अपंग बाप की वासना और मजबूरी

सेक्स की जरूरत की कहानी में पढ़ें कि पत्नी की मौत और अपंग होने के बाद मेरी सेक्स लाइफ खत्म हो गयी. उधर मेरी जवान बेटी शादी लायक हो चुकी थी.

दोस्तो, आज मैं आपको अपने एक पाठक की कहानी सुनाने जा रहा हूँ।

मेरी पिछली कहानी थी: मेरी दूसरी सुहागरात

खैर उन्होंने तो सिर्फ एक ईमेल में मुझे अपनी व्यथा बहुत थोड़े से शब्दों में लिख कर भेजी थी, साथ में ये लिख दिया था कि बाकी आप खुद अपने हिसाब से लगा लेना।
तो उनकी कहानी को अपने अंदाज़ में अपने मिर्च मसाले लगा कर आपके सामने पेश कर रहा हूँ। उम्मीद है आपको सेक्स की जरूरत की कहानी पसंद आएगी।

दोस्तो नमस्ते, मेरा नाम अवतार है, और मैं 54 साल का हूँ।
मेरे घर में मेरे सिवा मेरी एक बेटी है जो 25 साल की है।

पहले मेरा भरा पूरा परिवार था। मैं मेरी पत्नी, एक बेटी और एक बेटा।
एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था, बच्चे पढ़ रहे थे, तनख्वाह भी अच्छी थी, सब बहुत बहुत बढ़िया चल रहा था।

फिर ना जाने किसकी नज़र लग गई।
एक एक्सीडेंट मे, मेरी पत्नी और मेरा बेटा मुझे छोड़ कर चले गए, मेरी दोनों टाँगें नकारा हो गई।
जो चार पैसे बचा कर रखे थे, वो सब मेरे इलाज में और बाकी कामो में खर्च हो गए।

शुरू शुरू में तो कुछ दोस्तों रिशतेदारों ने दरियादिली दिखाई, मगर सारी उम्र कौन किसका खर्चा उठा सकता है।
प्राइवेट जॉब थी तो जॉब गई तो घर में खाने के लाले पड़ गए।

कहाँ मैं सोच रहा था कि अपनी बेटी की शादी करूंगा, मगर अब हालात ये थे कि कोई रिश्ता भी नहीं आ रहा था।

उस एक्सीडेंट के 4-6 महीने में ही सारी दुनिया ने जैसे मुझसे मुँह मोड़ लिया।
ना मुझे समझ में आ रहा था कि मैं क्या काम करूँ … क्योंकि चल तो मैं बिलक्कुल नहीं सकता था, सारा दिन व्हील चेयर पर बैठा रहता था।

तो एक दिन अपने एक मित्र से कह कर मैंने अपनी बेटी की नौकरी का इंतजाम कर दिया।

अब जॉब तो उसकी भी प्राइवेट थी।
सुबह साढ़े आठ वो घर के सारे काम निपटा कर चली जाती और शाम को 7 बजे के करीब घर आती।
घर आकर वो मुझे खाना बना कर देती।

मैं भी व्हील चेयर पर बैठे बैठे जितना काम हो सकता था, करता रहता। घर की सफाई कर देता, चाय बना लेता था।

इस एक्सीडेंट से उबरने में और ठीक होने में मुझे करीब एक साल लग गया।

बेटी का काम भी ठीक से जम गया था।

मगर अब मैं नोटिस कर रहा था कि उसमें भी बदलाव आने लगे हैं।

पहले वो सिर्फ सलवार कमीज़ पहनती थी, मगर वो जीन्स टीशर्ट, कैप्री, लेगिंग सब पहनने लगी।
घर में तो वो टीशर्ट और निकर में ही रहती थी।

अब इतनी बुज़ुर्गी तो मुझ पर भी नहीं आई थी, बेशक टाँगें नकारा हो चुकी थी मगर औज़ार एकदम सही था। रोज़ सुबह जब सोकर उठता हूँ तो पूरा कड़क होता है।
अब जब पेट में जाए अन्न तो खड़ा होए लन्न।

मगर इस खड़े का मैं क्या करूँ … कहाँ जाऊँ।
पैसे सारे बेटी के हाथ में होते थे तो उससे तो मांग नहीं सकता था कि बेटी थोड़े पैसे दो, मुझे किसी रंडी के पास जाना है।

