ठाकुर जमींदार ने ससुराल में की मस्ती- 3

देसी गांड की चुदाई की कहानी मेरी ससुराल में ससुर जी के मुनीम की बीवी की गांड मारने की है. मुनीम ने मुझे अपने घर चाय नाश्ते के लिए निमंत्रित किया था.

फ्रेंड्स, चुदाई की कहानी के पिछले भाग
दो नए जवान हुए लड़कों की गांड मारी
में आप दामाद द्वारा ससुराल के गाँव में दो लड़कों कि गांड चुदाई के बाद सास की चुदाई की कथा पढ़ रहे थे.

मैंने अपना हाथ सास की गीली चूत पर रख कर उंगली अन्दर सरका दी.
सास चहक उठीं.

मैंने उंगली चूत में चलानी चालू कर दी. दूसरा हाथ मस्त मुलायम मम्मों पर ले गया. एक दूध पर हाथ रख दूसरे को मैंने अपने मुँह में भर लिया.

इस तिहरे हमले से नीरजादेवी पागल होने लगीं, जोर जोर से थरथराते हुए झड़ने लगीं.
पर मैं रूका नहीं … अपनी उंगली से चूत को मसलता रहा. मेरा हाथ और मुँह से उनके मम्मे को दबाना चूसना चालू रखा.

अब आगे देसी गांड की चुदाई की कहानी:

मेरी सास कुछ ही पलों में फिर से लय में आ गईं. कुछ 5 मिनट के बाद मैंने सास को पेट के बल लिटा दिया और पीछे से उनकी गांड को फैला कर छेद पर अपनी जीभ लगा दी.

एक अजीब सी गुदगुदी मेरी सास के पिछवाड़े में हुई. सास अपनी गांड के छेद को भींचने लगीं.
मैं थोड़ा नीचे सरक गया और अपनी सास की चूत को चाटने लगा.

कुछ ही पलों में मेरी सास फिर से झड़ने लगीं.

मैं उठ खड़ा हुआ और अपने लंड को सास के मुँह में भर दिया.

मैंने देखा ससुर की आंख खुली थी … पर वो मुड़े नहीं.
उन्हें अहसास था कि उनकी बीवी अपने दामाद से चुद रही है.

कुछ मिनट तक अपनी सास से अपना लंड चुसवाने के बाद मैंने ढेर सारा थूक सास की गांड के छेद पर लगा दिया और उनकी गांड फैलाकर अपना लंड उनकी गांड के छेद पर टिका दिया.

सास मेरा मोटा लंड अपनी गांड पर महसूस करते ही सहम गईं कि आगे क्या होगा. दामाद जी गलत छेद पर लंड लगा कर खड़े हैं.

मैंने सास की कमर कसके पकड़ कर जोर का झटका दे दिया.

सास जी चीख पड़ीं और उनकी गांड का छेद खुल गया.
मेरा लंड उनकी गांड के छेद के अन्दर फंस चुका था.

सास की आंखों से पानी आ गया.
इतनी चीख के बावजूद मेरे ससुर पलटे ही नहीं.

मेरी सास रो रही थीं पर मैं रूका नहीं.

अगले ही मैंने पल एक दूसरे तेज झटके के साथ अपना पूरा लंड गांड के अन्दर पेल दिया.
मेरी सास अधमरी हो गईं.

मैंने धक्के चालू रखे और चोदना बंद नहीं किया.
सास की गांड का आज उद्घाटन हो रहा था.

जब मैं अपनी सास की गांड चोद रहा था, तब तक उनके आंसू आ रहे थे.

कोई बीस मिनट की चुदाई के बाद मेरे लंड ने प्रेशर रिलीज कर दिया और सास की गांड में मेरा वीर्य भर कर बहने लगा.

मेरे लंड का वीर्य सास की टांगों से होकर नीचे टपकने लगा था.
कुछ मिनट मैं ऐसे ही पड़ा रहा.

मेरा लंड अब सिकुड़ गया था और सास की गांड से बाहर आ गया.

मैंने देखा कि सास की गांड के छेद के पास थोड़ा कट गया था और थोड़ा खून भी निकल रहा था.

मैं अपनी धोती पहन कर वहां से निकल आया और अपने कमरे में आकर सो गया.

सुबह हॉल में बैठ कर मैं टीवी देख रहा था.

मेरी सास मेरे लिए चाय लेकर आईं पर उनकी चाल बिगड़ चुकी थी.
उनसे सही से चला भी नहीं जा रहा था.

