भाभीXxx नॉनवेज़स्टोरी में मैंने अपने मामा के बेटे की पत्नी को चोद कर उनके जिस्म की प्यास बुझाई. मेरे मामा का बेटा किसी पराई औरत के चक्कर में अपनी बीवी को कम चोदता था.
दोस्तो, मैं हरीश आपको अपनी भाभी की चुदाई की कहानी सुना रहा था.
हमारे यहां भाभी को वैनी कहते हैं तो मैं आगे अपनी नीता भाभी को नीता वैनी ही लिखूँगा.
कहानी के पहले भाग
दूर की भाभी की चुदाई की तलब
में अब तक आपने पढ़ लिया था कि भाभी मेरे पैंट खोलने लगी थीं.
अब आगे भाभीXxx नॉनवेज़स्टोरी:
वैनी ने मेरा पैंट और अंडरवियर खोलते ही देखा कि मेरे लंड ने ज़ोर से उफान मारा और वह झटके के साथ फनफनाता हुआ बाहर आ गया.
इसके बाद नीता वैनी मेरे लंड को अपने हाथों में लेकर सहलाने लगीं.
उन्होंने मेरे एक टट्टे पर एक जोरदार चुम्बन दिया, जिससे मेरे रोम-रोम में रोमांच छा गया.
अब वे मेरे लंड को जोर जोर से मसलते हुए सहलाने लगीं, जिससे मुझे झड़ जाने का डर लगा.
मैंने कहा- क्या कर रही हो वैनी? ऐसे तो मैं जल्दी ही झड़ जाऊंगा.
नीता वैनी ने जवाब दिया- इसे लंबी रेस के लिए तैयार कर रही हूँ. एक बार झड़ने के बाद दूसरी बार लंबी कुश्ती चलती है.
ऐसा कहकर वे अब जोरों से मेरी मुठ मारने लगीं.
उनके कोमल हाथों की मुठ से मैं जल्दी ही झड़ गया और जोर से एक फव्वारा छोड़ दिया, जो सीधा उड़कर उनके क्लीवेज पर गिरा.
इसे देखकर वे खुश हो गईं और बोलीं- काफी दम है इसमें! आज इसकी सारी आग निकाल दूँगी.
मैंने कहा- आपकी भी आज बरसों की प्यास बुझाकर आपको संतुष्ट कर दूँगा.
अब वह पास में पड़ी अपनी साड़ी से वीर्य पौंछने लगीं.
चूँकि मेरा लंड अब मुरझा गया था, मैंने उठकर नीता वैनी के होंठों को चूमते हुए उन्हें बिस्तर पर लिटा दिया और उनका पेटीकोट का नाड़ा खोलने लगा.
पेटीकोट को नीचे सरकाते हुए मैंने देखा कि वे अपने पैरों को मोड़कर अपनी चुत को छुपा रही थीं.
मैंने उनकी टांगें पकड़ कर सीधी कर दीं.
नीता वैनी आंखें बंद करके बिस्तर पर चित पड़ी थीं.
उनके दोनों हाथ क्रॉस करके उनकी छातियों पर रखे थे. टांगें सीधी थीं, लेकिन हल्की-सी खुली हुई थीं.
दोनों पैरों के बीच करीब दो-ढाई फीट का फासला था.
मैंने एक नजर नीता वैनी के कुंदन-से दमकते पूरे शरीर पर डाली.
उनकी संकीर्ण-सी योनि का रंग भी एकदम गोरा और गुलाबी-सा था.
आमतौर पर भारतीय स्त्रियों की चुत के आसपास की त्वचा, चाहे उनका रंग गोरा ही क्यों न हो, कुछ सांवली होती है. लेकिन नीता वैनी निःसंदेह एक अपवाद थीं.
भगवान जाने उनका यह रंग प्रकृति-प्रदत्त था या वी-वॉश का कमाल था … लेकिन जो भी था, बेहद लाजवाब था.
मैं तो नीता वैनी के इस रूप पर मर मिटा.
होंठों से होंठ, छाती से छाती, लेकिन दोनों की जांघों के ऊपरी सिरे थोड़े दूर-दूर थे.
मेरा दायां हाथ नीता वैनी की चुत का जुग़राफिया नाप रहा था.
