ट्राई रूम सेक्स कहानी में ऑनलाइन दोस्ती के बाद एक भाभी ने मुझे अपने शहर में बुलाया. मैंने सोचा था कि हम होतेल्में जायेंगे पर वह मुझसे एक मॉल में ट्राई रूम में ही चुद गयी.
सबसे पहले तो यहां तक आने के लिए शुक्रिया.
अच्छा लगा यह जानकर कि लोग अभी भी पढ़ना पसंद करते हैं.
सेक्स कहानी शुरू करने से पहले मेरी कुछ शर्तें हैं.
शर्तें ये हैं कि सेक्स कहानी पढ़ने से पहले अपने कमरों की खिड़की दरवाजे बंद कर लीजिए.
अगर कमरे में रोशनी ज्यादा है, तो उसे एकदम ना के बराबर कर लीजिए.
ऐसा इसलिए क्योंकि मेरी कहानी को महसूस करने के लिए अंधेरा बहुत जरूरी है.
जिस कमरे में अंधेरा होता है, वहां मैं होता हूँ … और जहां मैं होता हूँ, वहां जादू होता है.
काला जादू.
अपने एक हाथ को पेट पर रख लेवें क्योंकि किसी भी वक़्त उस हाथ को नीचे का सफर तय करना होगा.
आइए शुरू करते हैं.
यह ट्राई रूम सेक्स कहानी सच है कि नहीं … यह आप खुद पता लेंगे.
कहानी खत्म होते ही आपकी सांसें इस कहानी के सच होने का सबूत होंगी.
आज मैं इंदौर आया हुआ हूँ.
इंदौर क्यों देश का सबसे स्वच्छ शहर है, ये मुझे साफ-साफ पता चल रहा है.
जब से मैंने इंदौर की धरती पर कदम रखा है, तब से मुझे कचरा केवल कचरों की पेटियों के आस-पास ही दिखाई दिया.
मेरी ट्रेन आज सुबह नौ बजे इंदौर पहुंची.
थोड़ी देर रेल्वे स्टेशन पर ही रुक कर फ्रेश हुआ और फिर सड़कों पर घूमने निकल गया.
मैंने अपने बैग को रेलवे स्टेशन पर ही जमा करवा दिया था.
मैं नहीं चाहता था कि जब घूमने का मजा उठाना चाहूँ, तो मेरी पीठ का दर्द परेशान करे.
प्रीति, जिसके लिए मैं आज इंदौर आया था … वह करीब एक बजे मुझसे मिलने वाली थी.
कहां? यह उसने मुझे नहीं बताया था.
उसने बस इतना कहा कि मैं साढ़े बारह बजे फोन करूंगी.
तब से मैं सिर्फ साढ़े बारह बजने का इंतज़ार कर रहा हूँ.
वैसे मुझे दिन में घूमना पसंद नहीं.
मैं रात का आशिक हूँ. रात, जब सड़कें रंगीन रहती हैं. जब लोग हसीन रहते हैं. जब टिम-टिमाती हुई रोशनी शहर का गहना बन जाती है. दिन में कुछ मजा नहीं आता.
चूंकि मुझे वक्त जैसे-तैसे काटना था, मैं ई-बस में बैठकर इधर-उधर घूमने लगा.
ट्रेन में नींद न पूरी होने के कारण मैं यूं ही ई-बस में अपनी नींद पूरी करने की कोशिश करने लगा.
“रात को सोए नहीं थे क्या?” पास में बैठे एक अंकल ने मुझसे पूछा.
“ट्रेन में नींद कहां आती है!” मैंने शीशे पर अपना सर टिकाए हुए ही कहा.
“सीट कन्फर्म नहीं थी क्या?”
“अंकल सीट कन्फर्म थी लेकिन मुझे ट्रेन में नींद नहीं आती.”
“हाहाहा … ऐसा क्यों?”
“पता नहीं, सोने की बहुत कोशिश की, लेकिन आज तक कभी नींद नहीं आई.”
वे चुप हो गए.
पर थोड़ी बाद उन्होंने फिर से कहा- इस शहर के तो नहीं लगते तुम बेटा!
“आपको कैसे पता चला?”
