तीन की तिकड़ी मेरी गांड बिगड़ी

हिंदी गांड सेक्स कहानी में मैं गोरा चिकना लड़का हूँ. मैं मेरी गांड आईने में देखता तो सोचता कि कितना मजा आयेगा जब कोई लड़का मेरी इस चिकनी गांड में अपना लंड डालेगा।

मेरा नाम प्रणव है।
मैं औरंगाबाद शहर का रहने वाला हूं।

हिंदी गांड सेक्स कहानी उस समय की है जब मैं 20 साल का था और इंजीनियरिंग के दूसरे वर्ष में था।

जनवरी की शुरुआत में ठंडी का मौसम था।

पुणे में मेरे चाचा के लड़के की शादी थी।
मुझे पापा ने 10 दिन पहले वहां जाने के लिए कहा।
मैं भी तैयार हो गया।

पुणे मेरा मनपसंद शहर है … आज भी।

तो शादी के लिए मेरा पहले जाने का प्लान बना।
बाकी दीदी और मॉम, डैड बाद में आने वाले थे।

मैंने मेरा बैग पैक किया, टी-शर्ट और जींस पहन ली।

उफ, वो भी क्या दिन थे।
मेरे गुलाबी लिप्स, गोरा रंग, भरा हुआ अंग, मैं इतना सेक्सी था कि कभी-कभी मेरा खुद का मन खुद को छूने का होता था।
जब कभी मौका मिलने पर मैं मेरी गांड को आईने में देखता तो सोचता कि कितना खुश नसीब होगा वह लड़का जो मेरी इस मुलायम गांड में अपना लंड डालेगा।

हिंदी गांड सेक्स की मन में तीव्र इच्छा होने के बावजूद मैंने कभी किसी पर ट्राय नहीं किया।

हां, तो बैग पैक करके मैं बस स्टॉप पर गया।

वहां जाने पर एक लड़के ने हमें बस स्टॉप के बाहर ही रोका और पूछा, “पुणे जाना है क्या? हमारी कार जा रही है। शेयरिंग के लिए एक सीट खाली है।”

वैसे लड़का काफी हॉट था, 25 की उम्र होगी उसकी, शरीर से भी हट्टा-कट्टा, शर्ट का ऊपर का बटन खुला हुआ।

ऐसे लड़के को देखकर मैं थोड़ा हिचक गया और बाबा से कहा, “बाबा, मैं बस से ही चला जाऊंगा!”
बाबा, “प्रणव, देख तो लेते हैं। कैसा है, क्या है।”

हम तीनों दूर खड़ी कार के पास गए।
कार की आगे वाली सीट पर एक लड़का था।
और ड्राइविंग सीट पर एक।

बाबा, “अरे हर्ष, तुम?”
हर्ष बाबा के दोस्त का लड़का था.

हर्ष, “अरे काका, आप?”

बाबा, “ये मेरा बेटा प्रणव। इसे पुणे जाना है। भाई की शादी के लिए।”
हर्ष, “काका, आप निश्चिंत रहिए, मैं प्रणव को छोड़ दूंगा!”
बाबा, “हां, अच्छा हुआ तुम मिल गए।”

बाबा हर्ष को पैसे देने लगे पर उसने पैसे लेने से इंकार कर दिया।

मैं कार में बैठ गया।

रात के 10 बजे का समय था।
मुझे कार में ही नींद आ गई, मैं सो गया, पर नींद पूरी तरह नहीं आई थी।

मुझे आधी नींद और आधा जगा हुआ मैं।
मजे से सीट में फैल गया।

हर्ष के दोनों दोस्त विशाल और प्रदीप।

प्रदीप अगली सीट पर था।
विशाल पीछे मेरे साथ।

विशाल वही था जिसने मुझे और बाबा को बस स्टैंड के बाहर रोका था।

विशाल, “यार, इस चूतिये की वजह से 300 का लॉस हो गया।”
हर्ष, “अरे ऐसे मत बोल भाई।”
विशाल, “तू टेंशन मत ले, ये सो गया।”

मैं तो आधा जगा था और उसके मुंह से गाली सुनकर थोड़ा असहज हो गया।

हर्ष, “अच्छा! और अगर पैसे लेता तो इसका बाप पापा को बता देता। और फिर पापा को ये पता चल जाता कि हम यहां से ऐसे सीट बिठाकर ले कर जाते हैं।”
प्रदीप, “यार, इसकी जगह कोई लड़की होती तो मजा ही आ जाता।”

हर्ष, “अरे भाई, इसकी जगह लड़की होती तो वो विशाल के लंड पर होती!”
और सब हंसने लगे।

विशाल खामोश था।

विशाल पीछे मेरी छाती को सहला रहा था।

और वो एक दम से बोल पड़ा, “दोस्तो, ये प्रणव किसी लड़की से कम थोड़ी है!”
इतना सुनते ही हर्ष ने गाड़ी साइड में ले ली।

हर्ष, “भाई, तेरा कुछ भरोसा नहीं। तू कुछ भी कर सकता है!”