मेरी उंगलियों के पोर मेरी आंखें बन गए थे.
मेरी बड़ी उंगली नीता वैनी की चुत की दरार की थाह लेने लगी.
यह ठीक था कि नीता वैनी कुंवारी कन्या नहीं थी.
उनका योनि-भेदन सवा साल पहले, यहीं इसी पलंग पर संपन्न हुआ था.
फिर भी नीता वैनी की योनि की संकीर्णता असाधारण थी.
मेरी उंगली बहुत मुश्किल से उनकी चुत में प्रवेश कर पा रही थी.
उधर ऊपर हम दोनों प्रेमी-युगल एक-दूसरे को चूमने-चाटने में व्यस्त थे.
नीता वैनी के मुँह से निकलती आहों और कराहों का कोई ओर-छोर नहीं था.
‘सी … ई … ई … ई … प्लीज … नहीं … आह … ह!’
कामविकार से भरी नीता वैनी आपे से बाहर थीं पर अब मैं कहां सुनने या रुकने वाला था?
मेरी एक उंगली उनकी चुत की दरार के अन्दर सितार बजा रही थी, बाकी तीनों उंगलियां, अँगूठे की मदद से, बाहर तानपुरा छेड़ रही थीं.
रति और कामदेव की सरगम अपनी पूरी फिज़ा में गुंजन कर रही थी.
‘छूम … छन..न … न..न… छूम…!’
मैं अपने घुटनों के बल बिस्तर पर नीता वैनी की दोनों टांगों के बीच आ बैठा.
नीता वैनी ने चौंककर अपनी आंखें खोलीं और मुझे अपनी टांगों के बीच बैठा देख थोड़ा शर्माईं, थोड़ा मुस्कुराईं और फिर अपनी टांगों को और हल्का-सा खोल दिया.
मैंने अपने दाएं हाथ से अपने लंड मुंड को नीता वैनी की चुत पर रगड़ना शुरू किया.
नीता वैनी ने तत्काल अपनी दोनों टांगें हवा में उठाकर मेरे लंड का अपनी योनि के मुख पर स्वागत किया.
मैंने तुरंत उनके दोनों पैर अपने कंधों पर टिकाए और अपने लंड मुंड को दाएं हाथ में लेकर उनकी योनि की बाहरी पंखुड़ियों को हल्का-सा खोल कर भगनासे तक घिसने लगा.
मारे उत्तेजना के मेरा शिश्न मुंड फूलकर किसी बड़े मशरूम के आकार का हो गया था और प्रीकम से सना हुआ था.
मेरे शिश्न मुंड के उनकी योनि के भगनासे पर लगातार घर्षण से नीता वैनी के मुँह से निकलने वाली सीत्कारों और सिसकियों में इजाफा हो रहा था.
लेकिन अब मुझे इस ओर ध्यान देने की सुध कहां थी?
अचानक मेरा लंड मुंड नीता वैनी की प्रेम गुफा के मुहाने पर ज़रा सा नीचे किसी गुदगुदे गड्डे में अटक गया.
तत्काल नीता वैनी के शरीर में एक छनाका-सा हुआ और आने वाले पल की प्रत्याशा में वे सिहर उठीं.
’सी … मर गई … ओह … सी… ई… ई..ईं..!’
नीता वैनी के शरीर में रह रहकर सिहरन उठ रही थी.
हम दोनों के शरीर का रोआं रोआं खड़ा हो गया और उत्तेजना की एक तीखी लहर हमारे जिस्मों से गुजर गई.
मैं अपने लंड मुंड को वहीं टिका छोड़कर नीता वैनी के शरीर के ऊपरी भाग पर छा गया.
इस प्रक्रिया में उनकी दोनों टांगें मेरी निचली पीठ तक फिसल गईं.
नीता वैनी ने अपने पांवों को कैंची की तरह बनाकर अपनी दोनों एड़ियों को मेरे नितंबों पर टिका दिया.
काम-रस से मेरा लंड और नीता वैनी की चुत … दोनों बुरी तरह सने हुए थे.
मैंने अपने लंड पर धीरे-धीरे दबाव बढ़ाना शुरू किया.
‘रा..ज़ … सी…ई..ई … ई उफ़…फ़..फ़. बस … मर गई मैं … आह सी…सी!’