मैं अंकल की बातों से चौंक गया था कि ऐसे कैसे कोई बता सकता है कि वह उस शहर से है कि नहीं!
“मुझे 35 साल हो गए इस शहर में, हर रोज दो घंटे इन सड़कों पर आना-जाना होता है. अब लगता है कि मैं इन लोगों को जानने लगा हूँ लेकिन मुझे कोई नहीं जानता. कहां से हो तुम?”
“बहुत दूर से …”
साधारणतया मैं अपनी जानकारी किसी को नहीं देता.
“किसी से मिलने आए हो?” अंकल ने मेरी आंखों में देखते हुए कहा.
“हां!” मैंने भी उनकी आंखों में देखकर जवाब दिया.
अंकल मुस्कुरा दिए.
फिर कुछ देर तक हमारी बात नहीं हुई.
मैं बस की खिड़की के बाहर फिर से देखने लगा.
हवा से टकराकर मेरे बाल उड़ने की कोशिश कर रहे थे.
अगर बड़े होते तो शायद सच में उड़ पाते.
मैं रास्ते के किनारे लगे पेड़ पौधों को देख रहा था और आधी आंखें बंद कर अपने ख्यालों में खोने की कोशिश कर रहा था.
इससे पहले कि मैं अपने ख्यालों में डुबकी लगाता, अंकल ने फिर से मुझसे कुछ कहा- मैं भी जाया करता था उस जमाने में किसी से मिलने!
“अच्छा!” मैंने बिना ध्यान दिए जवाब दिया.
“अब देखो, मुझसे मिलने कोई नहीं आता!” अंकल ने अपनी हाथ की लकीरों को निहारते हुए कहा.
“क्यों, अंकल? आपका परिवार?” मुझे उनकी बात सुनकर बुरा लग रहा था.
मैंने उनकी कहानी जाननी चाही.
“शादी होगी, तब न परिवार होगा, शादी ही नहीं की … तो परिवार कैसे होगा!”
“ओह!”
“क्या उमर है तुम्हारी?” अंकल ने थोड़ी देर बाद फिर एक सवाल पूछा.
“चौबीस!”
“शादी हो गई?”
“नहीं! मन नहीं है.”
“हा हा हा … मेरा भी मन नहीं था. सुंदर दिखते हो, हट्टे-कट्टे हो, ढूंढ लो कोई … जिससे मिलने आए हो, उसी से कर लो!”
अंकल ने मेरी तरफ मुस्कुराते हुए देखा और कह दिया.
“वे खुद शादीशुदा हैं.” मैंने हंसकर जवाब दिया और अपनी हंसी खिड़की के बाहर से जमाने को दिखाने लगा.
प्रीति, इंदौर के आस-पास के ही किसी शहर से है.
शहर का नाम मैं बता नहीं सकता.
कहने को तो कोई भी नाम ले सकता हूँ.
लेकिन फिर वह झूठ हो जाएगा.
प्रीति से मेरी मुलाकात टेलीग्राम पर हुई.
वह मुझसे सिर्फ उम्र में ही नहीं, सब कुछ में बड़ी है.
उसके अनुभव मेरे अनुभव के आगे कुछ नहीं थे. उसके सामने मेरी कलाएं जैसे एक बच्चे की कला थी.
टेलीग्राम पर वॉयस कॉल पर उसकी आवाज सुनकर ही मेरा मन और शरीर दोनों भटकने लगता था.
मुझे आज तक समझ नहीं आया कि उसकी आवाज में इतना नशीलापन क्यों है … या फिर वह जानबूझ कर ऐसी आवाज़ें निकालती है, जिससे मेरे शरीर में कंपन उठ जाए.
फिर मैं भी उससे बदला, अपनी सिसकियों की तलवार से उसके जवानी का गला काट कर लेता हूँ … और तब वह चुप हो जाती है.
वह जवाब में सिर्फ ‘उम्म …!’ कहती है.
प्रीति की शादी को आज, पांच साल हो गए थे … और वह मुझसे पांच साल ही बड़ी थी.