मेरी बीवी ने पूछा- मां, क्या हुआ?
तो वो बोलीं- पैर में मोच आ गयी है.

अपनी सास की चाल का हाल मैंने ही बदला था, ये मेरे बीवी को पता नहीं था.

मैंने अपनी सास की तरफ देखा, वो मुझे ही देख रही थीं.

सास के हाथ से चाय लेने के बहाने से मैंने उनका हाथ पकड़ा, तो वो घबरा गईं और यहां वहां देखने लगीं कि कोई देख तो नहीं रहा.
पर सब अपने अपने काम में मस्त थे.

सास ने शर्माते हुए अपना हाथ छुड़ा लिया.
मैंने मूंछों पर ताव दिया और चाय खत्म की.

फिर बीवी को वहीं छोड़ कर मुझे अपने घर निकलना था.
मैंने ससुर जी से कहा- मैं आज शाम को घर चला जाऊंगा.

सास घूंघट लिए कहने लगीं- और कुछ दिन रूक जाते.
ससुर अपनी बीवी को देखने लगे और उन्होंने भी कहा- हां हां दामाद जी, कुछ दिन और रूक जाते.

उतने में मुनीम आया और बोला- दामाद जी, आप हमारे घर तो पधारे ही नहीं. मेरे घर चलिए, जलपान कीजिए.
ससुर भी बोले- हां हां हो आइए!
मैंने कहा- ठीक है चलो.

मैं मुनीम के घर चल पड़ा. घर के अन्दर घुसते ही मुनीम की बीवी मेरा स्वागत करने पूजा का थाल लिए खड़ी थी.

मुनीम मरियल सा था, पर उसकी बीवी एकदम कड़क माल थी.
मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं. स्वर्ग की अप्सरा लग रही थी.
साड़ी पहने, बालों में गजरा लगाए, आंखों में काजल लगाए, कमर हिलाती हुई मुझे देख रही थी.

मैं उसे देखते ही रह गया.

उसने मेरा स्वागत किया, टीका लगाया, आरती की और बैठने को कहा.

मैं सोफे पर … और मुनीम जी कुर्सी बैठ गए.
वो अन्दर गयी और मेरे लिए पानी लायी.

मुझे देख कर इठला कर बोली- लीजिए पानी.

मैं फिर से उसे देखता रहा.

इतने में मुनीम बोल पड़ा- ये कजरी है … मेरी जोरू.

मैंने पानी का गिलास लेते हुए उसका हाथ दबा दिया.
वो मेरी ओर देखने लगी.

मैंने भी उसको देखा और मूंछों पर ताव दिया.
ये देख कर उसके गाल शर्म से लाल हो गए और वो मंद मंद मुस्कुराने लगी.

मैंने पानी पिया और गिलास उसके हाथ में दे दिया.

वो गिलास लिए अन्दर जाने लगी पर वो मुड़ कर देखना नहीं भूली.

फिर वो मेरे लिए नाश्ता और चाय ले आयी.
नाश्ता टेबल पर रख कर बोली- लीजिए चाय नाश्ता कीजिए.

उसने मुनीम को चाय पकड़ा दी और वहीं खड़ी हो गयी.

मैं भी नाश्ता खाते खाते कजरी को देख रहा था.
वो मुनीम को बिना पता चले अपनी अदाएं मुझे दिखा रही थी.

मेरी नजर उसकी कमर पर अटक गयी थीं. वो बार बार कमर लचका रही थी.

चाय खत्म करके मुनीम ने कहा- दामाद जी, आप आराम से नाश्ता खत्म कीजिए, मैं चलता हूँ. मालिक राह देख रहे होंगे.

मुनीम जी अपनी बीवी मेरे सामने छोड़ कर निकल गए.

इतने राजन अन्दर आ गया. वो मुझे देख कर डर गया.

उसे देख आकर कजरी बोली- बेटा नमस्ते करो … ये ठाकुर जी है मालिक के दामाद जी!
उसने डरते हुए मुझे नमस्ते की.

मैंने भी हंसकर उसे नजदीक बुलाया और पूछा- कैसे हो?
वो बोला- जी ठीक हूँ.

मैंने उसके कान में पूछा- दर्द है या कम हो गया?
वो भी फुसफुसाया- अभी है दर्द.

मैंने बोला- एक बारी यहां भी हो जाए.
राजन डर गया और बोला- बहुत दर्द होता है … ये तो पता था. मगर आपका लंड भी बड़ा और तगड़ा है. दोनों की फट गयी थी.