तो इसका एक जवाब ये ढूंढा कि घर में काम करने वाली नौकरानी रख लो।
जो काम वाली रखी तो करीब 50 साल की रही होगी।

अब ये लोग अपना ख्याल तो रखती नहीं, तो इसलिये वो 50 में भी काफी बूढ़ी सी लगती थी।
मगर कुछ दिन बाद वो बूढ़ी भी मुझे परी लगने लगी।

अब दिक्कत यह थी कि इससे सेक्स की बात कैसे की जाए, आगे कैसे बढ़ा जाए।
और दूसरी बात अगर वो अपना घागरा उठाएगी, तो पैसे भी तो मांगेगी तो पैसे कहाँ से लाऊँगा।

फिर मैंने और स्कीम सोची कि पहले इसे पटा कर देखते हैं, पैसे का भी कोई न कोई इंतजाम हो ही जाएगा।

वो करीब 11 बजे आती थी, तो मैंने उसके आने का बड़ी बेसबरी से इंतज़ार करना, जब वो आती तो उसे चाय बना कर देनी, उससे बातें करनी, उसके दुख सुख में उसको सलाह देनी!

मतलब थोड़े दिनों में उससे मैंने दोस्ती सी तो कर ली।
अब वो भी चाय पीते वक्त मुझसे बहुत सी बातें कर लेती थी।

एक दिन मैंने उसे बातों बातों में बता दिया कि मुझे और कोई दिक्कत नहीं बस रात को नींद नहीं आती।
बीवी के जाने के बाद रात गुज़ारनी बहुत मुश्किल हो गई है। समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूँ।

अब इशारा तो वो मेरा समझ गई … मगर बोली कुछ नहीं!
लगे हाथ मैंने साथ में ये भी कह दिया कि अब मेरे पास कोई पैसे भी नहीं होते, सारी कमाई बेटी के पास होती है, तो इस काम के लिए उससे पैसे मांग भी नहीं सकता।
अपनी बात कहते हुये मैंने अपने चेहरे पर बड़ी मायूसी और बेचारगी के भाव बनाए रखे।

उस दिन तो कुछ नहीं हुआ मगर हर थोड़े दिन बाद मैं घूमा फिरा कर फिर वही बात कहता।
मुझे यकीन था कि अगर ये मेरी बात बार बार सुन रही है तो एक दिन मान भी जाएगी।

अगर इसने ये काम नहीं करना होता तो मेरी बात ही नहीं सुनती; मुझे पहले ही टोक देती।

मेरी मेहनत रंग लाई।
एक दिन फिर चाय पीते पीते मैंने बात छेड़ी।

मैंने यूं ही झूठ ही कह दिया- जानती हो, आज के ही दिन मेरी शादी की सालगिरह है। पिछले साल हम दोनों ने कितना मज़ा किया था, दोनों सारा दिन घूमे, खाया पिया और रात को को कितना एंजॉय किया. और आज मैं अकेला यहाँ सड़ रहा हूँ। कोई भी ऐसा नहीं जो आज मेरा हाथ पकड़ सके, मुझे आज के दिन सांत्वना दे सके।

मैंने जानबूझ कर कुछ रोने की एक्टिंग सी करी।
वो उठी और मेरे पास आकार बोली- साहब मैं कई दिन से आपकी ये दर्द भरी कहानी सुन रही हूँ, आपने हमेशा मेरे सुख दुख में मुझे अच्छी सलाह दी, मैं आपके लिए क्या कर सकती हूँ। आप बताओ?

मैं अंदर से खिल उठा, बोला- तुम क्या करोगी, तुम भी शादीशुदा हो बाल बच्चे वाली हो। तुम्हें मैं कैसे ये सब कह सकता हूँ?
वो बोली- कोई बात नहीं साहब, मैं सब समझती हूँ। आप बहुत अच्छे हैं, रोज़ मुझे चाय पिलाते हैं, मेरे हर दुख दर्द को समझते हैं, बहुत सी कोठी वाली तो औरत होकर भी मेरी बात नहीं सुनती, मगर आप एक मर्द होकर भी मेरी सब बात सुन लेते हो। आपने मुझे इतना मान दिया, अब आपके लिए मुझे भी कुछ करना चाहिए।

मैंने सोचा कि यार क्या कहूँ, इसे कैसे कहूँ।
फिर कुछ सोच कर बोला- अगर तुमसे कुछ मांगूं तो दे सकती हो?
वो बोली- आप कहिए तो सही!

