सेक्सी टीचर चुदाई स्टोरी में मुझे मेरी सहेली के देवर ने अपने मोटे लंड से चोद कर पूरा मजा दिया. मैं पहली बार अपने पति के अलावा किसी और से चुदी थी.
यह कहानी सुनें.
फ्रेंड्स, मैं दीप्ति आपको अपनी सहेली के देवर सारांश के साथ अपनी सेक्स कहानी सुना रही थी.
कहानी के तीसरे भाग
योनि चाटन से चरमसुख की प्राप्ति
में अब तक आपने पढ़ा था कि सारांश ने मेरी योनि को चूस कर मुझे स्खलित कर दिया था और अब मेरी चुदाई की बारी आ गई थी.
वो मेरे सामने नंगा हो गया था, मेरी निगाहें उसके फूलते लिंग पर जमी थीं.
अब आगे सेक्सी टीचर चुदाई स्टोरी:
सारांश मुझे एकटक देखते हुए बिस्तर पर ही खड़ा हो गया.
अपने लिंग की चोटी को सहलाते हुए पहले मेरे किनारे और फिर अपने दोनों पैर मेरी कमर के दोनों किनारों पर रख खड़ा हो गया.
यह मेरे जीवन का सबसे कामुक क्षण था.
सारांश जैसा हैंडसम युवक नग्नावस्था में मेरे ठीक ऊपर ऐसे खड़ा था मानो वो मेरा आसमान हो.
उस दिशा से जब वो अपने लिंग को जड़ से ऊपर तक सहलाता तो उसके लिंग की बनावट देखकर मेरे बदन में करंट सा दौड़ने लगता.
जब उसने कुछ पल कुछ और नहीं किया तो मैंने उसका इशारा समझने का प्रयत्न करते हुए बिस्तर पर बैठकर उसके लिंग की तरफ हाथ बढ़ाया.
सारांश ने भी स्थिति भांप ली और अपने दोनों हाथ पीछे बांध कर जरा सा झुका, जैसे पूरी तरह से उसने अपना बदन मुझे सौंप दिया हो.
उसका कठोर लिंग अब ठीक मेरे चेहरे के ऊपर था.
मैंने जब उसे थामा, तो जैसे लिंग ने एक सांस छोड़ दी हो.
एक झटका सा लगा और जैसे-जैसे मैंने उसकी जड़ से चोटी तक सहलाया, मानो वो मेरी हथेली में कुछ और बड़ा हुआ हो.
बड़ी मुश्किल से मेरी हथेली उसके लिंग की चौड़ाई को नाप पा रही थी.
जब मैं उसके लिंग को निहार कर सहला रही थी, सारांश अपना एक हाथ आगे लाया और बारी-बारी से मेरे स्तनों को छेड़ने लगा.
मैं बिस्तर पर अपने घुटनों के बल बैठी और सारांश के लिंग को अपने होंठों में दबाने ही वाली थी कि उसने मेरे गालों को बड़े प्यार से पकड़ा और मेरे चेहरे को ठीक उसके फुफकारते हुए लिंग के आगे रोक दिया.
उसने मेरी विस्मय भरी आंखों में देखा और कहा- आज आपका पहला ही पाठ है दीप्ति भाभी, प्रेमक्रिया … बाकी बाद के लिए.
इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, सारांश ने झुक कर पहले मेरे होंठों को चूमा, फिर मेरे गले को चूमते हुए उसके होंठ मेरी ऊपरी फिर निचली पीठ को संवारने लगे.
जैसे-जैसे उसके होंठ मेरे कूल्हों की तरफ बढ़े, उसके दोनों हाथ मेरे स्तनों से खेलने लगे.
मैं मदहोश होकर बिस्तर पर झुकती चली गयी. देखते ही देखते मैं बिस्तर में पेट के बल लेट गयी.
वो मेरे पैरों को फैलाकर उनके बीच बैठ गया और पहले मेरी रीढ़ की सीध में मेरे कूल्हों तक चूमता चाटता चला गया.
फिर उसने मेरे कूल्हों को थामकर उन्हें फ़ैलाया और धीरे-धीरे काटने और चूमने लगा.
मेरे पेट की तितलियां, फिर से मेरी योनि को प्रेमरस से भरने लगीं.
मैं भी मदहोशी में अपने कूल्हे ऊपर की तरफ उचकाने लगी.
