खूबसूरत जिस्म से मौजाँ ही मौजाँ- 3

हॉट गर्ल देसी हिंदी सेक्स स्टोरी में पढ़ें कि बड़ी उम्र का ससुर अपनी बहू की जवानी को ज्यादा देर तक नहीं सम्भाल पाया तो बहू ने जवान लंड की तलाश शुरू की.

कहानी के दूसरे भाग
ससुर के लंड से चूत की सील तुड़वाई
में आपने पढ़ा कि नपुंसक पति के होते दुल्हन ने अपने ससुर के साथ सेक्स करना स्वीकार कर लिया और उसे इसमें खूब मजा आया.

अब आगे हॉट गर्ल देसी हिंदी सेक्स स्टोरी:

अब मालविका का पूरा दिन रात के सपनों में बीतता।

विजय अपना खाना खाकर अपने कमरे में चला जाता और मालविका ठाकुर साहब की बाहों में!
गर्भ निरोध के लिए मालविका ने अपनी डॉक्टर से परामर्श कर के सावधानियाँ बरत ली थीं।

अब खाने के बाद मालविका ठाकुर साहब के कमरे में चली जाती, दोनों साथ नहाते।

मालविका को मम्मे चुसवाने में बहुत आनंद आता था, उसकी ये बात अनुभवी ठाकुर साहब ने भांप ली।
तो अब शावर के नीचे या बेड पर उसके मम्मे और चूत दोनों ही ठाकुर साहब जम कर चूसते।

एक बार की चुदाई में मालविका का मन नहीं भरता पर ठाकुर साहब की मर्दानगी की सीमा 50 साल का होने पर मालविका भी जानती थी तो वो एक ही बार में उनसे टांगें उठा कर भरपूर मज़ा लेती और फिर अपने कमरे में आ जाती।

अब मालविका ठाकुर साहब से खुल कर चुदाई की बात करती और उन्हें चुदाई के लिए उकसाती।

ठाकुर साहब भी इधर उधर से दवाइयाँ लेकर अपनी यौनशक्ति बढ़ाने का प्रयत्न करते।
उन्होंने कई बार मालविका से बच्चा करने की बात की तो मालविका ने कुछ समय के लिए ये बात टाल दी।
जबकि उसे मालूम था कि हवेली को वारिस तो ठाकुर साब के लंड और उसके चूत के मिलन से ही निकलेगा।

शायद ही कोई रात ऐसी बीती होगी जब ठाकुर साहब से चुदने के बाद उसने पॉर्न मूवी न देखी हो और अपनी चूत में मोमबत्ती न की हो।

विजय का कमरा उसने अब ऊपर कर दिया था.
सुबह को विजय नौकरों के आने से पहले मालविका के कमरे में एक बार आकर फिर बाहर चला जाता।
अब मालविका को पॉर्न मूवी या अपनी सीत्कारों के किसी के सुनने की भी चिंता नहीं थी।

ठाकुर साहब का कमरा तो बरामदे के दूसरी ओर था और वो वहाँ से बाहर की ओर ही आँगन में निकलते।

छह महीने कब बीत गए, पता ही नहीं चला।

ठाकुर साहब अपने वचन के पक्के रहे। उन्होंने मालविका को हर तरह से पूरी छूट दे रखी थी।
अब हवेली का हर निर्णय मालविका ही लेती। वो बहुत कुशल व्यापारी की तरह गद्दी के कामों में भी ठाकुर साहब की मदद करती।

उसकी दो निजी नौकरानियों में से एक शकुंतला हवेली की सबसे पुरानी सेविका थी।
मालविका ने उसे पूरा आदर सम्मान दिया और वो भी अब मालविका को बहू बिटिया पुकारती।

एक दिन मालिश करते समय शकुंतला ने आँखों में आँसू भर कर बताया कि वो उसकी सास के मायके से आई थी ठाकुर साहब की शादी के समय! वो बाल विधवा थी और मालविका की सास की बचपन की सहेली थी।

