पति के साथ अपने जेठों की बीवी बनी मेरी बहन

माय सिस्टर पोलीएन्डरी स्टोरी में मेरी बहन की सुहागरात को ही उसके पति ने मेरी बहन को उसके दोनों भाइयों की पत्नी बन कर रहने को कहा. बहन ने वादा किया वो अपने पति के साथ-साथ अपने दोनों जेठों को भी पत्नी का प्यार देगी।

दोस्तो, मेरा नाम राजा बाबू है।
मैंने जो कुछ अपनी बहन के ससुराल में देखा, ये कहानी उसी पर आधारित है।
उम्मीद है आपको ये माय सिस्टर पोलीएन्डरी^ स्टोरी पसंद आएगी!

बात पाँच साल पहले की है जब मेरी बहन इतिश्री की शादी की बात चल रही थी।
उस समय वो 18 साल की थी।

सुंदर शक्ल, गोरा बदन, और इतनी जवान कि मोहल्ले के सारे लौंडे उसे देखकर लार टपकाने लगते थे!

खैर, शादी की पूरी व्यवस्था अच्छे से हुई और मेरी बहन विदा होकर ससुराल चली गई।

ससुराल वालों की बात करें तो मेरे जीजा, उनके दो भाई, और एक बीमार माँ थी।

मेरी बहन की शादी उनमें सबसे छोटे भाई अशोक से हुई।

सबसे बड़े भाई सुशांत का अपनी बीवी से विवाद के कारण तलाक हो चुका था।
मँझला भाई संजय अपराधी प्रवृत्ति का था और कई बार जेल जा चुका था, इसलिए उसकी शादी ही नहीं हुई।

मेरे जीजा जी अशोक बैंक में क्लर्क थे।
तीनों भाइयों में गहरा मेलजोल था।
उनके पास ढेर सारी जमीन-जायदाद थी, जो उनके बाप-दादा छोड़ गए थे।

शादी की पहली सुहागरात को जीजा मेरी बहन के पास आए और बोले, “सुनो जी! मेरी माँ बीमार रहती है, पापा मर चुके हैं, और मेरे दोनों भाई रंडवे हैं। तुम तो सब जानती हो! ऐसे में तुम इस घर की इकलौती लड़की हो, जिसके कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी है। तुम्हें ही इस घर को बड़ा करना है और संतान देनी है!”
जीजा ने गंभीरता से कहा।

यह सुनकर मेरी बहन मुस्कुराई और बोली, “बताइए, आपको कितने बच्चे चाहिए?”
जीजा ने जवाब दिया, “कम से कम तीन, जिसमें एक-एक बच्चा तीनों भाइयों का!”

यह सुनकर मेरी बहन चौंक गई और बोली, “ये आप क्या कह रहे हैं!”
जीजा ने परिवार की सारी परेशानियाँ, माँ की बीमारी, और दोनों भाइयों के जीवन भर रंडवे रहने की बात बताई।

बोलते-बोलते जीजा रोने लगे।
यह देख मेरी बहन भावुक हो गई.

शादी की पहली सुहागरात को जब मेरे जीजा अशोक ने मेरी बहन इतिश्री से अपने दिल की बात कही, तो कमरे में एक गहरी खामोशी छा गई।

इतिश्री की आँखों में भावनाओं का तूफान था और बोली, “अगर आप ऐसा चाहते हैं, तो मैं वादा करती हूँ! मैं आप तीनों भाइयों के बच्चों की माँ बनूँगी और तीनों को बराबर पत्नी का प्यार दूँगी!”
उसने अपने वादे के साथ जीजा की पोलीएन्डरी वाली बात मान ली।

यह सुनते ही अशोक की आँखों में एक चमक आ गई।

उन्होंने इतिश्री को गहरी नजरों से देखा, जैसे वो उस पल को हमेशा के लिए अपने दिल में कैद करना चाहते हों।

कमरे में मंद रोशनी थी, और दीपक की लौ हल्के-हल्के झिलमिला रही थी।
अशोक धीरे-धीरे इतिश्री के करीब आए और उनके कंधों को हल्के से छुआ।
इतिश्री की साँसें तेज हो गईं लेकिन उनकी मुस्कान में एक अजीब सा आत्मविश्वास था।

“तुम सचमुच इस परिवार की रोशनी हो!” अशोक ने धीमी आवाज में कहा और इतिश्री के माथे पर एक प्यार भरा चुम्बन दिया।

इतिश्री ने उनकी ओर देखा और बिना कुछ कहे अपनी चुनरी को कंधे से सरका दिया।
उनकी लाल जोड़े की साड़ी चाँदनी रात में और भी निखर रही थी।

अशोक ने धीरे-धीरे अपनी शेरवानी उतारी और इतिश्री के हाथों को अपने हाथों में लिया।
उनके स्पर्श में गर्माहट थी जो इतिश्री के दिल तक जा रही थी।

अशोक ने इतिश्री को अपनी बाहों में खींच लिया और उनके होंठों को अपने होंठों से छू लिया।

