सफर में मिला अजनबी चूतों का मजा- 2

न्यू चुत की कहानी में मैंने एक रात में 3 अजनबी चूत मारी जिनमें से एक नई कोरी चूत थी कमसिन लड़की की. तीनों चूत एक ही घर की थी. यह सब हुआ कैसे? खुद पढ़ें!

दोस्तो, मैं विशू राजे आपको अपनी चुदाई की कहानी में एक अजनबी सफर पर अजनबी चूत की चुदाई का मजा सुना रहा था.

कहानी के पहले भाग
अजनबी घर में अजनबी भाभी की चुदाई
में अब तक आपने पढ़ा था कि एक अजनबी घर में मैं रात को सरिता की चुदाई का मजा ले रहा था.

सरिता की चुदाई करके मैं उस पर ही लेट गया था.
वह मेरे नीचे दबी थी.

फिर वह उठ कर जाते समय मेरे कान में फुसफुसा कर बोली कि आज की रात हम लोग तुम्हें सोने नहीं देंगी.

अब आगे न्यू चुत की कहानी:

मैंने चादर ओढ़ ली और सोने की कोशिश कर ही रहा था, तभी मेरे करीब कोई आया.

यह आहट बड़ी धीमी थी.
मैंने देखा तो ये रत्नावली थी.

वह जमीन पर लुढ़कती हुई मेरे पास आई थी.
उसके पैरों में पायलों की छम छम की आवाज से सबको पता चल गया होगा कि रत्नावली वहां से यहां मेरे करीब आई होगी.

खैर … मैं चुप था.

तभी उसने अपना हाथ मेरे बदन पर रख दिया.
मैं फिर भी सोने का नाटक करने लगा.

उसने उसके हाथों को हरकत दी और उसका हाथ सीधे मेरे लंड पर आ गया.
बस … उसका हाथ लगते ही लंड खड़खड़ा कर जाग गया और सलामी देने लगा.

तभी वह मेरे कान में बोली- मुझे ठंडा नहीं करेंगे क्या?
मैं बोला- जी, कोई देख लेगा!

तब वह बोली- सबने देख लिया है कि आप सरिता को ठोक रहे थे. वह भी कलमुंही सबसे पहले नंबर लगा बैठी.
मैं डर गया.

मैं बोला- कौन कौन देख रहा था?
तो वह बोली- मैं, ससुर जी, अंजलि सबने देखा और मजा लिया.

‘अभी भी देख रहे हैं क्या?’ मैं दबी आवाज में बोला.
उस पर वह बोली- हां, मगर डरने की जरूरत नहीं है. सब मस्ती कर रहे हैं.
तभी मैंने सब पर नजर घुमाई, तो सरिता इस तरफ ही देख रही थी.

फिर मैंने रघुराव जी के पास नजर घुमाई, तो मुझे कुछ अजीब सा लगा.
रघुराव जी कामुक सांसें ले ऱहे थे.

मेरे कुछ पल्ले नहीं पड़ा.
फिर शक हुआ कि वह गर्म हो गए होंगे और अपना लंड हिला रहे होंगे.

मैंने नजर नीचे की तो मुझे झटका लगा.
नीचे अंजलि अपने दादा का मुरझाया लंड मुँह में लिए चूस रही है और दादा जी अपनी एक उंगली पोती की चूत में घुसेड़ कर मजा ले रहे हैं.

अब मैं भी बिंदास हो गया और रत्नावली को किस करने लगा.

किस करते करते मैंने उसके सारे कपड़े उतार दिए.
वह एकदम नंगी हो गयी थी.
मैं भी उसी हालत में था, जिस हालत में सरिता मुझे छोड़ गयी थी … नंगा.

किस करते करते मैं उसके चूचे दबाने लगा.
उसके दोनों चूचे एकदम कड़क हो गए थे.
मैंने जोर जोर से उन्हें दबाया.

फिर थोड़ा ऊपर होकर मैंने उसके मुँह में अपना लंड ठूंस दिया.

पहले उसने आनाकानी की, फिर मुँह खोल कर लंड को अन्दर ले लिया और चूसने लगी.
कुछ ही देर में पूरा लंड मुँह में भरकर चूसने लगी.

मेरे लंड का टोपा फूलने लगा.
कुछ मिनट तक बिना रुके वह चूसती रही थी.

अब मेरा पानी निकलने को हुआ, मैंने उसके मुँह से अपना लंड निकाल लिया और मैंने उसके पैरों को अलग कर दिया.

