चाय वाली राजस्थानी औरत की चुदाई- 1

राजस्थानी सेक्स की कहानी एक मारवाड़ी औरत की है. मैं उसकी टपरी में चाय पीने जाता था. मुझे वो मारवाड़ी पोशाक में बहुत सेक्सी लगती थी. मी उसे चोदना चाहता था.

मित्रो, आज मैं आपको कुछ महीने पहले की बात सुनाने जा रहा हूँ. तब मैंने एक चायवाली राजस्थानी औरत को उसकी चाय की टपरिया (छोटी दुकान) के पीछे बने उसके कमरे में जाकर चोदा था.

मेरा नाम अनुज है और मैं मुंबई से पुणे अपने काम से आया था.

मुम्बई में मैं एक कम्पनी में काम करता हूँ और इधर पुणे में कम्पनी की तरफ से कुछ समय के लिए आया था.
मैंने पुणे में एक कमरा किराये पर लिया था और रोज़ सुबह जल्दी घर से निकल जाता था. शाम को मुझे वापस आते आते सात बज जाते थे.

अकेले होने के कारण मेरा नाश्ता और खाना सब बाहर ही होता था.

यह एक सच्ची राजस्थानी सेक्स की कहानी है.

मेरे घर से थोड़ी ही दूर एक चाय की टपरिया थी, जहां मैं रोज़ सुबह चाय नाश्ता किया करता था. कभी कभी शाम का नाश्ता भी वहीं पर कर लेता था.

वो छोटा सा होटल एक राजस्थानी का था.
उधर वो राजस्थानी और उसकी बीवी दोनों काम करते थे.
उस टपरिया के पीछे ही बने एक छोटे से कमरे में वो दोनों रहते थे.

उस औरत की उम्र लगभग तीस बत्तीस साल के बीच की रही होगी.
वो दिखने में काफी अच्छी थी और उसका गोरा बदन था. वो हमेशा घाघरा और चोली पहनी होती थी और उसके ऊपर एक दुपट्टा होता था.

वो नाभि के नीचे घाघरा पहनती थी, जिस कारण उसका गोरा और चमकदार पेट साफ़ नज़र आता था.
उसकी चोली भी हमेशा कसी हुई रहती थी, जिस कारण उसके बड़े बड़े चुचे एकदम कसे हुए ऐसे दिखते थे मानो बाहर आने को मचल रहे हों.
घाघरे में से उसकी उठी हुई और कुछ बाहर को आती गांड किसी का भी हथियार खड़ा कर सकती थी.

मैंने इन सब बातों पर कभी ज़्यादा ध्यान नहीं दिया; मैं बस अपना नाश्ता करके निकल जाता था.
अब मेरी उन मियां बीवी से अच्छी ख़ासी पहचान हो गयी थी क्योंकि मैं उनका रोज़ का ग्राहक जो बन गया था.

कभी कभी मैं अपने हाथ से ही कुछ भी सामान लेना चाहता, तो ले लेता था.
वो भी मना नहीं करते बल्कि खुद ही बोलते कि हां हां ले लो साहब, कोई बात नहीं.

ऐसे ही दिन चल रहे थे.

एक दिन मुझे काम पर से आने में थोड़ा देरी हो गई जिस वजह मुझे बहुत भूख भी लगी थी और मेरा टिफ़िन आने में अभी काफ़ी टाइम था.
मैंने सोचा कि आज उसी टपरिया में कुछ खा लेता हूँ.

हालांकि वो दुकान आठ बजे बंद हो जाती थी. तब भी मैंने सोचा कि चल कर देख लेता हूँ, हो सकता है कि खुली हो!
जब मैं वहां पहुंचा, तो दुकान बंद हो गयी थी लेकिन वो दोनों वहीं पीछे ही रहते थे तो मैं उधर जाने लगा.

उस दिन मैंने पहली बार पीछे जाकर देखा था.
वो एक छोटा सा कमरा था. वहां कमरे में लाइट जल रही थी.