पांच साल में उसे इस बात का पता लग गया था कि आग अन्दर के कुएं से नहीं बुझेगी, कोई बाहर से ही टैंकर बुलाना पड़ेगा … और इसी लिए उसने मुझे बुला लिया.
उसके एक आदेश पर मैं अपना फायर बिग्रेड लिए इंदौर दौड़ा चला आया.
मैं ये सब सोच रहा था कि इतने में उसी का फोन आ गया.
“हैलो!” मैंने फोन उठाकर जवाब दिया.
“…” उधर से कोई जवाब नहीं आया.
“हैलो … हैलो.” मैंने फिर से कहा.
“…” फिर से कोई जवाब नहीं आया और फोन कट गया.
थोड़ी देर वापस फोन आया.
“बेटीचोद, कब से हैलो, हैलो बोल रही हूँ, कुछ बोल क्यों नहीं रहा!”
प्रीति ने गुस्से में कहा.
फोन से आवाज बाहर तक आ गई थी.
अंकल और दो तीन लोगों ने सुनकर मेरी तरफ देखा और मेरे पास शर्माने के अलावा कोई चारा नहीं था.
“धीरे बोल, कितनी बार बोला है…. फोन से आवाज बाहर जाती है!”
“हां तो, फोन क्यूँ नहीं उठाया मेरा.?”
“उठा लिया था, चलती बस में हूँ.”
“कहां जा रहा है?”
“कहीं नहीं, कुछ करने को नहीं था तो सोचा यही कर लूँ.”
“चूतिया … यह सब छोड़. मॉल का एड्रेस भेजा है, आधे घंटे में आ रही हूँ मैं … तू भी आ जा!”
“लेकिन मॉल में क्यूँ जाना है … कहीं और चलते है न?”
“मुझे कपड़े लेने हैं, आ जा जल्दी.”
“मैं 1300 किमी दूर यहां कपड़े खरीदने आया हूँ क्या भेनचोद?” मुझे भी गुस्सा आ गया था.
“आ तो सही … चल बाय.”
“हैलो … रुक तो सही!”
इतने में फोन ही कट गया.
दोपहर का डेढ़ बजे का समय था.
इंदौर का एक मॉल.
डेढ़ बज से सुई आगे खिसक चुकी थी लेकिन वह अभी तक आई नहीं थी.
मेरा सर गर्म हो रहा था.
मॉल के बाहर ही मैं सिगरेट पीते हुए चक्कर लगा रहा था.
कभी इधर, कभी उधर चला जा रहा था.
मैंने उसको फोन लगाया लेकिन प्रीति ने फोन उठाया ही नहीं.
इतनी दूर किसी के कहने पर चले आना और फिर उसी इंसान का अपने वादे से मुकर जाना बड़ा अखरता है.
मॉल के सामने रुकने वाली हर गाड़ियों में देखता कि कहीं प्रीति तो नहीं.
लेकिन वह उन गाड़ियों में नहीं होती.
जैसे ही एक और सिगरेट जलाने वाला था कि प्रीति दूर से चली आ रही थी.
उसको देखते ही मन गदगद हो गया.
जैसे मेरी तपस्या पूरी हो गई हो. जैसे रेगिस्तान में भटक रहे इंसान को तालाब दिख गया हो.
वह तालाब ही दिख रही थी.
उसका यौवन तालाब था … और मैं उस तालाब का एक-एक बूंद पीना चाहता था.
वह मेरे पास आकर खड़ी हो गई.
हम दोनों एक दूसरे को देख रहे थे.
जिस इंसान को आज तक मैंने सिर्फ टेलीग्राम पर देखा था, आज मैं उसे असल ज़िंदगी में देख रहा था.
वह मुझसे दो फुट की दूरी पर खड़ी थी. वह थी या फिर कोई अप्सरा, कहना मुश्किल है.
लंबे-लंबे बालों को उसने पीछे मोड़कर बाँध रखा था.
कुछ बाल उस गुच्छे से आजाद हो गए थे और उसके माथे पर रेंग रहे थे.
माथे पर आज बिंदी नहीं थी.
उसकी सारी फ़ोटो पर बिंदी होती थी.
शायद आज वह मेरे लिए वापस चौबीस साल की लड़की बनकर आई थी.