उसकी गांड के नीचे तकिया घुसा दिया ताकि उसकी चूत खुल कर मेरे सामने आ सके.

अब मैं उसकी चूत पर टूट पड़ा, अपनी जुबान को नुकीली करके मैं उसकी फांकों को चाटने लगा, अपने होंठों में पकड़ कर खींचने लगा, उसके दाने को जुबान से सहलाने लगा, दाने को होंठों में पकड़ कर चूसने लगा.

रत्नावली पागल होने लगी छटपटाने लगी, सर पटकने लगी और पैर हिलाने लगी.

उसकी पायल की आवाज पूरे घर में गूंज रही थी.
उसने मेरे सर को पकड़ कर अपनी चूत पर दबा दिया.

मेरी जीभ अब अन्दर तक मतलब चूत के अन्दर उसकी गर्भाशय तक चलने लगी.
वह थरथराई और उसने मेरे सर पर दबाव और बढ़ा दिया.
बस उसी पल वह सरसराती हुई झड़ने लगी.
उसने अपनी चूत का सारा रस मेरे मुँह पर छोड़ दिया.
मैं भी चाट कर पी गया.

अब वह शिथिल पड़ गयी.

मैंने उसे औंधा करके घुटनों के बल लिटा दिया.
ये सब खुले आम हो रहा था.

मैंने एक नजर अंजलि पर मारी तो वह अब अपने दादा पर उलटी लेटी थी.
मतलब दादा उसकी चूत चाट रहा था और अंजलि दादा का मुरझाया हुआ लंड मुँह में लिए चूस रही थी.

इधर सरिता हम दोनों को देख रही थी.

मैंने रत्नावली को घुटनों पर करके झुकाया और मैं पीछे से आ गया.

अपनी हथेलियों में मैंने बहुत सारा थूक ले लिया और उसे रत्नावली की गांड पर मल दिया.
फिर उंगली से थोड़ा सा थूक अन्दर भी सरका दिया और अपने लंड पर भी लगा दिया.
उसके बाद मैंने लंड को उसकी गांड पर सैट किया और दोनों हाथों से उसकी कमर पकड़ कर जोर देकर लंड उसकी गांड में पेलने लगा.

वह आगे को सरकने लगी.

पर मैंने अपनी पकड़ और मजबूत कर ली, उसको दर्द होने लगा.

मेरा दबाव बढ़ने लगा.
लंड का टोपा अन्दर घुस चुका था पर अटक गया था क्योंकि रत्नावली ने गांड का छेद कसके जकड़ा हुआ था.

वह रोने लगी और मुझसे छूटने का प्रयास करने लगी पर न भाग पायी.

तब वह मुझसे बोली- निकालो, मेरी गांड फट गयी. मैं आपके पांव पड़ती हूँ. पर मुझे छोड़ दो … बहुत दर्द हो रहा है. मुझे जाने दो.

पर मैंने उसको कसके पकड़ा और सोचा धीरे करने से पीड़ा ज्यादा होगी; एक ही झटके में उतार दो लंड.
बस मैंने जोर का धक्का मारा, पूरा लंड गांड की हर दरवाजे को तोड़ता हुआ अन्दर घुस गया.

रत्नावली की आंखें बड़ी हो गईं.
अब वह रोने लगी, छटपटाने लगी … आगे को सरकने को होने लगी और उठने को हुई.
पर मेरी पकड़ के आगे सब बेकार साबित हुआ.

मैंने अपना झंडा उसकी गांड में घुसेड़ कर लहरा दिया.
पांच मिनट तक ना मैं हिला … ना उसको हिलने दिया.

उसके बाद जैसे ही उसका दर्द थोड़ा कम हुआ, मैंने धक्के देने चालू किए.

उसका दर्द अभी भी था, हर धक्के पर चिल्ला रही थी पर मैं ठोके जा रहा था.

ठप ठप की आवाज घर में गूंज रही थी.
मैं सोच रहा था कि बुड्डे की बहू की गांड चुद रही थी.

उसके पति ने नहीं गांड नहीं मारी थी पर आज एक अजनबी गांड में लौड़ा घुसेड़ कर चोदे जा ऱहा था, गांड बजाए जा रहा था.

ठोक ठोक कर उसकी गांड लाल हो गयी थी, पर मुझे रहम न आया.
अब मैंने आसन बदला, लंड अन्दर ही अटका कर उसे सीधा किया.
मैंने लंड बाहर आने ही नहीं दिया.