अचानक ही जब उसने एक बार जोर से काट कर वह हिस्सा अपने होंठों में दबा लिया तो मेरे कूल्हे और उछल गए.
उसी पल उसका बांया हाथ मेरी पीठ के ऊपर आ गया और दाहिना मेरी कमर पर!
एक झटके में उसने मेरी पीठ दबायी और कमर के नीचे से मेरा बदन ऊपर खींचा.
सब इतनी अकस्मात् और तेजी से हुआ कि मुझे अपना सिर सीधा करने के लिए भी प्रयत्न करना पड़ रहा था.
तभी सारांश का हाथ मेरे सिर पर हौले से पड़ा और उसने आराम से मेरा चेहरा आगे की तरफ कर दिया.
उस पल मुझे एक और सरप्राइज मिला.
कमरे की इस दिशा में ही दीवार पर बड़ा सा दर्पण लगा हुआ था, जिसमें मैं खुद को और सारांश को देख पा रही थी.
मेरी कमर से ऊपर का हिस्सा पूरी तरह से बिस्तर से लगा हुआ था, मेरे कूल्हे सीधे ऊपर की तरफ थे और पैर बिस्तर पर लगे हुए थे.
सारांश दोनों पैरों के अगल-बगल अपने घुटने टिकाये बैठा था.
जैसे ही हमारी आंखें दर्पण में मिलीं, सारांश ने अपना लिंग मेरी गीली योनि की फांकों पर लगा दिया और धीरे-धीरे उसे ऊपर-नीचे रगड़ने लगा.
तब मुझे अहसास हुआ कि कितनी चतुराई से उसने मुझे एक सेक्स पोजीशन में स्थापित कर दिया था जो शायद सोच समझ कर करने पर संभव नहीं हो पाता.
मुझे बाद में पढ़ने पर पाता चला कि इस पोजीशन को अंग्रेजी में लीप फ्रॉग कहते हैं, माने मेंढक उछलने की तैयारी में, जो की डॉगी स्टाइल का एक रूप है.
मैंने अपने पति के साथ कुछ बार डॉगी स्टाइल किया था, लेकिन ये कभी नहीं. और सारांश ने ये स्थिति क्यों चुनी, यह मुझे बहुत ही जल्दी पता चल गया.
मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि मैं कभी भी अपने पति के अलावा किसी और के साथ सेक्स करूंगी लेकिन अपने पति के लिए तैयार होने के कुछ ही घंटों के बाद मैं यहां थी, अपनी सहेली के देवर के लिंग तले.
मुझे पक्का पता था कि शोभा ने मुझे ढूंढने का प्रयत्न किया होगा और उन्हें आभास भी हुआ होगा मेरे ना मिलने पर कि मैं आखिर कहां फंसी हूँ, या कहो किसके नीचे.
उनके कई राज की तरह ही अब मेरा यह राज भी उनके पास महफूज रहेगा और अगर ना भी रहता, तो अब ना मेरी हालत कुछ सोचने की थी और ना ही इच्छा!
अब बस एक ही चीज़ चाहिए थी मुझे … और वह सारांश के हाथ में थी जिसे वह धीरे-धीरे मेरी योनिद्वार पर रगड़ रहा था – उसका सख्त लिंग.
हर एक रगड़ के साथ उसका लिंग धीरे-धीरे मेरी योनि में प्रवेश कर रहा था.
एक तो पहले ही इतना मोटा था, ऊपर से उसने मुझे जिस पोजीशन में बांध रखा था, उससे मेरी योनि अपने सबसे कसे हुए स्वरूप में आ गई थी.
सारांश के लिंग के हर एक-आध इंच के प्रवेश के बाद मेरी योनि और कस जाती, सांस और फूल जाती, आह और गूंज जाती.
शायद और कोई होता तो निर्दयता से अन्दर घुसेड़ देता … लेकिन सारांश की आंखों में एक समझ का भाव था.
उसका लिंग भले ही मेरी योनि में अपनी घुसपैठ कर रहा हो, उसके हाथ मेरे कूल्हों का मर्दन कर रहे हों, लेकिन उसकी आंखें अब भी मेरी दर्पण में मेरी आंखों से ही बात कर रही थीं.
उस समझ के कारण ही ये कामाग्नि इतनी मदहोश कर रही थी.
थोड़ी देर के बाद जब सारांश आधे से ज्यादा मेरे अन्दर समा चुका था.
मैंने उसे दर्पण में इशारा किया.