शकुंतला ने बताया कि ठाकुर साहब बहुत रंगीन आदमी थे। हवेली की किसी नौकरानी को, यहाँ तक कि उसे भी नहीं, उन्होंने चुदाई से बक्शा नहीं है, सब उनसे चुदाई कराती रहती थीं।
ठाकुर साहब चुदाई भी बढ़िया करते थे और इनाम देकर सबका मुंह बंद रखते।

अब कहाँ ठाकुर साहब जैसा आशिक मिजाज आदमी … और कहाँ उनकी पत्नी सती सावित्री, पूजा पाठ वाली।
वो पत्नी धर्म निभाते हुए बिस्तर में ठाकुर साहब का साथ तो देतीं पर ठाकुर साहब उसे निचोड़ कर रख देते।

हालांकि वो भी ठाकुर थी, गदराए शरीर वाली थी पर ठाकुर साहब की कामवासना के सामने वो भी पस्त हो जाती।
तो ठाकुर साहब का मन उनसे नहीं भरता।

अब नौकरनियाँ तो ठकुराइन के डर से उनके कमरे के पास भी नहीं आती थीं, बस यदा कदा ठाकुर साहब शकुन्तला की ही चुदाई कर पाते वो भी जब उनकी पत्नी हवेली से बाहर हो।
शकुंतला को भी ठाकुर के लंड और उनकी ताबड़ तोड़ चुदाई की लत गयी थी, वो ठाकुर साहब के लंड पर ऊपर बैठ कर सवारी करती, उसे चूस कर मुंह से खाली कर देती यानि हर तरीके से उनका मन भर देती।

और इसी मन भरने में एक बार उसे गर्भ ठहर गया तो ठाकुर साहब ने बच्चा तो गिरवा दिया पर वो वापस अपने गाँव चली गयी.
इधर ठाकुर साहब के लंड ने ज्यादा ज़ोर मारा और उनकी पत्नी जो गर्भ से थी, ने भी सेक्स करना बंद कर दिया.

तो उन्होंने ससुराल से अपनी छोटी साली निम्मी को पढ़ने के लिए यहाँ बुला भेजा।

निम्मी बला की खूबसूरत और चंचल थी।
धीरे-धीरे निम्मी और ठाकुर साहब की नजदीकियाँ बढ़नी शुरू हो गईं।

उन दोनों का रोज़ का नियम था की ठाकुरानी के बाहर जाते ही निम्मी ठाकुर साहब के कमरे में आ जाती और दोनों नंगे होकर भरपूर चुदाई करते।
निम्मी के मदमस्त मम्मे और खिलती जवानी का पूरा रस ठाकुर साहब लूट रहे थे और निम्मी भी अपनी चुदाई का हर अरमान उनसे पूरा कर रही थी।

ठाकुर साहब कामकला में पूर्ण पारंगत थे।
वो हर मुद्रा में निम्मी की चुदाई करते, यही कारण था की निम्मी जैसी खिलती तितली भी चुदाई के लिए ठाकुर साहब के आगे पीछे इतराती घूमती।

निम्मी रोज पॉर्न मूवी देख कर चुदाई के नए नए आसन ढूंढ लेती और ठाकुर साहब को हर रोज नए रंग में सराबोर मिलती।
ठाकुर साहब उस पर खूब दौलत भी लूटा रहे थे।

ठाकुर साहब की पत्नी जिनके बेटा हो चुका था, इन सबसे अनजान अपनी पूजा पाठ में व्यस्त रहती।

एक दिन वो मंदिर गयी हुई थी और ठाकुर साहब और निम्मी बिस्तर पर रोज़ की तरह कामक्रिया में गुत्थमगुत्था थे।

ठाकुर साहब की पत्नी कब हवेली में आ गयी और कब अपने कमरे में आ गयी; इन दोनों को मालूम ही नहीं पड़ा।