मैंने कहा- मुझे अपनी पत्नी का प्यार चाहिए, उसके तन का, मन का सब सुख चाहिए।
वो खड़ी मुझे देखती रही।

मुझे लगा जैसे ये चाह रही हो कि भोंसड़ी के हाथ आगे बढ़ा कर पकड़ ले अब क्या खुद ही तेरा लौड़ा पकड़ कर अपनी चूत में डालूँ।
तो मैंने अपने दुखी भाव के साथ उसका हाथ पकड़ कर कहा- तुम्हारा साथ ही मेरी ज़िंदगी को संवार सकता है.
कहते हुए मैंने उसका हाथ चूम लिया।

बाद में मुझे ख्याल आया कि यार ये तो झाड़ू लगा रही थी, और अपने हाथ भी धोकर नहीं आई।
मगर कोई बात नहीं … मैंने उसका हाथ सिर्फ ये देखने के लिए चूमा था कि कहीं वो इस बात का विरोध तो नहीं करती।

मगर वो कुछ नहीं बोली, तो मैंने उसके हाथ को फिर से चूमा और उसकी बाजू को सहलाया।
और सहलाते हुये उसे अपनी ओर खींचा।

वो आगे आई तो मैंने उसे अपनी बांहों में भर लिया।
स्त्री का आलिंगन करते ही मन बाग बाग हो गया, खिल उठा।

उसके ढीले मम्मे मेरे सीने से लगे और मैंने उसके गाल पर चूमा।
उसने भी मुझे हल्के से अपनी बांहों में भरा!

बस अब और क्या चाहिए था … तीन महीने की मेहनत रंग लाई, और आज मेरी काम वाली मेरी आगोश में थी।
मैंने बिना कोई और देर किये सीधे उसका मम्मा पकड़ा, थोड़ा ढीला सा नर्म सा था, ब्रा भी नहीं पहना था.
मगर फिर भी पराई औरत के जिस्म अलग ही कशिश होती है।

एक दो बार मम्मे दबा कर मैंने उसका ब्लाउज़ ऊपर उठा कर उसके मम्मे बाहर निकाले और चूस लिए।
मुँह में मम्मे के साथ उसके गंदे पसीने का स्वाद भी आया।

मैंने उससे कहा- एक बात कहूँ, क्या तुम मेरे लिये नहा सकती हो?
वो बोली- हाँ क्यों नहीं!

वह आगे आगे और मैं व्हील चेयर पर पीछे पीछे … वो बाथरूम में घुसी, मैंने भी अपने कपड़े उतारे.
बिलकुल नंगा होकर मैं भी अपने बदन को घसीटते हुये बाथरूम में घुस गया।

उसने अपने कपड़े उतारे तो मैंने अपने मोबाइल पर उसकी वीडियो बनानी शुरू कर दी।
मैं उठ कर खड़ा नहीं हो सकता था तो वो नीचे बैठ गई।

मैंने उसके बदन को अपने हाथों से साबुन लगा कर धोया। गंदमी रंग का भरा हुआ बदन।
करीब 36 साइज़ के मम्मे, बड़ा हुआ पेट, मोटी गाँड, भरी हुई जांघें। अंदर से तो वो बहुत पर्फेक्ट थी।

उसने भी मुझे नहलाया।
उसके हाथ लगाने से मेरा लंड अकड़ गया।
तो मैंने कहा- चूस ले इसे मेरी जान!

उसने मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़ा और मुँह में लेकर चूसा।
महीनों बाद ऐसा आनंद मिला।

मगर मैंने उसे ज़्यादा देर लंड चूसने नहीं दिया; मुझे डर था कि जैसे वो मज़े ले लेकर चूस रही थी, कहीं मेरा पानी ही न निकल जाए।

उसके बाद मैं उसे अपने बेडरूम में ले आया।
पहले अपने तौलिये से अपना बदन पौंछा, फिर उसका बदन पौंछा।

उसके बाद व्हील चेयर से उतर कर बेड पर बैठ गया, वैसे ही बिलकुल नंगा और लंड मेरा पूरा ताव में!