मैं हंसा और कहा- एक बार फिर से करके देख, मजा आ जाएगा.
राजन बोला- नहीं नहीं.

मैं उससे बोला- चल तो अब यहां से गायब हो जा. मेरा खड़ा हो रहा है. खड़ा हुआ तो तुझे ही पेलूंगा.
राजन तुरंत भाग खड़ा हुआ.

कजरी ने पूछ लिया- क्या कह रहा था राजन?
मैंने कहा- हमारी मुलाकात हो चुकी है. बड़ा अच्छा लड़का है. मेरा कहा मानता है. बड़ी इज्जत करता है. पिता समान मानता है.

‘पिता समान मानता है …’ वाली बात पर वो हंस पड़ी.

मैंने पूछा- क्यों क्या हुआ?
वो ‘कुछ नहीं …’ कहकर अन्दर चली गयी.

मैं भी हाथ धोने के बहाने अन्दर गया.

कजरी चूल्हे के पास बैठी थी.
मुझे देखकर बोली- कुछ चाहिए मालिक?
मैं- हाथ धोने थे.

कजरी- आइए मैं धुलवा देती हूँ.

मुझे लेकर वो स्नानघर जाने लगी.
मैं उसके पीछे पीछे चल पड़ा.

वो अन्दर गयी तो मैं भी अन्दर घुस गया.

कजरी ने लोटे में पानी लिया और मेरे हाथों के ऊपर डालने लगी पर मैं सिर्फ हाथ आगे किए खड़ा रहा.

कजरी- धोइए मालिक.
मैं- आप धुलवाने वाली थीं.

वो शर्मायी और मेरी ओर देखने लगी.

मैंने फिर से हाथ आगे किया.

इस बार कजरी ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और एक हाथ से पानी डालने लगी. वो मेरे हाथों को धोने लगी.
मैं भी अपने हाथों से उसके हाथों को मलने लगा.
उसका एक हाथ पानी डाल रहा था, तो दूसरा मेरे हाथों के बीच में फंसा था.

मेरा हाथ अब उसके हाथ से और ऊपर की ओर जाने लगा. पहले कलाई तक, फिर कोहनी, फिर बांह, फिर कंधा.

अब मैंने उसे अपनी ओर खींचा.
वो बिना किसी विरोध के मेरे पास आने लगी.

मैंने एकदम से उसके स्तनों पर कब्जा कर लिया और दबाने लगा.

वो कामुक सिसकारियां भरने लगी.
मैंने उसकी चोली के हुक खोल दिए और चोली उतार फैंकी.

उसके दोनों दूध हवा में लहराने लगे.
मैंने एक को मुँह में भर लिया और एक को अपने हाथों से दबाने लगा, निप्पल को दो उंगलियों में लेकर मसलने लगा.

उसके शरीर में सरसराहट होने लगी. मैंने दूसरा निप्पल दाँतों में ले लिया और हल्के से चबाने लगा.

वो कसमसाई.
मैंने साड़ी खींच कर दूर फैंक दी.

एक हाथ उसके घाघरे पर ले गया और नाड़ा आहिस्ता से खींच दिया.

सर्र से पेटीकोट कमर से पैरों में गिर गया.

कजरी एकदम नंगी हो गयी. मेरा अभी भी उसके दूध चूसना चालू था.

अब वो नंगी हुई तो मैं अपने एक हाथ को उसकी चूत पर घुमाने लगा.

कजरी की चूत सफाचट थी. ये देख कर मेरा माथा ठनका.

मैंने कजरी से पूछा- आज तुम्हारे मालिक तुम्हें चोदने वाले थे क्या?

कजरी ने हां में सर हिलाया और फिर से मजे लेने लगी.

मैंने उसके होंठों को चूसना चालू किया. क्या रसीले होंठ थे … नशा आ गया.

मैंने एकाएक अपनी बीच की उंगली कजरी की चूत में घुसा दी.
वो उछल पड़ी.

मैं चूत में उंगली हिलाने लगा … अन्दर बाहर करने लगा.
वो सेक्स के नशे में डूबने लगी.

उसे मेरा ऐसा करना भा गया था.
वो आंख बंद किए मजा लेने लगी.

अब मैंने उसे खटिया पर झुका दिया और पीछे आकर नीचे बैठ गया.
मेरे मुँह के सामने उसकी गांड थी.