पहला चुम्बन हल्का और संकोची था, लेकिन जल्दी ही वह गहरा और जोशीला हो गया।

इतिश्री ने भी उनके चुंबन का जवाब दिया और दोनों एक-दूसरे में खो गए।

अशोक की उँगलियाँ इतिश्री की साड़ी के पल्लू को हल्के-हल्के खोलने लगीं।

साड़ी फर्श पर गिर गई और इतिश्री का गोरा बदन ब्लाउज और पेटीकोट में और भी आकर्षक लग रहा था।

“तुम कितनी खूबसूरत हो!” अशोक ने सिसकारी भरी और इतिश्री के गले पर हल्के-हल्के चुम्बन देने लगे।

इतिश्री की साँसें और तेज हो गईं और वो अशोक के सीने से चिपक गईं।

अशोक ने उनका ब्लाउज खोला और इतिश्री के तने हुए बूब्स उनकी नजरों के सामने थे।
उन्होंने इतिश्री को पलंग पर लिटाया और उनके जिस्म पर अपने हाथ फेरने लगे।
हर स्पर्श के साथ इतिश्री की सिसकारियाँ बढ़ती जा रही थीं।

अशोक ने अपना कुरता और पायजामा उतार दिया।
उनकी नजरें इतिश्री की चूत की ओर गई, जो पेटीकोट के नीचे छिपी थी।

उन्होंने धीरे से पेटीकोट का नाड़ा खोला और उसे नीचे सरका दिया।
इतिश्री की पैंटी गीली हो चुकी थी, जो उनकी उत्तेजना को साफ बयान कर रही थी।
अशोक ने पैंटी को भी उतार दिया और इतिश्री की चूत पर अपनी उँगलियाँ फिराईं।

इतिश्री ने सिसकारी भरी, “अशोक, अब और इंतजार नहीं होता!”

अशोक ने इतिश्री की टाँगें चौड़ी कीं और उनकी चूत को अपनी जीभ से चाटने लगे।
उनकी जीभ हर कोने को छू रही थी.

इतिश्री की सिसकारियाँ अब और तेज हो गई थीं, “आह! अशोक, ये क्या कर रहे हो!”
कराहते हुए इतिश्री ने कहा लेकिन उनके चेहरे पर सुख की लहरें साफ दिख रही थीं।

अशोक ने अपनी उँगली उनकी चूत में डाली और धीरे-धीरे अंदर-बाहर करने लगे।
इतिश्री का शरीर काँप रहा था, और वो बार-बार अशोक का नाम पुकार रही थीं।

कुछ देर बाद अशोक ने अपना लंड निकाला, जो पूरी तरह तन चुका था।
उन्होंने इतिश्री की चूत पर अपना लंड रगड़ा, और फिर धीरे से अंदर डाल दिया।

इतिश्री ने एक हल्की सी चीख मारी, लेकिन जल्दी ही वो उस दर्द को सुख में बदलने लगी।

अशोक ने धीरे-धीरे अपनी गति बढ़ाई और कमरा उनकी सिसकारियों और थप-थप्प की आवाजों से गूँजने लगा।

इतिश्री ने अशोक की कमर को अपनी टाँगों से जकड़ लिया और खुद भी उनकी लय में हिलने लगी।

“इतिश्री, तुम मेरी जिंदगी हो!” अशोक ने जोश में कहा और उनके बूब्स को चूसने लगे।

इतिश्री ने उनके बालों में उँगलियाँ फिराईं और अपनी चूत को और जोर से उनके लंड पर दबाया।
दोनों का जोश चरम पर था।

अशोक ने अपनी गति और तेज की, और कुछ ही देर में वो झड़ गए।

उनका वीर्य इतिश्री की चूत में बहने लगा और इतिश्री भी उसी पल सुख के चरम पर पहुँच गईं।

उन दोनों की सिसकारियाँ धीरे-धीरे शांत हुईं, और दोनों एक-दूसरे की बाहों में लेट गए।

उस रात इतिश्री और अशोक ने एक-दूसरे को बार-बार प्यार किया।
हर बार उनका जोश और प्यार बढ़ता गया।

इतिश्री ने अपने वादे को निभाने का पहला कदम उठाया और अशोक के साथ बिताई उस रात ने उनके रिश्ते को और गहरा कर दिया।

एक साल बाद इतिश्री को पहला लड़का हुआ जो उनके प्यार और वादे का पहला फल था।

बात उन दिनों की है जब मैं अपने भांजे के जन्मदिन की पार्टी में बहन के ससुराल गया था।

मेरे सामने ही जीजा के दोनों भाई मेरी बहन को कभी किस करते, तो कभी गले लगा लेते।

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है!
पार्टी खत्म होने के बाद तीनों भाइयों ने दारू पी और मेरी बहन को घूरने लगे।

उनकी आँखों में वासना साफ दिख रही थी।

तभी बड़े भाई सुशांत ने मेरी बहन को अपनी ओर खींचा और कमर सहलाने लगा।
मेरी बहन ने रोकना चाहा और बोली, “मेरे भाई के सामने ये सब नहीं!”