मैंने उसे कहा- वो अलमारी खोलो.
उसने अलमारी खोली।
मैंने कहा- उसमे ऊपर वाले दराज़ में मेरी बीवी के कपड़े हैं। तुम उनमे से एक ब्रा और पेंटी निकाल कर पहन लो।

उसने एक सफ़ेद ब्रा और एक मेरून कलर की पेंटी निकाल कर पहन ली।
फिर उसने मेरे कहने पर मेरी बीवी की लिपस्टिक लगाई, आँखों में काजल डाला। आने हिसाब से वो थोड़ा साज संवर कर मेरे पास आई।

मैंने कहा- बड़ी सुंदर लग रही हो!
जबकि वो लग नहीं रही थी.
मैंने उसकी झूठी तारीफ करी।

वो खुश हो गई, मुस्कुरा पड़ी.
मैंने उसे अपने पास बुलाया और अपनी कमर पर बैठने को कहा।

वो मेरी कमर पर एक टांग इधर और दूसरी टांग उधर कर करके बैठ गई।
मैंने उसके दोनों कूल्हों को पकड़ कर दबाया और उसको अपनी और खींच कर उसके होंठों को चूस लिया।

लिपस्टिक के स्वाद में उसके बासी मुँह का ज़ायका दब गया.

अब तो मुझे उसके जिस्म में कोई हूर नज़र आ रही थी।
मैंने उसके दोनों मम्मे पकड़े और खूब दबाये और जी भर के उसके होंठ चूसे, गाल चूसे।
वो भी अपनी कमर हिला कर अपनी चूत को मेरे लंड पर घिसा रही थी।

मैंने कहा- ब्रा खोल!
तो उसने अपने ब्रा की हुक खोलकर अपने दोनों मम्मे मेरे सामने आज़ाद कर दिये।

मैंने उसके मम्मे को पकड़ कर उसका निपल चूसा और जोश में आकर काट लिया तो वो सिसक उठी- अरे साहब, निपल पर मत काटो, दर्द होता है, कहीं और काट लो.
तो मैंने उसके मम्मो पर कई जगह काट काट कर निशान बना दिये।

मैंने कहा- जानेमन, बहुत दूध पी लिया, अब ज़रा अपनी मस्त चूत का नमकीन पानी का भी मज़ा दिला दो.
मेरे कहने पर वो उठकर खड़ी हुई और चड्डी उतार दी।

उसकी बालों से भरी चूत के भीगे होंठ मुझे साफ दिखे।

मैं सीधा होकर लेट गया तो वो मेरे ऊपर उल्टी हो कर लेट गई।
अपनी भरी हुई गाँड उसने मेरे मुँह पर रख दी।

मैंने उसके चूत के दोनों फांक खोल कर हल्के से अपनी जीभ से छुआ।
दरअसल मैं उसकी चूत के पानी का स्वाद देखना चाहता था.

अगर मुझे स्वाद अच्छा न लगता तो मैं शायद मैं उसकी चूत ना चाटता. मगर उसकी चूत का स्वाद ठीक था तो मैं अपनी जीभ उसकी चूत के दाने पर और सुराख के अंदर यहाँ वहाँ हर जगह
से चाट गया।

वो भी मेरे लंड को पूरा मज़ा लेकर चूस रही थी।
मेरे लंड टोपा बाहर निकाल कर पूरा गुलाबी टोपा उसने चाटा, चूसा; मेरे आँड ताक चाट गई।

फिर मैंने कहा- बस अब ऊपर आ जाओ, मैं तो तुम्हें चोद नहीं सकता, ये काम तुम्हें ही करना पड़ेगा।
वो बोली- कोई बात नहीं साहब, मुझे कोई दिक्कत नहीं है।

कह कर वो घूमी और मेरे ऊपर आ बैठी। उसने मेरे लंड को पकड़ा और अपनी चूत में लेने लगी, दो चार बार ऊपर नीचे होकर उसने मेरा सारा लंड निगल लिया।
अब वो अपने पाँव के बल बैठ कर चुदवाने लगी।

मुझे तो स्वर्ग के नज़ारे आ गए।
क्या मस्त चूत थी उसकी … गीली, चिकनी और टाईट।

मैंने पूछा- तेरा पति नहीं करता तेरे साथ?
वो बोली- करता है … पर बहुत कम! कभी कभी ही उसका मन करता है, नहीं रोज़ तो वो दारू में ही धुत्त रहता है।

मैंने पूछ लिया- तो फिर तुम किसी और के पास जाती होगी?
वो हंस कर बोली- हाँ है एक!

