मैंने दीदी की मर्ज़ी से उसे स्कूल बस में चोदा, फिर हम घर चले गए, किसी को कुछ पता नहीं चला। लेकिन जब हम भाई बहन दोबारा चुदाई करने बस में गए तो …
नमस्कार दोस्तो, मैं निखिल हाज़िर हूँ कहानी का अगला भाग लेकर।
मेरी सेक्स स्टोरी के पिछले भाग
स्कूल बस में दीदी को चोदा-2
में आपने पढ़ा कि कैसे मैंने युविका दीदी की मर्ज़ी से उसे स्कूल बस में चोदा और बाद में हम घर चले गए थे और घर में किसी को कुछ पता भी नहीं चला।
कहानी के इस भाग में आप पढ़ेंगे कि कैसे मेरी दीदी को उस स्कूल बस के ड्राइवर ने दीदी को चोदा, वो भी दीदी की मर्ज़ी से।
तो मैं उसके बारे में आपको बता देता हूँ। उस ड्राइवर का नाम दास है और वो 46 साल का है। पेशे से तो वो एक ड्राइवर है पर वह बहुत समझदार इंसान है। सब उसकी तारीफ़ करते हैं। उसकी बीवी और बच्चे गाँव में रहते थे।
वो हमारी कॉलोनी में ही रहते थे। कॉलोनी के गेट के एक तरफ वॉचमैन का कमरा था और दूसरी तरफ़ दास अंकल का छोटा था कमरा था जो की कॉलोनी वालों ने उन्हें उनके अच्छे व्यवहार के चलते बना के दिया था।
कुछ दिनों तक हमने माहौल को शांत करने के लिए पहले की तरह रहना शुरू कर दिया। पर एक बार दीदी की चुदाई करने के बाद अब मैं फिर से दीदी को चोदना चाहता था। इसलिए मैं रात को दीदी को वीडियो कॉल करता था और हम दोनों नंगे हो कर एक दूसरे को देखते थे और हस्तमैथुन करते थे।
सुबह हम दिनों कॉलेज के लिए निकल जाते थे। दरअसल हम दोनों अलग अलग कॉलेज में पढ़ते थे, इसलिए हम इकट्ठे नहीं जा पाते थे।
अब बहुत दिन बीत गए थे, मुझसे रहा नहीं जा रहा था तो मैंने दीदी को कहा- दीदी, अब मुझ से रहा नहीं जा रहा है। मेरा लण्ड आपकी चूत में जाने के लिए बहुत तरस रहा है।
दीदी ने कहा- मैं भी उतनी ही उतावली हुई जा रही हूँ। एक काम करते हैं कि कल फिर से पुराने वाले प्लान के हिसाब से फिर से स्कूल बस में जाते हैं।
तो मैं मान गया और खुश हो गया।
घर में हम दोनों एक दूसरे को अब छूते भी नहीं थे ताकि कोई शक न हो जाये। तो हम प्लान के मुताबिक हम दोनों घर से चले गए और रात को बस में आ गए।
दीदी ने उस दिन लाल रंग का टॉप और पैंट पहन रखी थी जो इतनी टाइट थी कि दीदी की चूत के साथ एकदम सट कर लगी हुई थी।
मैं दीदी को चोदने के लिए मरा जा रहा था तो मैंने झट से दीदी को अपनी बाँहों में भर लिया और अपनी गोदी पर उठा लिया और दीदी को ज़ोर से चुम्बन किया। दीदी भी मेरा पूरा साथ दे रही थी।
मैंने चुम्बन करते हुए ही दीदी नीचे रखा और उनकी पैंट खोलने लगा। जैसे ही मैंने दीदी की पैंट खोली तो मैंने देखा कि दीदी ने अंदर कुछ नहीं पहना था।
दीदी से मैंने पूछा- आपने पैंटी क्यूं नहीं पहनी है?