इसी बीच मँझला संजय उनके बूब्स दबाने लगा।
बूब्स दबते ही मेरी बहन मचल उठी।

अब मेरे जीजा अशोक ने उनके होंठ अपने होंठों में लेकर जोर-जोर से चूमने लगे।
बहन ने भी उनको चुंबन किया।

उधर संजय ने दीदी की साड़ी हटाकर उनका ब्लाउज उतार दिया।
मेरी बहन ने ब्रा नहीं पहनी थी जिससे उनके तने हुए बूब्स सबके सामने आ गए।

फिर सुशांत ने अपनी शर्ट उतारी और सबको हटाकर मेरी बहन को सीने से चिपका लिया।
वो उनकी गर्दन चूमने लगा।
दोनों ऐसे गले मिल रहे थे जैसे यही असली पति-पत्नी हों!

अब बहन ने अपनी साड़ी उतारी और पेटीकोट भी खोल दिया।
मेरी बहन की पैंटी पूरी तरह भीग चुकी थी।

अशोक ने उनकी पैंटी उतारी और चूत चाटने लगा।
वो चूत में उँगली डालकर रस पीने लगा।

उधर संजय उनके बूब्स चूसने लगा।
बहन की चूत बालों से ढकी थी।

तब अशोक रेजर और क्रीम लाया।
उसने मेरी बहन की चूत को शेव किया और फिर जीभ डाल दी।

अब बहन ने मेरी और मेरे भांजे की सुध ही भूल दी, सिसकारियाँ भरते हुए वह बोली, “अब बर्दाश्त नहीं होता! मेरी चूत फाड़ दो!”

इतना सुनते ही तीनों भाई मेरी नंगी बहन को गोद में उठाकर बेडरूम ले गए।

सुशांत पलंग पर लेट गया और दारू की पूरी बोतल मेरी बहन पर उड़ेल दी।
वो उनके पूरे जिस्म को चाटने लगा।

फिर उसने पैंट खोलकर अपना लंड निकाला।
उसका लंड कम से कम आठ इंच का था!
मेरी बहन ने उसे मुँह में लिया।

कुछ देर चूसने के बाद वो उसकी जाँघों पर बैठ गई।

एक झटके में उसका पूरा लंड अपनी चूत में डाल लिया और आगे-पीछे होने लगी।
संजय ने अपना लंड बहन के मुँह में डाल दिया।

मेरा जीजा अशोक उनके बूब्स पर अपना लंड रगड़ रहा था।
फिर सुशांत खड़ा हो गया और मेरी बहन को गोद में लेकर खड़े-खड़े चोदने लगा।

10 मिनट के जोरदार सेक्स के बाद सुशांत झड़ गया और अपना वीर्य मेरी बहन की चूत में बहा दिया।

पर मेरी बहन अभी और चुदना चाहती थी!

अब अशोक और संजय ने मेरी बहन को उठाया।
एक ने चूत में लंड डाला, तो दूसरे ने गांड में।
दोनों के बीच मेरी बहन सैंडविच बन गई।

वो आँखें बंद करके सिसकारियाँ लेने लगी।
सुशांत बैठकर देखने लगा।

ये सब देखकर मैं हक्का-बक्का और हैरान था!

दीदी मदमस्त होकर चुद रही थी; वह जोर-जोर से “आह-आह” करते हुए सिसकारियाँ भर रही थी।

दोनों की जाँघें और दीदी की गांड टकराने से ‘थप-थप’ की आवाज आ रही थी।

कुछ देर गांड मारने के बाद संजय ने दीदी की चूत में लंड डाल दिया।

अशोक अब गांड में लंड डालने लगा।
दस मिनट बाद दोनों का वीर्य बहन की चूत पर बह निकला।

बहन की चूत से भी पानी का फव्वारा निकला।

इसी बीच सुशांत उठकर फिर से मेरी बहन को होंठों पर चूमने लगा।
उसने कहा, “हम तीनों भाइयों की जिंदगी में तुम खुशियाँ लाई हो! तुम्हारा ये अहसान हम कभी नहीं चुका पाएँगे!”

इसके बाद वो तीनों भी थककर लेट गए।
मेरी बहन भी काफी थक चुकी थी।

मैंने दीदी को पानी पिलाया और कपड़े देकर हल्का महसूस कराया।

फिर मैंने पूछा, “ये सब क्या था?”
तब दीदी ने अपने वादे की पूरी बात बताई, बोली, “मैं अब एक नहीं, तीनों भाइयों की पत्नी हूँ! तीनों का मुझ पर बराबर अधिकार है!”

उन्होंने कहा, “इसी बहाने तीनों भाई मिलकर मेरे जिस्म की प्यास भी बुझा देते हैं!”
साथ ही मुझसे वादा लिया कि मैंने जो कुछ देखा, उसका कहीं जिक्र नहीं करूँगा।

तीन साल के अंदर मेरी बहन को दो बच्चे और हुए।
इससे उनका परिवार भरा-पूरा हो गया।
दोनों देवर को भी एक-एक बच्चा मिल गया।

आपको कैसी लगी ये माय सिस्टर पोलीएन्डरी स्टोरी, कमेंट्स में जरूर बताएँ!

^पोलीएन्डरी Polyandry बहुपति प्रथा