उसके बदन पर बिना आस्तीन का टॉप था जो पैंट के थोड़ी ऊपर ही खत्म हो गया था.
टॉप के खत्म होते ही हल्का सा नंगा बदन दिख रहा था और एक साइड से काला धागा पेट के ऊपर आ रहा था जिससे उसे किसी की नजर न लगे.
गले में मंगल सूत्र था लेकिन उसका लॉकिट नीचे दो उभारों के बीच में जाकर कहीं अटक गया था.
हाथ पर एक घड़ी, कानों पर छोटे छोटे झुमके.
काले रंग की पैंट और जींस के धागे से बनी हुई चप्पलें.
इतना सब कुछ मैंने इतना जल्दी कब देख लिया, मुझे पता ही नहीं चला.
मेरा मन न जाने क्या क्या सोचने लगा था.
अन्दर आवाज़ें चल रही थीं.
दो लोग उछल रहे थे और मैं कुछ मसल रहा था.
ये सब एक साथ मेरे मन में चल रहा था. ये सब सोचते ही मेरे पैंट पर झटके लगने शुरू हो गए.
अगर उसकी जींस टाइट न होती, तो आस-पास के लोग देख लेते कि मुझे झटके क्यों आ रहे हैं!
फिलहाल सभी की नजरें उसी के मदमस्त जिस्म पर टिकी हुई थीं.
“चल जल्दी, वैसे भी लेट हो गई हूँ.”
उसने तुरंत मेरा हाथ पकड़ा और खींचकर मॉल के अन्दर ले गई.
“रुको यार, थोड़ी बात तो कर लो … और मॉल में क्यों, ओयो चलते हैं न? मेरी ट्रेन है रात में, इतना टाइम क्यों बर्बाद करना!”
“चल तो सही … ओयो फोयो नहीं जा सकती. थोड़ी देर में दोस्त की हल्दी है. मुझे वहां जाना है, जैसे तैसे बहाना बनाकर आई हूँ.”
“तो मेरे को क्यों बुलाया आज फिर?”
“फिर कब मिलते? है मेरे पास टाइम? बता?”
“क्या यार … सारा मूड खराब कर दिया.”
मेरा सच में दिमाग खराब हो गया था.
मुँह लटकाए हुए मैं पीछे-पीछे चल रहा था.
“मैं बनाऊंगी न तेरा मूड.” प्रीति ने आंख मारते हुए कहा.
“इन लोगों के सामने? हट! पब्लिक में नहीं होगा मुझसे!”
“तू चूतिया है और वही रहेगा भी मेरी जान!”
इतना कहने के बाद उसने एक हाथ मेरी कमर पर डाल दिया और अपने करीब खींच लिया.
मेरी कमर अब उसकी कमर को छू रही थी.
उसकी ये हरकत देखकर मैं दंग था.
इस जवानी के युद्ध में अब वार करने की बारी मेरी थी.
मैंने पीछे से एक हाथ उसके टॉप के अन्दर से निकालते हुए दूसरी ओर ले जाकर रख दिया.
उसका नंगा बदन पहली बार छूने का मजा, मैं बता नहीं सकता यार.
मेरे हाथ जैसे एक मखमल के कपड़े पर फिर रहे हों.
मैंने अपनी उंगलियों से कमर के दूसरे हिस्से पर चुटकी कर दी.
उसने हल्की सी आउच की आवाज निकाली और मुझे अलग कर दिया.
मेरा मन अभी भी ओयो जाने को था.
साला चुदाई का मूड बन रहा था और ये मुझे यहां ले आई.
मैं पीछे ही धीमे-धीमे चल रहा था और वह किसी एक दुकान में चली गई.
मॉल में भीड़ कम थी.
प्रीति जाकर ब्रा-पैंटी वाली जगह पर एक-एक उठाकर देखने लगी.
मैं भी वहीं चला गया.
“ये देख, ये कैसी लगेगी?”
उसने एक लाल कलर की ब्रा को उठाते हुए कहा.
“पता नहीं!”
“अच्छा, ये?” उसने काली रंग की दिखाई.