इशारा क्या, बस जरा सा सिर हिलाया हां में … और वो समझ गया कि अब मेरे अन्दर की आग को भी उसके सागर से संगम चाहिए था.
सारांश उसी तरह अपना लिंग धीमे-धीमे रगड़ते हुए पहले अन्दर लाया और उसके साथ बाएं हाथ से मेरी कमर पर और दबाव डाला, जबकि दाएं हाथ से मेरे बालों को ठीक से हाथों में जकड़ लिया.
अगले पल उसने मुझे बालों से अपनी ओर खींचते हुए मेरी कमर पर दबाव डाला और पहले बाहर ले जाते हुए उसकी लिंग की चोटी का कुछ हिस्सा अन्दर छोड़ कर रूक गया.
फिर मेरी एक लम्बी आह के साथ ही अपना पूरा लिंग मेरी योनि में अन्दर तक सीधा डाल दिया और उसी स्थिति में रुक गया.
मुझे दर्द तो हुआ, लेकिन जो मज़ा आया … उसके क्या कहने!
ना मुझे इस दिन की उम्मीद थी, ना ही इस सुख की.
मुझे पता भी नहीं था कि मेरी योनि में ये कोने भी हैं, जो सारांश के लिंग ने खोज निकाले थे.
सारांश उसी तरह मेरे ऊपर रुका रहा, शायद अब भी संशय में था, तो उसे इशारा देने के लिए मैंने अपने कूल्हे को थोड़ा उचकाने की कोशिश की.
मुझे अभी और चाहिए था, पूरा चाहिए था.
सारांश ने सांसें भरते हुए मुझे दर्पण में देखा और बालों से मुझे थोड़ा खींचते हुए मेरे कूल्हों के और ऊपर आकर, जो रही सही लम्बाई-चौड़ाई बची थी, वह भी पूरी अन्दर डाल दी.
उसका लिंग पूरी तरह से मेरी योनि में विलीन हो गया.
हम दोनों ही एक दूसरे को एक होते हुए देख सकते थे.
कुछ पल के विराम के बाद सारांश ने अपना लिंग ऊपर नीचे करना शुरू किया और जैसे-जैसे वो अन्दर बाहर होता गया, मेरी लिंग ग्रहण करने की क्षमता बढ़ती गई.
मेरी मादक कराहें बढ़ती गयीं और उसकी तेजी भी.
उसका लिंग मेरी योनि के हर एक सेंटीमीटर को छू रहा था, मेरे हर एक रोम को खिला रहा था और मैं भी अपने कूल्हे उचका कर उसका साथ देने लगी.
कमरे में बदहवास सांसों और गूंजती आहों का तूफ़ान आ गया.
मेरे बाल उसके हाथ में होने के कारण मैं तब ही उसे दर्पण में देख पाती, जब वह मेरा सर ऊपर खींचता, माने कि जब उसका लिंग मेरी योनि में समा जाता. लेकिन सारांश पूरे समय हम दोनों को दर्पण में देख पा रहा था.
उसकी आंखें कभी मेरे भाव पढ़तीं, तो कभी मेरे हवा में उछलते स्तनों को निहारतीं.
सारांश जितना जोर डालता, मैं उतनी जोर से जवाब देती. वह जितना अन्दर जाता, मैं उतनी गहरी होना चाहती थी.
लेकिन फिर उसने पैंतरा बदला.
वो अचानक से रूक गया और अपने कूल्हे वृत्त के आकार में घुमाते हुए मेरी योनि में समाने लगा.
मैं खुद को दर्पण में बिल्कुल नया सा महसूस कर रही थी.
मुझे पता ही नहीं था कि मुझमें ग्लानिरहित काम की इतनी सम्भावना है.
जीवन में कुछ नया मिला था.
शादी के बाद से मैंने ऐसा कभी महसूस नहीं किया था और शादी के बाद ये पहला दिन था जब मुझे एक ही दिन में दो बार चरमसुख मिलने वाला था.
एक दिन में? बल्कि कुछ ही मिनट के अंतराल में.
सारांश ने जैसे ही मेरे बदन में हलचल को भांपा, उसने फिर से अपनी गति तेज कर दी.
उसके कूल्हे अब सबसे तेज हो गए और मैंने अपने कूल्हे हिलाना बंद कर दिया.
मैं बस इंतज़ार कर रही थी मेरे अन्दर लावा फटने का … और वो जल्द ही फटा.