मैंने पूछा- कौन है?
वो बोली- जाने दो साहब, बस है कोई!
मुझे भी उससे क्या था।

वो धीरे धीरे मुझे चोदती रही; मैं उसके मम्मों से खेलता रहा।

उसका हुआ या नहीं मुझे पता नहीं … मगर करीब 7-8 मिनट के चुदाई के बाद मेरा ज्वालामुखी उसकी चूत के अंदर ही फट गया।
बहुत माल गिरा। भर भर के उसकी चूत से गाढ़ा सफ़ेद माल बाहर को चू रहा था।

मगर वो नहीं रुकी, तब तक जब तक उसका काम भी नहीं हो गया।
उसके बाद वो मेरे ऊपर ही निढाल होकर गिर गई।

कुछ देर वैसे ही लेटने के बाद वो उठी।
बाथरूम में जाकर अपना मुँह धोकर आई, लिपस्टिक काजल साफ किया, फिर मेरे बदन को साफ किया।

उसके बाद मुझे कपड़े निकाल कर दिये।

मैं कपड़े पहन कर फिर से अपनी व्हील चेयर पर बैठ गया।
वो चली गई।

उसके बाद हमारा तो काम चल निकला।
जब भी दिल करता वो मेरे घर आती; सुबह 9 से 6 बजे के बीच कभी भी।
मेरी सेक्स लाइफ बिलकुल रेगुलर हो गई।
अब तो मैं हर वक्त खुश रहता।

एक दिन रात को मुझे नींद नहीं आ रही थी, बड़ा मन कर रहा था कि काश इस वक्त होती तो साली को पेलता।

नींद नहीं आ रही थी तो मैं बेड से उठ कर अपनी व्हील चेयर पर आ गया।
रात के करीब 11 बजे होंगे।

मुझे अपनी बेटी के कमरे से आवाज़ आई हंसी की।
मुझे लगा किसी से फोन पर बात कर रही होगी।

तो मैं धीरे धीरे से अपनी व्हील चेयर खींचता हुआ, बाहर को आ गया।

जब अपनी बेटी के कमरे के पास गया तो उसके कमरे की बत्ती जल रही थी।

खिड़की से अंदर झाँका तो मेरे पैरों के तले से ज़मीन निकल गई।
मैंने देखा कि बिस्तर पर मेरी बेटी घोड़ी बनी हुई है और एक लड़का उसे पीछे से पेल रहा है. जबकि दूसरे ने उसके मुँह में अपना लंड दे रखा है।

मैं तो जैसे शर्म से ज़मीन में ही गड़ गया … काँप उठा.
अपनी व्हील चेयर चलाते हुये मैं वापिस अपने कमरे में आ गया।

आज पहली बार मैंने अपनी जवान बच्ची को बिलकुल नंगी देखा और वो भी दो मुश्टंडों से एक साथ चुदवाते हुये।
मुझे तो जैसे मरने को जगह नहीं मिल रही थी।

फिर मैंने सोचा कि वो भी जवान है, उसकी भी शादी की उम्र है, उसे भी तो अपने लिए एक साथ चाहिए।
ठीक है अगर उसका एक बॉय फ्रेंड होता तो कोई बात नहीं थी.
मगर ये तो दो थे और दोनों को देख कर लग रहा था के दोनों में से मेरी बेटी को तो कोई भी प्यार नहीं करता होगा।

मैंने सोचा कि इसके बारे में मुझे अपनी बेटी से बात करनी होगी।
एक दो दिन बाद मैंने उससे कहा- बेटा देखो अब तुम्हारी शादी की उम्र हो गई है, अगर मैं किसी काबिल होता तो तुम्हारे लिए कोई अच्छा सा वर खोजता। मगर तुम भी जानती हो, मैं मजबूर हूँ। अगर तुम्हारी कोई पसंद है, तो वो बता दो। मुझे वो भी मंजूर होगा।

बेटी ने पहले हैरानी से मुझे देखा और फिर बोली- ये आज अचानक मेरी शादी की बात कैसे छेड़ दी आपने?
मैंने कहा- बस मैंने सोचा, अब तुम्हें भी शादी कर लेनी चाहिए. चलो जो गलती हो गई सो हो गई, पर आगे से सब ठीक हो जाए तो अच्छा है।

वो मेरे पास आई और बोली- कौन सी गलती कर ली मैंने?
मैंने कहा- अरे जाने दो, छोड़ो उसे! तुम ये बताओ कि तुम्हें कोई लड़का पसंद है?