मैं लगा रहा.
‘आह … आराम से… प्लीज़… ओह … सी…ई …ई … धीरे… रुको… आह … उई … आह … हा… वेट… वेट..!’
मैं उनकी एक नहीं सुन रहा था.
मेरा लंड उनकी चुत में धँसता ही जा रहा था.
‘आह बस … बस… ना करो… नहीं…ई …ई … और आगे नहीं… आ…ह … आ…आ … आ…ह … आह …!’
नीता वैनी की काम सीत्कारों में अब कुछ-कुछ दर्द का समावेश भी था, लेकिन इस वक्त कौन माई का लाल अपनी प्रेयसी की रुकने की विनतियों पर कान धरता है?
समय आ गया था एक पुरुष को अपना पुरुषत्व दिखाने का … और अपनी प्रेयसी को अपना बनाने का.
अब थोड़ा कठोर तो बनना ही होगा.
मैंने अपने पैर बिस्तर के निचले सिरे पर मज़बूती से जमाए, नीता वैनी के ऊपरी होंठ को अपने होंठों में दबाया और दो-तीन बार अपनी कमर ऊपर-नीचे करते हुए अपने शरीर के निचले हिस्से को नीचे की ओर एक ज़ोरदार धक्का दिया.
मेरा लंड मुंड जो अब तक नीता वैनी की योनि की बाहरी पंखुड़ियों में ही कुछ-कुछ अन्दर-बाहर हो रहा था, अपने रास्ते में आने वाली हर रुकावट को छिन्न-भिन्न करता हुआ नीता वैनी की चुत के अन्दर करीब तीन इंच उतर गया.
‘आह … मैं मरी…!’
नीता वैनी के मुँह से आर्तनाद निकला और उनकी आंखों से आंसुओं की अविरल धार बह निकली.
साथ ही नीता वैनी अपने दोनों हाथों की मुट्ठियों से बिस्तर पीटने लगीं और अपना सिर दाएं-बाएं पटकने लगीं.
उनकी दोनों टांगें मेरी पीठ से फिसल कर सीधी हो गई थीं और वे अपनी टांगों को दाएं-बाएं मोड़-मरोड़ कर मुझे अपने शरीर से उठाने की कोशिश करने लगीं.
लेकिन मैं भी कोई कच्ची गोलियां नहीं खेला था.
चूँकि मैं नीता वैनी की दोनों टांगों के ठीक मध्य में था, इसलिए उनकी मुझे अपने शरीर से उठाने की कोई कोशिश कामयाब नहीं हो पा रही थी.
मैं प्यार से नीता वैनी के गालों पर अपने होंठों से उनके आंसू चुनने लगा- बस … बस … मेरी जान. बस… हो गया हो गया!
मैं नीता वैनी को दिलासा भी दे रहा था और अपने निचले धड़ को कुछ-कुछ क्रियाशील भी कर रहा था.
नीता वैनी की योनि की संकीर्णता अपूर्व थी.
हालाँकि मेरे लंड प्रवेश से पहले बहुत देर तक काम-किलोल करने के कारण उनकी योनि में काम-रस की बाढ़ आ चुकी थी.
फिर भी मुझे उनकी चुत में लंड का प्रवेश करवाने में ज़ोर लगाना पड़ रहा था.
कुछ देर बाद नीता वैनी कुछ संयत हुईं.
मैंने उनकी पेशानी पर एक चुम्बन लिया और उनकी आंखों में देखा.
तत्काल उनके होंठों पर एक मधुर-सी मुस्कान आई और उन्होंने मेरे होंठ चूम लिए.
मैंने अपनी कमर कुछ ऊपर उठाई.
मेरा लंड कोई एक इंच उनकी चुत से बाहर खिसका और अगले ही पल फिर जहां था, वहीं वापस पेवस्त हो गया.
फिर मैंने अपना लंड कोई दो इंच उनकी चुत से बाहर निकाला और वापस वहीं धकेल दिया.
धीरे-धीरे ऐसा करते-करते नीता वैनी के शरीर में कुछ-कुछ प्रणय-हिलोर-सी उठने लगी और उनकी योनि में दोबारा रस-स्राव होने लगा.