जब मेरा बदन आनन्द में कांप रहा था, सारांश मेरे कूल्हों को कड़ाई से थाम कर योनि-मर्दन किए जा रहा था.
जब तक मैं पूरी तरह से खाली होती, उसका लावा भी फटने को आया.
मैं उसके लिंग को मेरी योनि के अन्दर कांपते हुए महसूस कर सकती थी.
जैसे ही सारांश का वीर्य निकलने वाला था, उसने अपने कूल्हे पीछे खींचने की तैयारी की.
लेकिन तब ही मैंने अपने कूल्हे और ऊपर कर दिए और अपनी योनि को और कस दिया.
मैं सारांश के लिंग को अपने अन्दर ही समाए रखना चाहती थी.
सारांश अचरज में जरूर था, लेकिन उसकी आंखों में चमक भी थी.
उसके योनिमर्दन ने फिर से तेजी पकड़ ली और कुछ ही क्षणों में वो भी फट पड़ा.
उसका वीर्य मेरी योनि में गिरा और उसका बदन मेरे बदन पर!
हम दोनों वैसे ही लेटे रहे और अपनी सांसें एकत्रित करते रहे.
उसका लिंग अब भी मेरी योनि के अन्दर था, तनाव खो दिया था उसने, लेकिन मोटा इतना था कि अब भी अपनी उपस्थिति अच्छी तरह से महसूस करा रहा था.
वीर्य धीरे-धीरे योनि से बहकर बाहर आ रहा था.
थोड़ी देर में जब मैंने आगे देखा तो पाया कि सारांश अब भी मुझे दर्पण में देख रहा है.
हम दोनों ही एक साथ मुस्कुरा पड़े.
दस मिनट बाद मैं दर्पण के सामने अपनी साड़ी पहन रही थी और सारांश पीछे बिस्तर पर बैठकर मुझे किसी दीवाने आशिक सा देख रहा था.
मैंने उससे धीरे से कहा- सारांश, तुम्हें पता है ना कि मैं शादीशुदा हूँ … और इस रात की बात बस इस कमरे में ही रहनी चाहिए!
वो कुछ बोला नहीं, थोड़ा रहस्यमयी तरीके से मुस्कुराया और अपने दिल पर एक क्रॉस बना कर चाबी दूर फेंकने की एक्टिंग कर डाली.
मैंने जरा अचरज से पूछा- थैंक्यू, वैसे ये मुस्कान किस बात की है?
सारांश ने हौले से जवाब दिया- मेरे मुँह से तो इस रात के बारे में एक भी शब्द नहीं निकलेगा सेक्सी टीचर भाभी. लेकिन क्या आपको पूरा यकीन है कि ऐसी रात फिर नहीं होगी हमारे बीच? वैसे भी अभी तो आपने सेक्स का बस एक ही पाठ पढ़ा है.
मैंने जल्दी से जवाब दिया- प्रेमक्रिया? हां मुझे भी ये बात पूछनी ही थी कि और कौन से पाठ होते हैं?
‘दो और होते हैं भाभी.’
सारांश जवाब दे ही रहा था कि मेरा फ़ोन बज उठा.
यह मेरे पति देव का फोन था.
मैंने बिना देर किये कॉल उठा लिया.
वो स्टेशन से निकल चुके थे और कुछ ही मिनट में बंगले के आगे पहुंचने वाले थे.
मैं खुद को एक आखिरी बार दर्पण के आगे जांच कर दरवाजे की तरफ भागी, उस समय अहसास हुआ कि सारांश तो अपनी जगह पर ही बैठा था.
उसने मुझे इशारा किया उसकी फ़िक्र ना करने को और बाय कहने के लिए हल्के से हाथ हिला दिया.
जैसे हाय किया था.
मैं भी मुस्कुराकर सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई.
लेकिन मेरे दिमाग में अब भी सवाल घूम रहा था कि वो बाकी के दो पाठ कौन से हैं.
मित्रो और सहेलियो, दीप्ति भाभी को 2019 में पढ़ाए सेक्स के पहले पाठ का सफर बस यहीं तक था.
आप अपनी प्रतिक्रिया और संदेश मुझे [email protected] पर भेज सकते हैं.
प्रोत्साहन से बाकी दो पाठों की पढ़ाई के बारे में बताने में मज़ा बढ़ेगा.
इस सेक्सी टीचर चुदाई स्टोरी को पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.