अब उसकी चूत मेरे सामने थी, पर लंड गांड में अटका पड़ा था.

मैंने फिर से लंड गांड में चलाना शुरू किया.
उसकी टांगों को अपने हाथों में थामा और धाड़ धाड़ पेलने लगा.

पूरे बीस मिनट तक उसकी टांगें ऊपर करके उसकी गांड के छेद को ठोक ठोक के ढीला कर दिया, तब जाकर मेरा पानी निकला.
आह … क्या कड़क गांड थी साली की … चोद कर मजा आ गया.

मैं झड़ कर उसके ऊपर ही लेट गया.

उसने आहिस्ता आहिस्ता अपनी टांगें नीचे की.
उसकी गांड में मेरा सारा रस भर गया था, टांगें नीची होते ही वह सरस अब बहने लगा था.

इन दो लुगाइयों को चोद कर मैं काफी थक चुका था.

कुछ देर तक यूं ही रत्नावली के ऊपर लेटा रहने के बाद मैं उठ कर बाथरूम चला गया.

लौड़े की साफ सफाई करके वापस आया.
मुझे आया देख कर रत्नावली उठ खड़ी हुई. पर सीधी खड़ी होने में उसे तकलीफ हो रही थी, वह कमरतोड़ चुदी थी. वह चलना तो जैसे भूल ही गयी थी … लंगड़ाने लगी थी.

लंगड़ाती हुई वह बाथरूम में चली गयी.

मैंने फिर से एक बार सबको देखा.
सरिता हंस रही थी लेकिन अंजलि अभी भी लगी पड़ी थी.

दोनों दादा पोती 69 की पोजीशन में लगे थे, दोनों एक दूसरे की चाट रहे थे.

मैं अंजलि के पीछे आया मतलब रघुराव जी के सर के पास बैठ गया.
उसकी नाइटी पीछे से थोड़ी उठी थी पर नीचे से खुली थी.
तभी तो वह बुढ़ऊ चूत चाट रहा था.

मैंने उसकी नाइटी निकाल फेंकी.
अब वह नंगी थी.

मैं उस पर अपना हाथ फेरने लगा.
कमसिन लौंडिया के चिकने बदन पर हाथ फेरते ही मेरा लंड फिर से सलामी देने लगा.

देता भी क्यों नहीं भोसड़ी वाला … एक कमसिन बदन की गर्मी जो महसूस हो रही थी.

मैं भी तो नंगा ही था. मैंने अपना लंड ले जाकर उससे अंजलि की चूत को कुरदने लगा.
मेरी इस हरकत से मेरा लंड बूढ़े के होंठों पर छूने लगा.

मैं और जोर से अंजलि की चूत पर अपना लंड घिसने लगा.
अब बुड्ढा अपनी जुबान से मेरे लंड को भी चाटने लगा.

अब हो ये रहा था कि अंजलि बूढ़े का लंड चूस रही थी. बुड्डा अंजलि की चूत चाट रहा था.
मेरा लंड अंजलि की चूत पर और बूढ़े के होंठों के बीच में रगड़ खा रहा था.

दो अलग अलग किस्म की गर्मी मेरे लंड पर महसूस हो रही थीं.

कुछ ही देर में मैं तीसरी चुदायी करने के लिए तैयार हो चुका था.

इस बार एक भी जवान जिस्म मेरे लौड़े को हासिल होने वाला था.

मेरी तो मानो लॉटरी लग गयी थी.
एक रात में दो जिस्म मैं भोग चुका था तीसरा भोगने जा रहा था, न्यू चुत की चुदाई होनी थी.

बूढ़े की जुबान से मेरा लंड गीला हो चुका था.

मैंने अंजलि को थोड़ा सा उठाया और अपने आपको सैट किया.
लंड को उसकी नमकीन चूत पर लगाया और उसी के ऊपर औंधा हो गया.

अब मैंने उसके ऊपर अपनी पकड़ बना ली थी. पोजीशन सैट होते ही मैंने कमर को एक जोरदार झटके से हिलाया ही था कि मेरा आधे से ज्यादा लंड अंजलि की न्यू चूत में जा फंसा.

वह चिल्लाई- उई मां मर गयी … फट गयी हरामजादे … मार डाला निकाल अपना मूसल आह दर्द हो रहा है मर गयी … भोसड़ी वाला चोद रहा है कि चूत का खून कर रहा है.