“मुझे नहीं पता, मैं जा रहा हूँ वापस. अब बात मत करना. इसके लिए नहीं आया हूँ मैं!”
मैं पलटकर जाने लगा कि उसने मेरा हाथ पकड़ लिया.
अपने साथ पिंक कलर की ब्रा-पैंटी लेकर, मुझे चैन्जिंग रूम के बाहर ले गई.
जैसे ही एक कमरा खाली हुआ, मुझे अपने साथ अन्दर ले गई.
बाहर खड़ा गार्ड देखता ही रहा.
कुछ नहीं पता चला.
मुझे समझ आ गया था कि अब क्या करना है. मैंने अन्दर घुसने से पहले गार्ड को एक दो सौ का नोट पकड़ा दिया.
फिर अन्दर आते ही मैंने जानवर बनने की ठानी.
दरवाजा बंद करते ही उसके हाथ से ब्रा-पैंटी एक साइड पटक दी और उसे शीशे पर सटा दिया.
उसका सारा बदन शीशे पर टिका हुआ था.
मैंने उसे चूमना चालू कर दिया.
वह भी यही चाहती थी.
अपने हाथों से उसके गालों को पकड़ा और अपने होंठों से उसके होंठ मिला दिए.
गुलाब की सूखी हुई पंखुड़ियां गीली हो रही थीं.
मेरे होंठ लब-लब आवाज निकालते हुए उसके होंठों को खाए जा रहे थे.
उसने अपने दोनों हाथों को मेरे पैंट के टेंट पर रख दिया और धीरे-धीरे सहलाने लगी.
पैंट का टेंट फटने वाला था और वह अपने हाथों से और उत्तेजित कर रही थी.
वह मेरे पैंट को ऊपर से सहला रही थी और मैं उसकी गर्दन चूम रहा था.
उसके पति ने भले ही उसे सोने का हार पहनाया हो लेकिन चुम्मों का हार मैंने ही पहनाया.
मैं अपने हाथों को उसकी कमर पर फेरते हुए ही उसके दोनों बड़े बड़े कूल्हों पर ले गया और दबाने लगा.
उसके कूल्हों को मैं अपनी हथेली मैं कैद करने की कोशिश करने लगा.
मेरी इस हरकत ने उसे पागल कर दिया था.
उसने हमारे मिलन की पहली सिसकी निकाली ‘अअह’.
इसके बाद उसकी सांसों की आवाज़ गूंजने लगी थी.
बाहर लोग आ जा रहे थे और अन्दर हम दोनों एक दूसरे में समाए जा रहे थे.
मैंने अपने हाथों को उसकी जीन्स के अन्दर डाल दिया और पैंटी के ऊपर से ही चूत को मसलने लगा.
मैं अपने हाथों के सहारे उसे अपने करीब ले आता और पैंट के टेंट से सटा देता.
अब मेरे होंठ उसके होंठ चूस रहे थे.
मेरे हाथ उसकी गांड को मसल रहे थे और मेरा लंड उसकी जीन्स के ऊपर से उसकी चूत को छू रहा था.
आस-पास के शीशे इसी माहौल को अलग-अलग एंगल से दिखा रहे थे.
मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं किसी के साथ मॉल में भी ऐसा करूंगा.
मैंने उसकी टॉप को नीचे से उठाया और ले जाकर गर्दन तक चढ़ा दिया.
टॉप के खुले ही उसका नग्न बदन मेरी आंखों के सामने था.
मैं अगर किसान हूँ, जिसके पास एक गन्ना है … तो वह भी एक किसान थी जिसके पास दो संतरे थे.
दो रसीले संतरे जो हल्के नीले रंग के छिलके के अन्दर कैद थे.
मैंने उन संतरों को ब्रा के ऊपर से ही मींजना शुरू कर दिया और नीचे से अपने लंड से उसे धक्के दे रहा था.
अपने मुँह को उन संतरों के बीच वाली दरार के वहां ले जाकर सटा दिया.
अपनी नाक से मैं उसके पसीने की खुशबू सूंघ रहा था.
इस मादक खुशबू ने मेरे शरीर के सारे तारों में करंट दौड़ा दिया.
मुझसे रहा नहीं जा रहा था.