जब वो कमरे में घुसी तो निम्मी और ठाकुर साहब पूर्णतया नग्न थे।
निम्मी ठाकुर साहब के ऊपर बैठ कर उछल-उछल कर मदमस्त चुदाई कर रही थी।
ठाकुर साहब उसके मम्मे दबा रहे थे।

उन दोनों को ठकुरानी के कमरे में आने का आभास भी नहीं हुआ।

यह देख ठकुराईन ज़ोर से रोती हुई सीधे हवेली में बने कुएं पर गईं और कूद गईं।
लाख कोशिश के बाद भी उन्हें बचाया न जा सका।

बस इस हादसे के बाद न तो निम्मी को किसी ने आज तक देखा न ठाकुर साहब की रंगीनीयत को।
ठाकुर साहब सिर्फ अपने काम में सिमट के रह गए।

शकुंतला को तो अब ठाकुर साहब अपनी पत्नी के बाद हाथ पैर जोड़कर विजय की देखभाल के लिए वापस लाये थे. पर वो अब उनके नजदीक भी नहीं जाती।

जब से मालविका आई है, तब से ठाकुर साहब को थोड़ा हँसते मुस्कुराते देखा जा रहा है।

शकुंतला ने विजय के बारे में भी कहा कि वो दिल से अच्छा आदमी है, बस बीमारी से परेशान रहता है।
मालविका ने भी कह दिया कि हाँ विजय उसका भी बहुत ध्यान रखता है।

पर अब मालविका के मन में ठाकुर साहब के लिए वो जगह नहीं रह गयी; उधर छह महीने के बाद चुदाई की आग भी ठंडी पड़ती जा रही थी।
कैसे भी हो एक नौजवान की और अधेड़ की चुदाई में फर्क तो होता ही है।
ठाकुर साहब की चुदाई पुराने ढंग की थी।

सही बात यह थी कि मालविका का मन अब ठाकुर से भरता नहीं था। उसे अब कोई जवान लंड चाहिए था।

उसने निगाहें दौड़ानी शुरू की कि कौन उसकी चूत का लावा शांत कर सकता है और कैसे ये सब हो सकता है।
उसे अपने कॉलेज में पढ़ने वाले साथी रवि का ख्याल आया जिससे उसने इश्क की पींगें बढ़ाई थीं, पर बात बढ़ नहीं पायी थी।

रवि मजबूत कदकाठी का बांका जवान था, चाहता तो वो आर्मी में जाना था, पर घर वालों ने जाने नहीं दिया तो वो अपनी एक वेन टॅक्सी की तरह चलाकर बस अपना गुजारा कर पाता था।
आमदनी कम होने से उसने शादी भी नहीं की थी अभी!

मालविका ने अपने पिता को फोन करके कहा कि वो रवि को उससे मिलने भेजे।

ठाकुर साहब का आढ़त का काफी बड़ा काम था तो उनका एक ऑफिस मंडी में था और एक हवेली में ही था। ठाकुर साहब दोनों जगह आते जाते थे। विजय यहीं हवेली वाले ऑफिस में बैठता था।

मालविका ने ठाकुर साहब से कह कर हवेली वाले ऑफिस में अपने बैठने के लिए एक ऑफिस अलग बनवा लिया था जो उसके अपने कमरे से लगा हुआ था।
यहाँ वो आढ़त के सारे हिसाब किताब कम्प्यूटर पर जमा लेती, इससे ठाकुर साहब को बहुत सुविधा हो गयी हिसाब किताब में!