धीरे-धीरे नीता वैनी भी मेरी ताल से ताल मिलाने लगीं.
जैसे ही मैं लंड को बाहर की ओर खींचता, नीता वैनी अपने नितंबों को पीछे की ओर खम दे देतीं.
नतीजतन मेरा लंड उनकी चुत से एक-आधा इंच और ज़्यादा बाहर आ जाता … और जैसे ही मैं अपने लंड को वापस चुत में आगे को डालता, नीता वैनी अपने नितंबों को ज़ोर से आगे की ओर धकेल देतीं.
इससे उनकी चुत में धँसता हुआ मेरा लंड हर नए धक्के में एक-आध सेंटीमीटर और गहरा धँसने लगा.
नीता वैनी ने अपने दोनों हाथ अपनी चुत के आसपास रखे हुए थे और उनकी चुत में मेरा आता जाता लंड उनकी उंगलियों के पोरों को छूकर आ-जा रहा था.
शायद नीता वैनी अपनी ही चुत की थाह नाप रही थीं.
करीब दसेक मिनट बाद उनकी चुत ने मेरा समूचा लंड लील लिया, लेकिन मेरे धक्कों में कोई कमी नहीं आई थी.
अपितु अब तो नीता वैनी की जांघों से मेरी जांघें टकरातीं और एक तेज़ ‘ठप्प’ की आवाज़ आती.
इसके साथ ही नीता वैनी के मुँह से ‘आह’ की एक सीत्कार निकल जाती.
‘आह …ह …ह …ह … यस … यस … उफ़… ज़ोर से … हा…हआ … मार डालो मुझे … आह …ह …!’
मैं भी हुम्म हुम्म करके उनकी चुदाई का मजा ले रहा था.
‘हय रा… ज़… हूँ… हूँ… मर गई मैं… उफ़…फ़…फ़..!’
बेहिसाब चुम्बनों का आदान-प्रदान जारी था.
हम दोनों अपने आप से बेसुध, तेज़ी से एक-दूसरे में समा जाने का उपक्रम कर रहे थे.
दोनों की सांसें भारी और बेतरतीब हो रही थीं.
नीता वैनी की दोनों टांगें हवा में लहरा रही थीं और अब मेरा लंड कुछ सुगमता से नीता वैनी की योनि में आवागमन कर पा रहा था.
बेड के सारे अंजर पंजर ढीले हो गए थे और समूचा बिस्तर हमारी लय पर चूँ-चूँ कर रहा था.
हमारे जिस्मों का जबरदस्त काम-उफान हमें अपने साथ बहा ले जाने को आमादा था.
पूरे कमरे में रति-सुगंध फैली हुई थी और हमारे दोनों जिस्मों में विद्यमान कामदेव का आवेश अपने चरम पर था.
मेरा काम-आवेग अपने चरम पर था और मेरी कमर बिजली की रफ्तार से चल रही थी.
‘टप्प … टप्प … टप्प … टप्प.’
मंजिल अब ज्यादा दूर नहीं थी.
मैंने नीता वैनी के दोनों हाथ उनके सिर के आजू-बाजू टिका कर अपनी कलाइयों से दबा लिए और अपना ज्यादातर वजन कोहनियों पर डाल लिया.
फिर मैंने अपने लंड को नीता वैनी की चुत से पूरा बाहर निकाला और चुत के भगनासा को अपने शिश्नमुंड से रगड़ते हुए वापस चुत की गहराई में उतारने लगा.
नीता वैनी की चुत के भगनासे पर मेरे लंड के बार-बार रगड़ने से उनका काम-आनन्द सहस्र गुना बढ़ गया और उनका काम-शिखर छूना महज वक्त की बात रह गया था.
अचानक मैंने नीता वैनी के शरीर में जबरदस्त थरथराहट महसूस की.
कुछ ही देर बाद उनका शरीर अकड़ने लगा और उनके मुँह से अजीब-अजीब सी आवाजें निकलने लगीं.
‘हाय …य … मरी… आह मरी … मैं मरी … सी…ई …ई …ई मर गई ..!’
अचानक मेरे लंड पर नीता वैनी की चुत की पकड़ बहुत सख्त हो गई और फिर उनकी चुत में जैसे काम-रस की जोरदार बारिश होने लगी.