मैंने आवाज़ लगायी.
मेरी आवाज सुनकर उस औरत का पति बाहर आया और बोला- क्या हुआ साहब … कुछ चाहिए था क्या? आज बहुत लेट आए आप?
मैंने कहा- हां, आज ज़रा ज्यादा देर हो गई. बड़ी भूख लग रही है और टिफिन आने में भी देर है.

वो समझ गया और उसने अन्दर आवाज लगा कर चाय बनाने का कह दिया.

कुछ ही देर बाद उसकी बीवी ने मुझे चाय और बिस्कुट लाकर दिया.
ये मेरा पेट भरने के लिए फिलहाल काफ़ी था.

मेरे साथ वो भी चाय पी रहा था.
चाय पीते पीते हम दोनों बातें करने लगे.

उसने मुझे बताया कि उसके पिता की तबियत ठीक नहीं है और वो कुछ दिनों के लिए अपने गांव जाने वाला है.
इस पर मैंने पूछा- अरे अगर आप गांव चले गए, तो मैं नाश्ता कहां करूँगा?

उस पर वो बोला कि साहब मैं तो अकेला ही जाऊंगा. मेरी बीवी यहीं पर रहकर दुकान सम्भालेगी. मैं एक हफ़्ते में लौट आऊंगा.
मैंने कहा- हां, फिर ठीक है वरना मुझे बहुत परेशानी हो जाती क्योंकि यहां नज़दीक और कोई दुकान नहीं है.

कुछ देर बाद मैं अपने रूम पर आ गया.
जब सुबह काम के लिए निकल रहा था, तब मैंने देखा कि उस दुकान वाली का पति बैग लेकर निकल रहा था.

मैंने भी उनको बाई बोल दिया और काम पर चला गया.
उस दिन मैं टाइम पर घर आया और उस दुकान में नाश्ता करने चला गया.

तब वो दुकान वाली औरत चाय बना रही थी.
मैंने भी एक चाय ले ली.

उसने मुझे चाय दे दी और काम पर लग गयी.
मैंने उससे पूछा कि आप सब सम्भाल लेती हो?

उसने कहा- हां, इसमें कौन सी बड़ी बात है. यह तो मेरा रोज़ का काम है.
मैंने पूछा कि आपके पति गांव गए हैं, तो आपको अकेले डर नहीं लगता?

उस पर वो मुस्कुराई और बोली- डर किस बात का … मैं किसी से नहीं डरती.
मैंने कहा- ये तो अच्छी बात है.

फिर मैं अपना नाश्ता खत्म करके वहां से चला गया.
दूसरे दिन मुझे फिर से काम से आने में देरी हो गई.
लगभग साढ़े आठ बज गए थे और भूख भी लगी थी.

जब मैं उस दुकान में पहुंचा, तब तक दुकान बंद हो गयी थी.
मैंने पहले की तरह आवाज़ लगायी- कोई है अन्दर?

आज वो औरत बाहर आयी.
जब वो बाहर आयी, तब उसने सिर्फ़ घाघरा और चोली ही पहन रखी थी … दुपट्टा नहीं लिया था.

मेरी नज़र सीधे उसके उभरे हुए मांसल मम्मों पर पड़ी और मैं उसके तने हुए दूध देखने लगा.
अभी मैं कुछ बोल पाता कि उससे पहले उसने मुझसे पूछा- साहब कुछ चाहिए आपको?

मैंने कहा- हां, बिस्कुट मिल जाएगी?
वो अन्दर गई और बिस्कुट का पैकेट लेकर वापस आने लगी.

जैसे ही वो मुड़ी थी, मुझे उसकी उभरी हुई गांड दिखी. उसकी गांड तक लहराता हुआ दुपट्टा आज नहीं था.
बिना दुपट्टे के उसकी गांड के दोनों फलक एकदम मस्त दिख रहे थे.