रवि तीसरे दिन ही मिलने आ गया।
मालविका ने रवि से बहुत साफ बात करी कि अगर वो उनकी हवेली में नौकरी करनी चाहे तो उसे रहने खाने की सुविधा के अलावा पंद्रह हज़ार रुपए तनख्वाह मिलेगी।

उस समय किसी ड्राइवर की अधिकतम सलरी आठ-दस हज़ार रुपए होती थी।
रवि ने तुरंत हाँ कर दी।

मालविका ने कहा- तुम्हारी तनख्वाह से पाँच हज़ार रुपया महीना मेरे पास जमा हुआ करेंगे जो एक साथ दीवाली पर उसे बढ़ा कर मिला करेंगे। ये जमानत राशि की तरह होगी।

साथ ही मालविका ने एकमात्र शर्त रखते हुए उससे कहा कि वो ये बात भूल जाये कि कभी वे दोनों दोस्त थे, यहाँ वो उसके लिए केवल मेमसाब है और दूसरे ये हमेश ध्यान रखे कि उसे सिर्फ और सिर्फ मालविका का वफादार रहना है; उसे हर हालत में मालविका का कहा पूरा करना है।

रवि दो दिन बाद अपने कपड़े सामान लेकर आ गया।
मालविका ने उसके रहने की व्यवस्था ऑफिस के बराबर की कोठरी को ठीक करवा कर कर दी।

ठाकुर साहब बोले भी कि ये मंडी वाले ऑफिस में रह लेगा.
पर मालविका ने कहा कि ड्राइवर का काम रात बिरात पड़ता है तो यहीं रहना ठीक होगा।

मालविका ने रवि को कुछ नए कपड़े, मोबाइल वगैरा दिलवा दिये और उसे सख्त ताकीद की कि वो बहुत साफ सुथरा रहे।
रवि सुबह जल्दी उठ अपनी योग वर्जिश करता और ठाकुर साहब के बाहर आने से पहले नहा धोकर तैयार रहता।

मालविका की शर्त ठाकुर साहब को मालूम थी कि शकुंतला और रवि मालविका के निजी नौकर हैं तो उन्होंने कभी रवि से कोई काम के लिए नहीं कहा,
पर हाँ … दोपहर का गर्म खाना अब रवि ही उन्हें पहुंचाता।

रवि को काम पर आए एक महीना हो गया था. बैंक का काम भी अब ठाकुर साहब रवि से करवाने लगे।

अचानक ठाकुर साहब को दो दिन के लिए दिल्ली जाना पड़ा।

उन्होंने मालविका से कहा कि अगर वो चाहे तो वो भी साथ चले.
पर मालविका रवि से मज़े लेने का मन बना चुकी थी तो उसने मना कर दिया कि नहीं सब क्या कहेंगे।

दिन में मालविका ने रवि को बुलाकर कह दिया कि वो उसे रात को बुलाएगी तो बिना आवाज किए ऑफिस का अंदर का दरवाजा खोल के उसके कमरे में आ जाये।

रवि चौंका तो मालविका ने मुस्कुरा के कह ही दिया कि पुराने दिन ताज़ा करने हैं, शेव ढंग से कर लेना।

‘ढंग’ पर उसने ज़ोर दिया तो रवि भी समझ गया कि आज उसके हाथ लॉटरी लग सकती है।

पर मालविका ने साफ शब्दों में उससे कह दिया कि जो वो सोच रहा है, शायद वैसा या उससे भी ज्यादा हो. पर रवि ये भूले नहीं कि अब वो सिर्फ मालविका का खरीदा हुआ गुलाम है। अगर उसे ये शर्त मंजूर हो तो ही वो हाँ कहे।

रवि भी जानता था कि अगर वो मालविका से वफादार रहेगा तो उसकी ज़िंदगी मस्त गुजर जाएगी। पर वो मालविका की ताकत यहाँ देख चुका था, इसलिए दोहरी चाल चलने की बात उसके दिमाग में आ भी नहीं सकती थी।
उसने मालविका से कहा- आप निश्चिंत रहें, आप जैसा कहेंगी मैं वैसा ही करूंगा।

मालविका मुस्कुरा के बोली- फिर जाओ और मजनू बन कर रात को मेरे फोन करने पर ऑफिस खोलकर अंदर से ही मेरे कमरे में आ जाना।

उसे मालविका ने पाँच हज़ार रुपए भी दिये कि अपने लिए कुछ लेना हो तो ले लेना।

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