मैंने एक हाथ चूत में चालू रखा और एक हाथ से उसकी मतवाली गांड को फैलाकर अपनी जुबान उसकी गांड के छेद में लगा दी.

इस हमले से वो सहम गयी. उसके लिए ये नया अहसास था, अनोखा मजा था.
वो इस मजे के साथ साथ शर्मा भी रही थी.

मैंने उसे 5 मिनट तक चाटा. फिर खड़े होकर अपने लंड को अपने ही थूक से गीला करके उसकी गांड के छेद पर टिका दिया.

उसे कुछ पता चले, उसके पहले मैंने जोर लगा कर अपना आधा लंड उसकी गांड में उतार दिया.

वो इतनी जोर से चीखी कि उसका लड़का जो बाहर खेल रहा था, वो खिड़की से झांकने लगा.

उसने देखा कि हम दोनों नंगे थे और मैं उसकी मां के पीछे से उसे चोद रहा हूँ.

मैं अपना हाथ कजरी के मुँह पर ले गया, तब मुझे अहसास हुआ कि उसकी आंख से आंसू निकल रहे थे.

मैंने मुँह पर हाथ रख कर और एक धक्का लगाया.
इस बार मेरा पूरा लंड उसकी गांड में उतर गया था.

वो आगे भागने को हुई, पर मैंने उसे कसके पकड़ रखा था.

वो मुँह पर मेरे हाथ लगे होने के कारण चिल्ला भी ना सकी, पर ‘उम्म उम्म …’ करती रही.

कुछ देर रूक कर मैंने धक्के लगाने चालू किए.
उसे दर्द अभी भी था, वो रो रही थी, पर मैं रूका नहीं.

करीब 7-8 मिनट तक कजरी की गांड चोदने के बाद लंड ने अपनी जगह बना ली और उसे भी राहत मिल गई.

आज उसका और एक छेद खुल चुका था.

कजरी की चूत पर मेरे ससुर की … और उसकी गांड पर मेरी मोहर लगी थी.

अब वो भी मेरे लंड की दासी हो गयी थी और मेरा साथ दे रही थी.

मैं 20 मिनट तक उसे चोदता रहा.
मेरा हाथ उसकी चूत में अभी भी चल रहा था.

इस 20 मिनट में उसने मेरे हाथ पर अपनी चूत के झड़ने से थरथराते हुए अपने पानी से 4 बार वर्षा की.

अब मेरा बांध भी टूटने को हुआ. लंड का टोपा ऐसे फूल गया था जैसे उसकी गांड में कुत्ते के लंड जैसा अटक जाएगा.

मैं भी आह आह करते हुए उसकी गांड में अपना वीर्य भरने लगा.

एक दो मिनट तक मैं उस पर ही पड़ा रहा और अपना लंड बाहर निकाल कर उसकी गांड के छेद को देखने लगा.

गांड के छेद का मुँह खुला हुआ था. गांड लबालब भर कर बहने लगी थी और पूरी लाल हो चुकी थी. दो जगह कट भी चुकी थी. वीर्य और खून मिश्रण बह रहा था.

कजरी घुटने मोड़ कर बैठ गयी. मैंने खिड़की कि ओर देखा, तो पाया कि राजन देख रहा था.

मेरी नजर पड़ते ही वो मुझे देख कर मुस्कुराया और भाग गया.

मैंने कजरी से पूछा- ज्यादा दर्द हो रहा है क्या?
वो बोली- हां … दर्द तो बहुत है पर एक अजीब सा मजा भी आया. मालिक अब इसकी प्यास कौन बुझाएगा.

मैं कुछ नहीं बोला.

उसने फिर से कहा कि मालिक के आने का समय हो गया.
मैंने पूछा- वो अभी क्यों आ रहे हैं?

तो वो शर्माती हुई बोली- इस जमीन पर उनका ही हल ज्यादा चला, हमारे इनका भी इतना नहीं चला है.

मैं उससे बात करते हुए सोचने लगा कि अब मेरे ससुर जी इसकी आगे की लेंगे.

देसी गांड की चुदाई की कहानी में मजा आ रहा होगा दोस्तो!
मेरी ससुराल में चूत की कमी नहीं थी.

अगले भाग में अगली चूत चुदाई लिखूंगा. आप मेल जरूर करें.
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देसी गांड की चुदाई की कहानी का अगला भाग: ठाकुर जमींदार ने ससुराल में की मस्ती- 4