मेरी आंखों के सामने उसकी थिरकती सी गांड मेरे लंड को हिनहिनाने पर मजबूर करने लगी.
मेरा लंड मेरी पैंट में अपनी बदतमीजी दिखाते हुए खड़ा होने लगा.
मन कर रहा था कि इसको इधर ही लिटाकर इसकी गांड में लंड पेल कर इसको चोद दूँ.

उतने में वो वापस आयी और मेरे हाथ में बिस्कुट दे दिए.

मैं अभी तक उसकी गांड के बारे में ही सोच रहा था.
जैसे तैसे मैंने अपने आपको सम्भाला और उसके हाथ में पांच सौ का नोट थमा दिया.

उसने कहा- साहब अभी छुट्टे पैसे नहीं है. आप कल दे देना, कोई बात नहीं.
मैंने भी ‘ठीक है …’ कहा और वहां से चला आया.

मैं अपने रूम में आया लेकिन अभी भी मेरे सामने वो औरत, उसके बड़े बड़े दूध और उसकी बड़ी सी गांड ही घूम रही थी.
मेरे मन में अब उसे चोदने का ख्याल आने लगा. पर ये सब कैसे होगा, इसका मुझे कोई अंदाजा नहीं था.

फिर मैंने सोचा कि यही सही टाइम है क्योंकि अभी उसका पति भी घर पर नहीं है.
मैं पैसे देने के बहाने उसके कमरे पर चला गया. मैंने वहां जाकर उसे आवाज़ दी.

मैंने आवाज़ काफ़ी धीरे से लगायी ताकि कोई और सुन ना ले.
पर मेरी आवाज़ इतनी धीमी थी कि शायद उस औरत को भी सुनाई नहीं दिया.

मैंने सोचा कि अन्दर जाकर देखता हूँ शायद किसी काम में लगी हो.
जैसे ही मैं अन्दर गया तो दरवाज़ा बंद था. मैंने कड़ी बजाई तो वो औरत बाहर आ गयी.

मैं तो उसे देखता ही रह गया. एक तो वो गोरी ऊपर से उसने बाल भी खुले रखे थे और सिर्फ़ घाघरा और चोली पहनी थी, जिसमें से उसका गोरा चिट्टा पेट नाभि तक साफ़ दिख रहा था और रस से भरे हुए उसके बड़े बड़े दूध मेरे सामने तने हुए थे.

मैं तो वहीं खो सा गया.

वो मुझे देखकर बोली- अरे साहब आप इतनी देर बाद फिर से?
मैंने कहा कि आपके पैसे देने आया हूँ.

इस पर वो बोली- अरे साहब कल दे देते ना … तो भी चल जाता.
मगर मैंने उसे पैसे दे दिए.

मेरा ध्यान अभी भी उसके बड़े बड़े मम्मों पर ही था और ये उसने भी देख लिया था.
उसने दोबारा मुझसे पूछा- कुछ और चाहिए साहब?

मैं मन में सोच रहा था कि अब इससे कैसे कहूं कि मैं तुम्हारे इन रस से भरे मम्मों को चूसना चाहता हूँ और तुम्हारी चुत और गांड में अपना लंड डालना चाहता हूँ, पर कह नहीं सका.
मैंने उससे कहा- थोड़ा पानी मिलेगा?

उसने मुझे अन्दर आने को कहा और मैं अन्दर चला गया.
उसका कमरा ज़्यादा बड़ा नहीं था.
एक साइड में एक बाथरूम था, एक साइड में किचन और एक साइड में एक खटिया बिछी थी, जिस पर गद्दा पड़ा था.

उस खटिया को देखकर मैं ये सोच रहा था कि कैसे इसका पति इस खटिया पर इसे पेलता होगा.
उसने मुझे उस खटिया पर बैठने को कहा तो मैं बैठ गया.

मेरी नज़र बार बार उसके मम्मों और गांड पर ही जा रही थी.
ये बात उसको भी समझ आ गयी थी.

इधर मेरे पैंट में मेरा लंड खड़ा हो गया था जिसे मैं दबाने की नाकाम कोशिश कर रहा था.