वो बोली- नहीं … पहले आप ये बताओ कि आपने मेरी कौनसी गलती पकड़ी है?
फिर मुझे मजबूर हो कर उसे कहना पड़ा- परसों रात को मैं वैसे ही बाहर आया था, तो मैं देखा था वो दो लड़के और तुम …
कहते कहते मैं रुक गया।

वो मेरे पास आकर बैठ गई और बोली- पापा, वो दोनों लड़के मेरे बॉय फ्रेंड नहीं थे।
मैंने पूछा- तो फिर तुम उनके साथ ऐसे?

वो सुबकने लगी और खुल कर बताने लगी:

ये सब आपके उस दोस्त ने ही शुरू किया जो आपके सामने मुझे अपनी बेटी कहता था।
मगर जब उसे पता चला कि मुझे आपके इलाज के लिए और पैसे चाहिए, उसी दिन वो अपनी औकात पर आ गया.
उसने मेरे सामने उसने शर्त रख दी कि अगर मुझे पैसे चाहिए तो मुझे उसकी बात माननी पड़ेगी।

मैंने बहुत सोचा, आपसे भी बात करनी चाहिए मगर आप भी मेरी क्या मदद करते।

फिर मजबूर होकर मैंने उसकी बात मान ली।

उसके बाद तो जैसे उसने मुझे अपने लिए ही रख लिया।
जब वो मुझे पैसे देता तो अपने ढंग के कपड़े भी पहनने को कहता, उसके कहने पर ही मैंने जीन्स टी शर्ट वगैराह पहनने शुरू किए।
फिर उसका बेटा विदेश से पढ़ कर वापिस आ गया।

जब उसने फेक्टरी जॉइन की एक उसने मुझे अपने बाप के साथ रंगे हाथों पकड़ लिया।
उसने अपने बाप को तो कुछ नहीं कहा मगर उसके बाद मेरी रेल बन गई। जब दिल करता बाप पकड़ लेता, जब दिल करता बेटा पकड़ लेता।
मुझे तो उन लोगों ने अपनी रखैल ही बना कर रख लिया।

धीरे धीरे मुझे समझ आने लगा कि ये खेल सिर्फ इसी चीज़ का है।

उसके बाद मैंने अपने दम पर अपने लिए लोग तलाश करने शुरू किए।
इसमें मुझे कोई खास दिक्कत नहीं आई।
और फिर तो मेरे बहुत से दोस्त बन गए।
उस रात जो आपने देखा वो मेरे बॉय फ्रेंड नहीं थे, मेरे क्लाइंट थे।

मैंने कहा- तो क्या तुम धन्धा करने लगी हो?
वो बोली- आप ये भी कह सकते हो. मगर यह मत भूलना कि ये जो आज आप अच्छा खा पीकर बढ़िया कपड़े पहन कर बैठे हो, ये सिर्फ उस फेक्टरी की कमाई है। इसमें मेरा खून पसीना सब लगा है।

इतना कहकर मेरी बेटी रोने लगी।

मैं पत्थर के बुत की तरह वहाँ बैठा रहा, अपनी रोती हुई बेटी को चुप भी न करवा सका।

रोने के बाद वो खुद हही चुप हो गई और मैं अपनी व्हील चेयर खींचता वापिस अपने कमरे में आ गया।

उस रात मुझे नींद नहीं आई, मैंने खुद को बहुत ही मजबूर पाया।

उसके बाद मैंने अपने मन में सोचा कि अगर मैंने समय से उसकी शादी कर दी होती आज मुझे ये दिन न देखना पड़ता!

मगर फिर धीरे धीरे मुझे इस सब की आदत सी हो गई, क्योंकि अब तो हर रात मेरी बेटी के कमरे से मुझे आवाज़ें आती हैं. मगर अब मुझे उनसे कोई परेशानी नहीं क्योंकि दिन में अब मैं अपने कमरे में अपनी कामवाली की आवाज़ें निकलवाता हूँ अपनी ही बेटी के ब्रा पेंटी पहना कर।

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