तो दीदी ने कहा- मैंने अंदर पैंटी-ब्रा कुछ नहीं पहना है क्यूंकि मैं एक भी पल व्यर्थ नहीं जाने दे सकती।
यह सुन कर मैं बहुत खुश हो गया और दीदी के सारे कपड़े जल्दी से उतार दिए।
मैं दीदी को किस किये जा रहा था. एक हाथ से उनके चुच्चे मसल रहा था और एक हाथ से उनकी साफ़ चिकनी चूत से खेल रहा था।
थोड़ी ही देर में दोनों गर्म हो गए।
अब मैंने अपनी पैंट खोली और दीदी को नीचे झुक कर मेरा लण्ड चूसने को कहा। तो दीदी जल्दी से झुक गयी और मेरे लण्ड को अपने हाथों से पकड़ा और पहले अपनी जीभ को मेरे लण्ड के टोपे हिलाया और बाद में पूरा लण्ड मुंह में डाल दिया।
दीदी मेरे लण्ड को ऐसे ही चूसती जा रही थी। हम दोनों इसमें मादहोश हो गए थे। हमें इसके अलावा कुछ पता नहीं चल रहा था। मेरी और दीदी की आँखें बंद हो गयी थी।
तभी मुझे मेरी आँखों पर रोशनी महसूस हुई।
मैंने आँखें खोली तो देखा कि कोई बस के दरवाज़े के पास खड़े हो कर हम पर टॉर्च की रोशनी कर के हमें देख रहा है। पर दीदी को अभी भी कुछ पता नहीं चला था। तो मैंने दीदी के मुँह से अपना लण्ड निकाला और अपनी पैंट नीचे से उठते हुए दीदी को बोला कि दीदी कोई हमें बाहर से देख रहा है।
तो दीदी ने भी जब बाहर देखा तो वो डर गई। दीदी एकदम नंगी ही थी तो वो उठ कर जल्दी से पीछे चली गयी जहाँ उसके कपड़े पड़े थे। मैं भी अपनी पैंट पहनने लगा।
उतने में वो आदमी अंदर आ गया.
मैंने सोचा पता नहीं कौन है और अब हमारा पता नहीं क्या होगा।
उसने टॉर्च मेरी आँखों में मार रखी थी इसलिए वो मुझे दिखाई नहीं दे रहा था।
तभी वो मेरे पास आया और बोला- तुम दोनों तो ठाकुर साहब के बच्चे हो न?
उसकी आवाज़ सुन कर मुझे पता चल गया कि ये इसी बस के ड्राईवर दास अंकल हैं।
मैं डर गया था इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा और अपना सर नीचे कर लिया।
दास अंकल ने कहा- तुम दोनों ये क्या कर रहे थे। मुझे तो यकीन नहीं होता। एक तो तुम दोनों भाई-बहन हो और ऊपर से इस तरह तुम मेरी बस में आ के ये सब गन्दी हरकतें कर रहे हो।
मैंने डर के मारे उनसे कहा- दास अंकल! हमें माफ़ कर दो। आप प्लीज पापा को कुछ मत बताना। नहीं तो वो हम दोनों को मार देंगे।
तभी दास अंकल ने युविका दीदी पर टॉर्च मारी। दीदी अभी भी नंगी ही थी। अँधेरे की वजह से उसे कपड़े मिल नहीं रहे थे। टॉर्च की वज़ह से दीदी का पूरा नंगा शारीर दिख रहा था। थोड़ी देर के लिए अंकल भी दीदी को देखते रह गए। अंकल भी दीदी का सेक्सी फिगर देख कर मुग्ध हो गए थे।
इस बात का दीदी और मुझे पता चल गया। तो दीदी नंगी ही उठ कर वहां से आई और दास अंकल के पास आ कर खड़ी हो गयी।
दीदी ने अंकल का दायाँ हाथ पकड़ा और उनके हाथ को अपनी छाती के पास ले आयी और रोने का नाटक करते हुए बोली- अंकल प्लीज! हमें माफ़ कर दीजिए। इसमें हमारी भी क्या गलती है। हम दोनों जवान हैं और जवानी की प्यास बुझाने के लिए हमने ये सब किया।
ये सब करते हुए दीदी जानबूझ कर अंकल का हाथ अपने चुच्चों से स्पर्श करवा रही थी।
दास अंकल का मन भी अब डोलने लगा था।
तो दास अंकल बोले- ठीक है कि ज़वानी में ये सब होता है, पर तुम दोनों तो भाई बहन हो। अगर तुम्हारे पापा को पता चल गया तो और लोगों को पता लग गया तो? इससे कितनी बदनामी होगी तुम्हें पता भी है?