और हर्ष ने मुझे उठाया और बोलने लगा, “प्रणव, तू आगे आ जा!”

पर विशाल की हरकतें और उसकी मर्द आवाज की वजह से मुझे मानो कोई नशा छा गया।

हर्ष बोला, “ठीक है। विशाल, तू आगे की सीट पर आ जा!”

ये सुनकर मैं थोड़ा नाराज हो गया पर हिम्मत जुटाकर मैंने विशाल के लंड पर हाथ रख दिया।
इससे विशाल ने मेरा इशारा समझ लिया।
उसने कहा, “मुझे नींद आती है, मैं आगे नहीं आ सकता, मुझे पीछे ही बैठना है!”

परेशान होकर हर्ष वापिस कार में बैठ गया और कार चलाने लगा।

कार में सॉन्ग चालू था।
“रात का नशा अभी”

थोड़ा टाइम जाने के बाद विशाल ने लंड पैंट से बाहर निकाला, मेरा हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया।

जैसे ही उसके लंड पर मेरा हाथ लगा, मेरे शरीर में कंपन पैदा हो गए।

और उसी कंपन और नशे के साथ मैं विशाल का लंड चूसने लगा।

वह मेरी गांड में उंगली करने लगा.

2 मिनट बाद हर्ष बोल पड़ा, “प्रणव, तुमको लंड पसंद है क्या?”
वो मिरर से शायद सब कुछ देख रहा था।

मैं हड़बड़ा गया।
हर्ष ने स्थिति को संभालते हुए बोला, “अरे कोई नहीं प्रणव, ये एंजॉय है, करो करो, कोई बात नहीं!”

मैं अब खुल के लंड को चूसने लगा।

तब तक हर्ष ने कार को अंधेरी में पार्क कर दिया।

फिर हर्ष आवाज देकर पूछा, “प्रणव, हमारा लंड भी लेना है क्या?”
मैं कुछ नहीं बोला।

प्रदीप पीछे आकर मेरी जान की तरफ बैठ गया।
हर्ष ने एक सीट फोल्ड की, और वही लंड निकालकर बैठ गया।

मैंने जरा हरकत न दिखाते हुए हर्ष के लंड को भी चाटना शुरू कर दिया।
सब के सब खामोश थे।

मैं चाहता था कि वो लोग मुझे गाली दें… पर उन्होंने वैसा नहीं किया।

प्रदीप ने पीछे से मेरी जींस को नीचे कर दिया और मेरी गांड को दबाने लगा।

इधर मैं लंड चूसने में व्यस्त था।

पीछे प्रदीप ने मेरे होल में लंड घुसा दिया।
उस का लंड 6″ होगा।

मेरी गांड में आधा लंड जाने के बाद मैं होश में आ गया कि मैं ये क्या कर रहा हूं।

पर अब देर हो चुकी थी।
कोई कुछ सुनने को तैयार नहीं था।

प्रदीप ने कार का दरवाजा खोला, मुझे पीछे से आधा कार के बाहर निकाला और बेदर्दी से मेरी गांड में लंड ठोकने लगा।

प्रदीप ने मेरी गांड में पानी छोड़ दिया और आगे जाकर बैठ गया।

हर्ष भी मेरे मुंह में झड़ गया।

विशाल का लंड अब काफी तन चुका था।
पर विशाल का लंड करीब-करीब 7″ था।

अब विशाल ने मुझे कार से पूरा बाहर किया।
मेरी जींस और अंडरवीयर उतारकर अंदर फेंक दी।

उसने मुझे ले जाकर बोनट पर लिटाया और गपागप मेरी गांड मारने लगा।
प्रदीप और हर्ष अंदर से बैठकर दारू पीने लगे थे।

चोदते-चोदते विशाल ने काफी रफ्तार पकड़ ली।
पर मेरी जान अब निकल रही थी।

प्रदीप ने एक सुलगी हुई सिगरेट विशाल को दी, विशाल अब दम लगाते हुए मेरी गांड को मार रहा था।
फिर थोड़ी देर बाद वो भी झड़ गया।

हर्ष ने मुझे पानी की बोतल दी और बोला, “साफ करके!”

मैं सफाई करके कार में गया और जींस पहनने लगा।
तो विशाल ने रोकते हुए बोला, “रहने दे जान, अपने को कौन सी जल्दी है!”

वो दारू पीने लगा।

मैं उसके पैरों से लेकर उसके लंड से खेलते-खेलते सो गया।

जब मेरी नींद खुली तब मैं विशाल के लंड के पास था।

उस दिन मुझे तीनों बारी-बारी ठोका और सुबह पुणे में छोड़ दिया।

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