ये करते हुए उसने मुझे देख लिया और मुझसे पूछा- क्या हुआ साहब?
मैंने कहा- कुछ भी तो नहीं … बस यूँ ही … प्यास लगी है.

वो हंसने लगी और बोली- ठीक है साहब.
उसने मुझे पानी का ग्लास लाकर दिया.
मैंने पानी पीकर ग्लास रख दिया.

उसने मुझसे फिर से पूछा- और कुछ लेंगे साहब?
मैंने भी हिम्मत करके पूछा- और क्या दे सकती हो?

उसने कहा- मेरा मतलब है चाय कॉफ़ी वगैरह कुछ लेंगे?
मैंने भी मज़ाक़ में बोल दिया कि रात में मैं सिर्फ़ दूध पीता हूँ.

वो मेरा मतलब समझ गयी, पर अनजान बनती हुई बोली- साहब अभी तो दूध नहीं है.
मैंने हिम्मत करके उसे छेड़ते हुए कहा- दूध कैसे नहीं है, जब दूध की फ़ैक्टरी यहीं पर है.

वो मेरा मतलब तत्काल समझ गयी पर तब भी वो अनजान बन रही थी.
शायद वो अब गर्म हो रही थी.

मैंने भी सोच लिया कि अभी नहीं तो कभी नहीं, यही सही मौक़ा है.
तो मैंने उसके मम्मों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि सारा दूध पति को पिला दिया क्या?

वो शर्मा गयी और बोली- नहीं साहब, अभी तो वो गांव गए हैं. अभी तो इस फ़ैक्टरी में दूध बाक़ी है.
उसके यह कहते ही मैंने सीधा उसे अपनी ओर खींचा और सीधे उसके मम्मों को दबाने लगा.

वो कहने लगी- अरे साहब ज़रा धीरे से मसलो … आज ये आपके ही हैं.
उसके मुँह से ये बात सुनकर मैंने उसके होंठों को चूमना शुरू कर दिया और वो भी मेरा साथ देने लगी.

चूमते चूमते मैंने अपना एक हाथ उसकी चोली के अन्दर डाल दिया और उसके कोमल और रसीले मम्मों को मसलने व दबाने लगा.
कसम से दोस्तो, क्या मखमली चूचे थे. मेरा तो लंड एकदम कड़क हो गया था.

मैंने उसे सीधा खटिया पर लिटाया और उसके ऊपर चढ़कर उसे चूमना चालू कर दिया.
पहले मैंने उसके नर्म नर्म होंठों को चूमा, तो ऐसा लगा कि मैं कोई रसगुल्ला चबा रहा हूँ.

दो मिनट तक उसके होंठ ही चूसता रहा.
वो भी मेरे मुँह में अपनी जुबान डाल कर मज़े से चूस रही थी.

एक अलग ही मज़ा आ रहा था.
धीरे धीरे मैंने उसकी गोरी और पतली गर्दन पर चूमना शुरू किया और धीरे धीरे नीचे आकर उसके मम्मों को चोली के ऊपर से ही चूमने लगा था.

मेरे ये सब करने में वो इतनी गर्म हो गयी कि उसने खुद से ही अपनी चोली उतार दी.
चोली के अन्दर कुछ नहीं पहनने की वजह से उसके वो ख़ूबसूरत और गोरे गोरे दूध मेरे सामने नंगे हो गए.

मैं तो सच में ऐसे पागल हो गया था मानो कोई ख़ज़ाना हाथ लग गया हो.

अभी के लिए इतना ही दोस्तो, बाकी की सेक्स कहानी को मैं अगले भाग में लिखूंगा कि कैसे मैंने उसकी चूत का रस पिया और कैसे उसकी कुंवारी गांड में अपना छह इंच का लंड पेला.

आपको यह राजस्थानी सेक्स की कहानी कैसी लगी, ज़रूर लिखना.
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राजस्थानी सेक्स की कहानी का अगला भाग: लड़की की गांड मारना आसान नहीं होता