तो दीदी बोली- अंकल! अगर हम बाहर किसी और से ये सब करते तो वो इस बात को फैला भी सकते थे। जिससे हमारी बदनामी ज़्यादा होती। इसलिए हम दोनों ने एक दूसरे के साथ सम्बन्ध बना लिए ताकि बात हम दोनों के बीच में ही रहे।
अंकल भले ही समझदार थे पर युविका दीदी के ज्यादा चालाक कोई नहीं हो सकता था। दीदी ने ऐसी कई बातें करके उनको अपनी बातों में फंसा दिया।
तभी दीदी ने कहा- अंकल, प्लीज आप किसी को कुछ मत बताना। बदले में आप जो कहेंगे वो मैं करूँगी।
यह सुनकर अंकल थोड़े उत्तेजित हो गए जो उनके चेहरे में साफ़ दिख रही थी।
तो दीदी ने फिर बोला- हाँ दास अंकल, आप जो बोलो वो मैं करूँगी चाहे वो कुछ भी हो।
यह सुनकर पहले मुझे भी हैरानी हुई कि दीदी ये क्या बोल रही हैं। पर बाद में समझ आया कि दीदी इसमें भी अपना ही फ़ायदा ढूंढ रही है तो मैं चुपचाप सब सुनता रहा।
दास अंकल भी थोड़ी देर सोच में डूबे रहे और बाद में उन्होंने हिम्मत कर के बोला- देखो बेटी, तुम लोग ये सब जो कर रहे हो ये सब मैं तुम्हारे पापा को बता सकता हूँ। पर तुम तो अपने ही बच्चे हो इसलिए मैं उन्हें कुछ नहीं बताऊंगा। पर बदले में जैसा तुमने कहा मैं तुमसे कुछ चाहता हूँ।
दीदी को तो पता था कि अंकल क्या बोलेंगे पर फिर भी दीदी ने कहा- हाँ अंकल! बताइये आप क्या चाहते हैं। मैं सब कुछ दूंगी।
तो अंकल बोले- देखो बेटी! हर आदमी की ऐसी जरूरतें होती हैं। तुम लोगों की भी थी, इसलिए तुम ये सब कर रहे थे। तो ऐसी ही ज़रूरतें मेरी भी हैं। मैं लगभग पूरे साल घर नहीं जाता। जब स्कूल की छुट्टियां पड़ती हैं तभी ही जा पाता हूँ और जब घर जाता हूँ, तो घर के काम में इतना व्यस्त होता हूँ कि मैं अपनी बीवी के साथ सम्भोग कम ही कर पाता हूँ। तो मेरी वो इच्छा पूरी नहीं होती है।
दीदी ने अनजान बन कर पूछा- तो आप क्या चाहते हैं अंकल?
दास अंकल ने कहा- तो मैं चाहता हूँ कि मेरी ये इच्छा तुम पूरी करो।
दीदी को मन में ये सुनकर बहुत ख़ुशी हुई पर दीदी ने अपना मायूस चहरा बना लिया और थोड़ी देर तक सोचते हुए कहा- ठीक है अंकल। अगर आप यही चाहते हैं तो मैं ये सब लूंगी। तुम क्या कहते तो निखिल?
तो मैं भी थोड़ा सा नाटक करते हुए बोला- दीदी इससे हमारी जान बच जायेगी। तो मेरे ख्याल से आप ये कर लो।
दीदी ने कहा- ठीक है तुम भी यही कहते हो तो मैं ये कर लेती हूं।
फिर दीदी ने दास अंकल से कहा- ठीक है अंकल मैं तैयार हूँ। आप मेरे साथ जो करना चाहते हो, कर सकते हो।
ये सुन कर दास अंकल ख़ुश हो गए और कहा- ठीक है पर मैं इस बस में नहीं कर सकता। तुम मेरे कमरे में चलो, वो ज़्यादा सुरक्षित रहेगा।
अंकल ने हमसे कहा- बेटी, तुम मेरे साथ चलो। हम इन पेड़ों के पीछे से कमरे तक जायेंगे और बेटा तुम इसके कपड़े और बाकी का सामान ले कर आ जाओ।
फिर अंकल दीदी को नंगी ही वहां से ले गये और मैं भी पीछे से सामान लिए आ गया। दीदी को नंगी चलते हुए देख कर मेरा मन दीदी को चोदने का कर रहा था पर मैंने कण्ट्रोल कर लिया।
अब हम ड्राईवर अंकल के कमरे में पहुँच गये थे।
उसका कमरा 10′ x 10′ का था। उसमें ज्यादा सामान नहीं था। एक बेड, 3 सन्दूक, एक गैस, खाना बनाने का सामान और कुछ और चीज़ें।
अब अंकल ने मुझे कहा- बेटा तुम कहीं जगह ढूंढ कर बैठ जाओ.
और दीदी को उन्होंने बिस्तर पर लिटा दिया।
मैं जाकर सामने से एक बोरी ले कर उसके ऊपर बैठ गया।
उन्होंने कुछ देर दीदी ने नंगे बदन को निहारा और बोला- तुम्हें देख के मुझे अपनी बेटी की याद आ गयी। वो तुम्हारे जितनी गोरी और खूबसूरत तो नहीं है पर उसके चुच्चे और चूतड़ बिल्कुल तुम्हारे जैसे हैं और वो है भी तुम्हारी ही उम्र की।
तो मैंने पूछा- अंकल, आपको कैसे पता कि आपकी बेटी के अंग इतने बड़े बड़े हैं?
अंकल- बेटा, मैंने एक बार उसको नहाते हुए देख लिया था। उस रात मेरे मन में अपनी ही बेटी को चोदने के सपने आने लगे थे।
कहानी जारी रहेगी.
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कहानी का अगला भाग: स्कूल बस में दीदी को चोदा-4