इसके साथ ही नीता वैनी की आंखें उलट गईं और वे बेहोश-सी हो गईं.
उनका गर्म-गर्म रस मेरे लंड के साथ-साथ चुत से बाहर टपकने लगा.
कुछ देर ऐसे ही पड़े रहने के बाद मेरा लंड फिर से कड़क हो गया.
यह देख नीता वैनी उठ खड़ी हुईं और टेबल पर पड़ी तेल की बोतल ले आईं.
अपने हाथों में ढेर सारा तेल लेकर उन्होंने मेरे लंड पर रगड़ना शुरू किया, जिससे मेरा लंड बहुत चिकना हो गया.
नीता वैनी बोलीं- अब तेरी बारी है … अब मैं तुझे मजा दूँगी. बस तू ऐसे ही पड़ा रह.
मैं तो उनका हर हुक्म मानने को तैयार था. अच्छे से मालिश करने के बाद उन्होंने अपने हाथ मेरी छाती पर रखे और मेरे लंड के ऊपर आ गईं.
एक हाथ से लंड पकड़ कर उन्होंने उसे अपनी चुत के मुँह पर रखा और धीरे-धीरे बैठने लगीं.
उनके मुँह से आवाजें निकलने लगीं- ओ…ओह … ओ गॉड … हाय … आह!
कुछ ही पलों बाद मेरा पूरा लंड उनकी चूत की गर्मी महसूस कर रहा था.
कुछ देर वैसे ही रहने के बाद नीता वैनी मेरे मुँह की ओर बढ़ीं और मेरे होंठों को चूमने लगीं.
ऐसा करते समय उनके बूब्स मेरी छाती को छू रहे थे और उनका मंगलसूत्र चुभ रहा था.
मैंने नीचे से हल्के-हल्के धक्के मारना शुरू किया.
इससे वे और कामुक होकर पीछे हटीं और मेरी छाती का सहारा लेती हुई मेरे लंड पर उछलने लगीं.
उनके उछलने के साथ उनके बूब्स भी ऊपर-नीचे हो रहे थे.
उनकी सिसकारियां तेज होती गईं और उनकी स्पीड बढ़ने लगी.
उनके झुमके और मंगलसूत्र भी खूब हिल रहे थे, जो इस दृश्य को और मादक बना रहा था.
उनकी चूड़ियों की खनक कानों में मधुर संगीत पैदा कर रही थी.
मैंने उनके बूब्स अपने हाथों में भर लिए और नीचे से भी धक्के मारने लगा.
काफी देर उछल-कूद के बाद नीता वैनी मेरे ऊपर गिर पड़ीं और मुझे हर जगह चूमने लगीं.
मैं भी उन्हें चूमते हुए नीचे से जोरदार धक्के मार रहा था.
उनकी सिसकारियां चूमते हुए भी निकल रही थीं- सी…इ … इ…ई …ई … प्लीज… नहीं… आह … ह …ह!
मैं बेसुध उनकी चुत को रगड़ने में लगा था.
नीता भाभी के कंठ से मादक आवाजें कमरे के माहौल को और गर्माती जा रही थीं- आआह … उईईइ… मम्मम्मा… आंह … आंह … मैं मर गईईई …इस्सस्स.
मेरा लंड उनकी चूत के भीतर अन्दर तक जाकर उनकी बच्चेदानी को ठोकर मार रहा था.
उनका पानी निकलने लगा और मेरा पूरा लंड गीला हो गया.
भाभीXxx झड़ गई थीं.
फिर अचानक चार पांच धक्कों के बाद मेरे लंड से जोरदार फव्वारा निकल गया.
नीता वैनी ने मुझे पूरा मजा दिया था.
हम ऐसे ही एक-दूसरे के ऊपर निढाल पड़े रहे.
दोस्तो, यह तो एक शुरुआत थी. इसके बाद भाभी ने मुझे अपने जिस्म के हर हिस्से का जो सुख दिया, वह काबिले तारीफ था.
आपको जरूर सुनाना चाहूँगा.
आप यदि मुझे इस भाभीXxx नॉनवेज़स्टोरी पर अपने कमेंट्स से नवाजेंगे तो मैं जरूर लिखूँगा.
धन्यवाद.
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