मैंने जो जो सोचा था कि पहले ये करूँगा, फिर वह करूँगा … सब भूल गया.
उसके यौवन के समंदर में डुबकी लगाते ही मैं मदहोश हो गया था.
मैंने उसको पलटा दिया और सामने के शीशे पर धक्का दे दिया.
अब उसकी गांड और मेरा लंड आमने-सामने थे.
मैंने उसकी जींस का बदन खोलकर नीचे खिसकानी शुरू कर दी और घुटनों तक ले जाकर छोड़ दिया.
नीचे बैठकर उसकी गांड को पैंटी के ऊपर से ही चूमने लगा.
एक हाथ से चूतड़ को मसलता और अपने होंठों से दूसरे चूतड़ को चूमता.
कभी इस वाले को और कभी उस वाले को.
फिर मैंने उसकी पैंटी भी नीचे सरका दी.
वह तब से कुछ नहीं बोली थी, बस सांसें लिए जा रही थी.
उसकी आवाज जैसे गायब हो गई थी या फिर वह एक सपने में जी रही थी.
पैंटी के नीचे आते ही मैं अब नंगी गांड को चूम रहा था.
गांड को चूम चूम कर मैंने गीली कर दिया.
ऐसी कोई जगह नहीं थी जहां मेरे होंठों ने अपना गीलापन न चिपकाया हो.
मेरी स्पीड अब और भी तेज हो रही थी.
मैंने तुरंत उसकी जींस पैंटी के साथ निकाल कर फेंक दी और उसे वापस अपनी तरफ मोड़ा.
“अहां … आह … रहा है न मजा!”
“हां … बहुत … बहुत ज्यादा … रुकना मत … बिल्कुल भी मत रुकना … रुक गया न तो तेरी माँ चोद दूँगी!”
उसके मुँह से इस समय गाली सुनते हुए मेरा जोश और भी बढ़ गया.
मैंने तुरंत उसे पास में एक छोटी सी टेबल पर बिठा दिया.
उसके साथ-साथ मैं भी नीचे बैठ गया.
मैंने उसकी दोनों टांगों को अपने कंधों पर रखा और अपनी जीभ को तुरंत उसकी चूत से सटा दिया.
उसकी चूत पर जरा भी बाल नहीं थे जैसे उसने एक दिन पहले ही सब कुछ साफ किए हों.
मुझे क्या, मेरा लक्ष्य तो साफ था.
मैंने एक सांप के भाँति अपनी जीभ को अन्दर बाहर करते हुए उसकी चूत चाटना शुरू कर दी.
जीभ को एक बार में ही ऊपर से नीचे ले जाता, कभी दाएं से बाएं … कभी चूत के अन्दर तो तभी चूत के दाने पर.
मैंने जीभ के साथ-साथ अपनी एक उंगली भी उसके अन्दर डाल दी.
“उम्म … आअह … हहह.” वह मादक आवाज़ें निकालने लगी.
उसने अपने हाथों से मेरे सर को धक्का देते हुए अपने अन्दर घुसेड़ने की पूरी कोशिश की.
मैं भी यही चाहता था. मैं जीभ से उसकी चूत चाट रहा था, एक उंगली से उंगली भी कर रहा था और एक हाथ से उसके संतरे भी मींज रहा था.
और वह क्या कर रही थी?
वह मेरे बालों को सहला रही थी और “उम्म … आअह … हहह” की आवाज निकाल रही थी.
मैंने करीब दो मिनट तक ऐसा ही किया और खड़ा हो गया.
वह नीचे कुतिया के जैसे मेरी तरफ देखने लगी.
मैंने तुरंत अपना पैंट नीचे किया, चड्डी नीचे सरकाई और अपना लंड उसके मुँह में डाल दिया.
उसे कुछ बोलने का मौका भी नहीं दिया, उसके बालों को एक साथ एक मुट्ठी में बंद करके मैं उसके मुँह में अन्दर-बाहर करने लगा.
उसके होंठों से लंड, लंड नहीं रहा.
वह अपनी आंखों से मुझे देखती और अपने होंठों से ऊपर-नीचे करते हुए मेरा लंड चूस लेती.
