी ज्यादा रही होगी.
और जिस तरह वो मेरी दीवारों से रगड़ खा रहा था, इतनी मोटाई मैंने तो पहले महसूस नहीं की थी।

काफी समय तक वह ऐसे ही मालगाड़ी की रफ़्तार से धीरे धीरे अंदर जाता, थोड़ा रुकता और बाहर आता … फिर थोड़ा रूककर अंदर जाता।

हर बार अंदर जाते ही उसकी एक लम्बी आह निकलती।

पता ही नहीं चला कब उसकी मालगाड़ी फ़ास्ट ट्रेन में बदली और कब राजधानी एक्सप्रेस बन गयी।
उसका लिंग अंदर योनि में एकत्रित पानी को तेजी से चीरता हुआ आ जा रहा था जिससे छपाक छपाक की आवाज़ आने लगी थी।

उसके झटकों की गति बढ़ने के साथ छपाक की आवाजें काफी तेज हो गयी थी।

अब वह तेजी से बार बार झटके मारते हुए अंदर बाहर हो रहा था और मेरी उत्तेजना भी बढ़ती जा रही थी।

उसके मुँह से अब आहें निकलने लगी और समय के साथ तेज होती गयी।
मुझे डर लगा कही कोई सुन न ले।
रात के सन्नाटे में ऐसी आवाज़ें ज्यादा ही गूंजती हैं।

पर मैं मन ही मन चुपके से उसका आनन्द भी लेती जा रही थी।
कुछ ही देर में न चाहते हुए भी मैं भी उस आनंद में भीग गयी।

मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी आवाज़ अभी तक दबा के रखी हुई थी जो अब आपे से बाहर होता जा रहा था।
मेरे होंठों के बीच से एक आवाज़ छूट ही गयी।

इसके पहले कि मैं अपने हाथों से ओर जोर से मुँह को दबाती, उसने सुन लिया और डरने की बजाय मेरी आह को मेरी मौन स्वीकृति मान कर उसने कुछ जोर के झटके मुझे मारे जिससे मेरी हल्की चीख निकलने लगी।

अब कोई फायदा नहीं था आवाज़ दबाने का … जिस चीज़ के लिए मैं कुछ महीने से तड़प रही थी, वह मिली तो भी इस तरह से … और वह भी किस व्यक्ति से, यह सपने में भी नहीं सोचा था।

उसने अब मेरे ब्लाउज और ब्रा को पूरी तरह मेरे शरीर से अलग कर दिया था।
अब मेरे शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं था और ना ही उसके!

पर अब हमें कपड़ों की परवाह नहीं थी, हम दोनों नंगे इन यौनानन्द के क्षणों को पूरी तरह सफल बनाने में जुट गए।

हम दोनों की आहें एक ही सुर में छपाकों की आवाज़ से ताल मिला रही थी।

इतनी देर करने के बाद भी उसकी शक्ति क्षीण नहीं हुई थी और उसी गति से उसके झटके निर्बाध जारी थे।

मैं अपनी योनि के बाहर कुछ तरल पदार्थ रिसता हुआ महसूस कर पा रही थी जो उसके लिंग के बाहर आते वक़्त साथ बाहर आ रहा था।

अब मैं अपने चरम की तरफ बढ़ती जा रही थी और दुआ कर रही थी कि मुझसे पहले कहीं वह छूट ना जाये।

पर शायद इन मर्दों को दूसरी औरतों के साथ करते वक़्त ज्यादा ही ताकत मिल जाती है।

मेरा नशा अब सर तक चढ़ने लगा था और जैसे चक्कर आने लगे.
मैं स्वयं को निश्तेज महसूस करने लगी थी.
ये चरम के नजदीक पहुंचने के संकेत थे।

गैर मर्द के साथ मस्ती करते हुए मैंने अपनी टांगें अब खोल दी, जिससे बाहर छलके पानी से हवा टकराई और एक ठंडक का अहसास हुआ।

टांगें खुलने से उसको और भी बड़ा रास्ता मिला और उसने अपना लिंग और गहराई में डाल दिया।
शायद एक इंच और गहरा अंदर उतर गया था वो!

अगले कुछ मिनट बहुत कीमती थे.
उसने जिस गहराई से एक के बाद एक तेज झटके मारे, मैं पूरा छूट गयी.
मेरी छोटी छोटी आहें चरम पर आते ही एक लम्बी चीख में तबदील हो गयी.

और उसके बाद मेरी कुछ हल्की चीखें निकली और मैंने अपना चरम प्राप्त कर लिया।

मेरे चरम से उसका उत्साहवर्धन हुआ और वह भूखे भेड़िये की तरह आवाजें निकालते हुए झटकों पर झटके मारता रहा।
मेरे स्तनों को वह अब बुरी तरह से मौसम्बी की तरह निचोड़ रहा था।

फिर एक झटका उसका इतनी गहराई में उतरा कि लिंग बाहर नहीं निकला और वहीं पड़ा हुआ कुलबुला कर फुफकारने लगा।

मैंने अपने अंदर एक गर्म लावा महसूस किया.
उसने सारा पानी अंदर छोड़ दिया था।

वह कुछ देर तक ऐसे ही निढाल पड़ा रहा।

सारी प्रतिक्रियायें शांत हो चुकी थी जैसे एक तूफ़ान के बाद की शांति।

अब भी वह मुझे झकड़े हुए था और उसके शरीर का एक हिस्सा मेरे शरीर में था।

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धन्यवाद.