ऐसा बोलती हुई अंजलि छटपटाने लगी.
वह मेरी पकड़ से भागने का जुगाड़ देखने लगी.

मैंने उसको दबोच रखा था.
उसका छटपटाना जारी था पर मैंने उसको एक इंच भी हिलने नहीं दिया.
यदि वह हिल जाती तो मेरा लंड निकल जाता.

कुछ मिनट तक मैं उसी स्थिति में उसको दबोचे पड़ा रहा और उसे किस करता रहा.

अब बारी उसकी झिल्ली फटने की थी. वह भी अब शांत हो रही थी.

मैंने फिर से एक पहलवानी धक्का मारा, तो पूरा का पूरा लंड सरसराता हुआ सारी दीवारों को चीरता फाड़ता हुआ आखिरी छोर तक जा पहुंचा.
अंजलि रोने लगी, उसकी सील टूट चुकी थी.
खून उसके दादा के मुँह पर गिर रहा था.

उसकी आंखें बाहर निकल आई थीं, जैसे चूत में लंड ना हो कोई छुरा घुसा दिया हो.
वह छटपटाने लगी थी, पर कोई फायदा नहीं हुआ.

मैं भी बिना रुके उस चोदने लगा, धक्के मारने लगा.
वह लगातार रो रही थी, पर मुझ पर कोई असर नहीं हुआ.

तभी रत्नावली भी लंगड़ाती हुई बाहर आई.
उसने मुझे देखा, वह एकदम से शॉक हो गयी.

उसकी बेटी दादा के मुँह पर चुद रही थी. ठप ठप की आवाज आ रही थी.
साथ में वह गाली भी बक रही थी पर चुद रही थी.

कुछ देर बाद वह रोना बंद कर चुदने का मजा लेने लगी थी.
तभी उसने अपने दादा का लंड जोर से पकड़ा.
दादा चिल्लाया और साथ में ये भी चिल्लाती हुई झड़ने लगी.
बूढ़ा मरते मरते बचा.

झड़ने के बाद उसको अहसास हुआ कि उसने क्या दबाया था.
अब मुझे भी चोदने में आसानी हो रही थी.

उसका रस निकलने के कारण मेरा लंड ऊपर नीचे आसानी से हो रहा था.
मैं लय में उसको चोद रहा था.

तभी वह फिर से एक बार कड़क हो गयी.

अब मेरा भी पानी निकलने को था.
हम दोनों एक साथ बहने लगे.

थोड़ा पानी गिर गया पर मेरा लंड अभी भी उसकी चूत में फंसा था.

मैंने उसे वैसे ही अपने बदन पर कसके पकड़ा और उठ गया.
मैं अंजलि वैसे ही उठाये हुए बाथरूम में चला गया.

उसे बाथरूम उतारा और उतरते ही मेरा लंड बाहर निकल आया.
उससे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था पर मैंने सहारा देकर उसको खड़ा किया.

हम दोनों का रस उसकी चूत से निकल कर बहने लगा.
मैंने ही उसे साफ किया, खुद को भी साफ किया और दोनों बाहर आ गए.

मैं उसे दोनों हाथों में उठा कर लाया था. उसकी मां और चाची दोनों हमें देख कर हंसने लगी थीं.

हमारे आते ही बुड्डा बाथरूम में गया. मैंने अंजलि को अपने बगल में ही लिटा लिया और उन दोनों को इशारा करके नजदीक सोने को बोल दिया.

दोनों आईं.

हम सब साथ में सो रहे थे.
तभी बुड्ढा भी बाहर आया.
उसने भी देखा कि हम सब साथ में सो रहे हैं. पर वह कुछ बोला नहीं; चुपचाप अपने बिस्तर पर जाकर सो गया.

सुबह फिर से एक बार मैंने सरिता को चोदा.
फिर नहा धोकर बाहर निकला तो जाते वक्त मैंने तीनों को 500-500 रूपए दिए.
तीनों खुश थीं.

मैं घर से निकला और बूढ़े को बोला- अच्छा चाचा जी, मैं चलता हूँ.

ये बोल कर मैं चल दिया. पहले मैकेनिक को बुलाने गया, फिर कार सही करवा कर आगे निकल गया.

दोस्तो, आपको मेरी न्यू चुत की कहानी कैसी लगी, मेल और कमेंट्स से बताएं.
धन्यवाद.
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