कितनी जबरदस्त लग रही थी वह ऐसा करते हुए … जैसे उसके होंठ सिर्फ इस के लिए बने हों.
मैंने लंड बाहर निकालकर अपने दोनों टट्टों को उसके मुँह में दे दिया.
वह अपने जीभ से एक एक टट्टे को बारी बारी से चाटने लगी.
मैंने आंख बंद कर ली.
“अब रहा नहीं जा रहा, डाल दे इसे अन्दर … बहुत भूखी हूँ!” उसने लंड को बाहर निकालते हुए कहा.
“प्यार से बोल मादरचोद.” मैंने अपने लंड से उसके गालों को थप्पड़ लगाया.
“डाल दो ना अन्दर बेबी, डाल दो.”
मैंने उसे ऊपर उठाया और फिर से उसकी गांड को अपनी तरफ कर लिया.
“झुक थोड़ा!”
“हम्म!”
वह सारी बात मान रही थी.
“और झुक भेन की लौड़ी!”
मैंने उसकी गांड पर अपना लंड रगड़ते हुए कहा.
वह और झुकी.
मैंने अपने लंड को हाथ में पकड़ा और उसका छेद ढूँढने लगा.
चूत की दरार महसूस होते ही मैंने अपना लंड उस पर रगड़ना चालू किया.
“उम्मम हह उम्मम हह” वह हल्की हल्की सिसकारियां ले रही थी.
मैंने अभी भी अन्दर नहीं डाला.
मैं अभी भी उसकी चूत पर केवल रगड़ रहा था.
कुछ देर ऐसा ही करने पर उसने खुद हाथ पीछे किया और गांड पीछे करके मेरा लंड अन्दर ले गई.
वह इतनी ज्यादा प्यासी थी कि उससे रहा नहीं जा रहा था.
मैंने धीरे-धीरे अन्दर बाहर करना चालू कर दिय. ठीक वैसे, जैसे एक ट्रेन प्लेटफॉर्म से निकलना शुरू करती है.
धीरे-धीरे, आहिस्ता-आहिस्ता, अन्दर-बाहर.
कुछ देर बाद पहला जोर का झटका दिया.
“उफ्फ़… आअह … ऐसे ही बेबी, इतनी ही जोर से …”
मैंने भी उसकी बातें मानकर जोर-जोर झटका लगाना शुरू कर दिया.
छोटे से कमरे में छप-छप की आवाज आ रही थी.
“आह … आह … ऐसे ही … आह आह … यस यस बेबी … फक मी… ओह यस.”
“बोला था न … पागल कर दूँगा … आह आह…!”
“हां! हां!… उफ्फ़… आअअअअ.”
“झड़ रही हूँ … आअअअह … और जोर से … और जोर से चोद.” चार- पांच मिनट तक ऐसे ही चोदने के बाद उसने कहा.
मैंने झटके और तेज कर दिए.
उसे मैंने जोरदार तरीके से चोदा और थोड़ी देर के बाद मैं भी झड़ने की कगार पर आ गया. तब तक उसका पानी निकाल चुका था.
मैंने अपना लंड बाहर निकाला और वापस उसके मुँह में डाल दिया.
वह पागलों की तरह पुनः मेरा लौड़ा चूसने लगी.
मैंने अपनी आंखें बंद कर लीं.
मैं आंखें बंद करते हुए झड़ना चाहता था.
कुछ सेकंड बाद ही मैं बस होने वाला था.
मैंने उसके सर को अपने लंड पर एकदम सटा दिया और बह गया.
आह पूरी तरह से बह गया.
वह सारा का सारा माल अन्दर ही गटक गई.
ट्राई रूम सेक्स के बाद क्या हुआ था, कैसे हुआ था, कुछ याद नहीं.
हम दोनों एक मिनट तक तो कुछ कर भी नहीं पा रहे थे.
मुझे बस इतना याद है कि मैंने बाहर आने के बाद गार्ड को एक और दो सौ रुपये का नोट पकड़ा दिया था.
ट्राई रूम सेक्स कहानी पर मुझसे बात या संपर्क करने के लिए लिखें.
[email protected]
Telegram @heyjadugar